
China नहीं भारत ही आया काम
करीब डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग का एलान किया था। ऐसे में जब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने के लिए जब कई प्रतिबंध लगाए थे तो तब भारत ही था जो मदद के लिए आगे आया था। जिसके बाद भारत ने रूस की परेशानी को समझते हुए रुपये में भारी मात्रा में कच्चा तेल और कोयला खरीदा।

करीब डेढ़ साल से ज्यादा का वक्त हो चुका है। जब रूस ने यूक्रेन के खिलाफ जंग का एलान किया था। ऐसे में जब अमेरिका समेत पश्चिमी देशों ने रूस की अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ने के लिए जब कई प्रतिबंध लगाए थे तो तब भारत ही था जो मदद के लिए आगे आया था। जिसके बाद भारत ने रूस की परेशानी को समझते हुए रुपये में भारी मात्रा में कच्चा तेल और कोयला खरीदा। लेकिन हाल ही में रूस ने भारत को झटका देते हुए रुपए में पेमेंट लेने से इनकार कर दिया और खबरें आई कि रूस अब रुपए से ज्यादा कीमती चीन की करेंसी युआन में पेमेंट चाह रहा है। इसके बावजूद भारत ने एक बार फिर अपनी दोस्ती और बड़ा दिल दिखाते हुए रूस की मदद की है और इस कदम से रूस और उसकी कंपनियों को बड़ा फायदा होगा।
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दरअसल भारतीय शेयर बाजार में अब रूसी निवेशक भी निवेश कर सकेंगे। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड यानि की SEBI और भारत की नेशनल सिक्यूरिटीज डिपॉजिटरी लिमिटेड (NSDL) ने रूस की तीन कंपनियों को फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टर्स यानि की FPI के तौर में रजिस्टर्ड होने के लिए लाइसेंस दे दिया है। रूस-यूक्रेन युद्ध के बीच इस फैसले से ये कंपनियां भारतीय पूंजी बाजार में निवेश कर सकेंगी। एक पहली बार हो रहा है जब रूसी निवेशकों ने भारत में निवेश करने के लिए FPI का रास्ता चुना है। इससे पहले, वे ज्यादातर FDI रूट अपनाते थे।

अब आपको FPI क्या होते हैं वो भी बता देते हैं। जब कोई विदेशी कंपनी या कोई निवेशक किसी दूसरे देश की कंपनी के शेयरों, बॉन्ड्स या डिबेंचर्स में निवेश करती है तो उसे FPI कहा जाता है। दरअसल, वो विदेशी कंपनी या निवेशक अपने निवेश का पोर्टफोलियो तैयार कर रही होता है, इसलिए उससे फॉरेन पोर्टफोलियो इन्वेस्टमेंट कहते हैं।
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रूस की अल्फ़ा कैपिटल मैनेजमेंट कंपनी ने FPI के दो लाइसेंस लिए हैं, जबकि एक लाइसेंस निजी निवेशक वसेवोलोद रोजनोव के नाम पर लिया गया है। इससे पहले रूसी निवेशकों ने भारत में निवेश करने के लिए FDI का रास्ता चुनती आई है।

एक्सपर्ट्स का मानना है कि जब से यूक्रेन ने रूस पर हमला किया है उसके बाद से अमेरिका और यूरोपीय संघ कोई ऐसा मौका नहीं छोड़ रहे हैं जिससे वो रूस की अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचा सके। ऐसे में इन प्रतिबंधों के बीच रूसी निवेशक भारतीय बाजारों में संभावनाएं तलाश रहे हैं। फिलहाल तो रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होते नहीं दिख रहा है और शायद यही वजह है कि रूस के बड़े निवेशक दुनिया में ऐसे बाजारों की तलाश में हैं, जहां उसे दूसरे प्रतिबंधों का सामना न करना पड़े। लेकिन एक बात साफ है कि भारत ने एक बार फिर अपनी दोस्ती दिखाई है और रूस के लिए फिर चीन से बेहतर दोस्त साबित हुआ है।
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