आधा भारत नहीं जानता की सावन में कांवड़ यात्रा क्यों होती है? कम से कम आप तो जान लीजिए
यह यात्रा खासतौर पर भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाती है, जिन्हें 'कांवड़िये' कहा जाता है। ये श्रद्धालु गंगा नदी से पवित्र जल लेकर अपने-अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।

Kanwar Yatra: सावन का महीना हिन्दू धर्म में विशेष महत्व रखता है, और इस पावन समय में उत्तर भारत के विभिन्न हिस्सों से निकलने वाली कांवड़ यात्रा आस्था का अद्भुत प्रतीक बन जाती है। यह यात्रा खासतौर पर भगवान शिव के भक्तों द्वारा की जाती है, जिन्हें 'कांवड़िये' कहा जाता है। ये श्रद्धालु गंगा नदी से पवित्र जल लेकर अपने-अपने क्षेत्र के शिव मंदिरों में जाकर शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं।
क्यों होती है कांवड़ यात्रा?
कांवड़ यात्रा की शुरुआत पौराणिक मान्यताओं से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान जब विष (हलाहल) निकला, तब भगवान शिव ने पूरे ब्रह्मांड की रक्षा के लिए उसे पी लिया। इस दौरान देवताओं और भक्तों ने उन्हें शीतलता देने हेतु गंगा जल अर्पित किया। तभी से सावन मास में शिवलिंग पर गंगाजल चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई, जिसे भक्त आज भी निभाते हैं।
यह यात्रा न सिर्फ धार्मिक होती है, बल्कि शारीरिक और मानसिक तपस्या का भी रूप ले लेती है। कांवड़िये नंगे पांव चलते हैं, उपवास रखते हैं और रास्ते में 'बोल बम' के जयकारों से वातावरण को भक्तिमय बना देते हैं। कुछ लोग पूरे मार्ग को कंधे पर कांवड़ उठाकर तय करते हैं, जबकि कुछ श्रद्धालु 'डाक कांवड़' के रूप में दौड़ते हुए यह जल शिवालय तक पहुंचाते हैं।
कांवड़ यात्रा आज सिर्फ धार्मिक ही नहीं, बल्कि एक सामूहिक सांस्कृतिक उत्सव बन चुकी है, जिसमें लाखों की संख्या में लोग भाग लेते हैं। सरकार और प्रशासन भी इस यात्रा को सुरक्षित और व्यवस्थित बनाने के लिए विशेष तैयारियां करता है।
हालांकि, भीड़-भाड़ और ट्रैफिक के कारण कई बार यह यात्रा चुनौतीपूर्ण हो जाती है, लेकिन भक्तों की आस्था कभी डगमगाती नहीं। उनके लिए यह यात्रा केवल एक धार्मिक कर्म नहीं, बल्कि भगवान शिव के प्रति निस्वार्थ समर्पण और प्रेम का प्रतीक है।
कांवड़ यात्रा सावन मास की सबसे भावनात्मक, साहसिक और आध्यात्मिक परंपराओं में से एक है, जो सदियों से भारत की धार्मिक विरासत को जीवंत बनाए हुए है।