
Business Idea: बेबी कॉर्न की खेती: मुनाफे का सुनहरा अवसर
पिछले कुछ सालों में बेबी कॉर्न की मांग और बाज़ार में तेजी आई है, लेकिन अभी भी कई किसान इसके बारे में अनजान हैं। बेबी कॉर्न की खेती से कुछ महीनों में अच्छा पैसा बनाया जा सकता है

पिछले कुछ सालों में बेबी कॉर्न की मांग और बाज़ार में तेजी आई है, लेकिन अभी भी कई किसान इसके बारे में अनजान हैं। बेबी कॉर्न की खेती से कुछ महीनों में अच्छा पैसा बनाया जा सकता है
बेबी कॉर्न क्या है?
यह मक्का की एक विशेष प्रजाति है, जिसके भुट्टे बिना निषेचन के और अपरिपक्व अवस्था में, जब रेशेदार कोपलें 1-2 दिन की होती हैं, तब तोड़े जाते हैं। यह मुख्य रूप से सब्जी के रूप में उगाई जाती है और शहरी क्षेत्रों में इसकी मांग तेजी से बढ़ रही है। बेबी कॉर्न किसानों को नियमित आय के साथ-साथ पोषक तत्वों से भरपूर भोजन और पशुओं के लिए चारा भी प्रदान करती है।
इसमें प्रोटीन, कैल्शियम, फॉस्फोरस, आयरन और विटामिन प्रचुर मात्रा में होते हैं। इसे सब्जी के अलावा अचार, हलवा, खीर, पकोड़े, सलाद, लड्डू, कैंडी, बर्फी और जैम में भी इस्तेमाल किया जाता है।
खेती के लिए सही दिशा-निर्देश
क्षेत्र का चयन:
बेबी कॉर्न को मक्का की सामान्य फसल से कम से कम 400 मीटर की दूरी पर उगाना चाहिए ताकि परागण से फसल की गुणवत्ता पर कोई असर न पड़े। इसे शहरी क्षेत्रों के पास उगाना अधिक लाभकारी हो सकता है, जहां इसकी मांग ज्यादा होती है।
मिट्टी का चयन:
बेबी कॉर्न जलभराव के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होती है। यदि 1-2 दिनों तक खेत में पानी जमा रहता है, तो फसल की पैदावार पर नकारात्मक असर पड़ता है। इसलिए इसे अच्छे जल निकास वाली मिट्टी में ही उगाना चाहिए।
बुआई का सही समय:
10°C से अधिक तापमान वाले क्षेत्रों में बेबी कॉर्न सालभर उगाई जा सकती है। हालांकि, अगस्त से नवंबर के बीच बुआई करने पर बेहतर उत्पादन मिलता है। उत्तर भारत में सर्दियों के दौरान, यानी 15 दिसंबर से जनवरी अंत तक, इसे उगाना संभव नहीं होता। इसके अलावा, मक्का और बेबी कॉर्न की बुआई के बीच 10-15 दिनों का अंतर रखना चाहिए ताकि दोनों फसलों की गुणवत्ता बनी रहे।
प्रमुख किस्में
उत्तरी पहाड़ी क्षेत्र: आईएमएचबी 1539, एचएम-4, विवेक हाइब्रिड 27, वीएल बेबी कॉर्न 1
मध्य पश्चिमी क्षेत्र: आईएमएचबी 1532, एचएम-4, शिशु, विवेक हाइब्रिड 27
प्रायद्वीपीय क्षेत्र: बेबी कॉर्न जीएवाईएमएच 1, एचएम-4, शिशु

बीज की मात्रा और बीज उपचार
बेबी कॉर्न की बुआई के लिए प्रति हेक्टेयर 20-25 किलो बीज पर्याप्त होता है। बीजों को बाविस्टिन और कैप्टान (1:1) के मिश्रण से (2 ग्राम प्रति किलो बीज) उपचारित किया जाना चाहिए। तना भेदक और तना मक्खी से बचाव के लिए इमिडाक्लोप्रिड (गाउचो) का उपयोग करें।
बुआई विधि:
खरीफ के मौसम में बेबी कॉर्न की बुआई मेड पर करनी चाहिए ताकि फसल को जलभराव से बचाया जा सके। बीज को 3-5 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए। पंक्तियों के बीच 60 सेमी और पौधों के बीच 15-20 सेमी की दूरी रखनी चाहिए।
अंतःफसलीकरण के लिए उपयुक्त
बेबी कॉर्न एक कम अवधि वाली फसल है, जिसे अन्य फसलों के साथ उगाने से अतिरिक्त आय प्राप्त की जा सकती है। इसे सब्जियों, दालों और फूलों के साथ अंतःफसल के रूप में उगाया जा सकता है। सर्दियों में मेथी, धनिया, पालक और गाजर जैसी फसलों के साथ इसकी खेती लाभकारी होती है।
सिंचाई और पोषण प्रबंधन
बेबी कॉर्न की सिंचाई बहुत महत्वपूर्ण है, खासकर अंकुरण, घुटनों तक की ऊँचाई, रेशम निकलने और तुड़ाई के समय। हल्की और नियमित सिंचाई से फसल की गुणवत्ता और उपज में सुधार होता है।
पोषण प्रबंधन:
बेबी कॉर्न में बुआई के बाद चार पत्ती अवस्था, आठ पत्ती अवस्था और नर पुष्पन से पहले उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है।
तुड़ाई और डिटेसलिंग
बेबी कॉर्न की तुड़ाई सुबह या शाम के समय की जानी चाहिए। खरीफ की फसल 45-50 दिनों में और रबी की फसल 70-80 दिनों में तैयार हो जाती है। तुड़ाई के लिए सही समय सिल्क निकलने के 1-3 दिनों के बाद होता है, जब सिल्क की लंबाई 1-2 सेंटीमीटर हो।
उत्पादन और मुनाफा
बेबी कॉर्न की खेती से प्रति हेक्टेयर 1.8-2.0 टन बिना छिलके वाले भुट्टे (7-9 टन छिलके सहित) का उत्पादन किया जा सकता है। इसके अलावा, 25-30 टन हरा चारा भी प्राप्त होता है। बेबी कॉर्न की खेती से प्रति हेक्टेयर 50,000-60,000 रुपये का शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है।
बेबी कॉर्न की खेती एक लाभदायक विकल्प है, खासकर उन लोगों के लिए जिनके पास जमीन है और इसके जरिए वो एक्स्ट्रा पैसा कमाना चाहते हैं