लोन की लाइन लंबी, पर कैश की किल्लत! जानिए कैसे बदल रहा भारत का बैंकिंग सिस्टम
भारत का बैंकिंग सिस्टम धीरे-धीरे बदल रहा है। दरअसल, भारत में लोन की मांग साल-दर-साल 14% से ज्यादा बढ़ रहा है। ऐसे में क्रेडिट डिमांड को मैनेज करने के लिए सिस्टम में बदलाव हो रहा है।

भारत के बैंक इन दिनों एक ऐसी दोहरी चुनौती का सामना कर रहे हैं, जिसमें उन्हें एक तरफ लोन की रिकॉर्ड तोड़ मांग पूरी करनी है और दूसरी तरफ खुद की पैसों की तंगी से भी जूझना है। अब सवाल ये है कि क्या बैंक इस बैलेंसिंग गेम में टिक पाएंगे या कहीं फिसल न जाएं?
साल 2025 में भारत में लोन की मांग साल-दर-साल 14% से ज्यादा बढ़ चुकी है। इसकी वजह साफ सरकार का इन्फ्रास्ट्रक्चर पर जोर, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर में तेजी और मिडल क्लास की बढ़ती खर्च करने की ताकत है। ऐसे में बढ़ती मांग जितनी अच्छी लगती है, उतनी ही खतरे की घंटी भी है। खासकर तब जब ये लोन बिना सिक्योरिटी के दिए जा रहे हों।
CA Manish Mishra, Founder, GENZCFO कहते हैं कि क्रेडिट ग्रोथ का मतलब ये नहीं कि आंख मूंदकर लोन बांटे जाएं। बैंकों को अब लोन की क्वालिटी पर ज्यादा ध्यान देना होगा, वरना ये उछाल जल्द ही एनपीए में बदल सकता है।
लिक्विडिटी की कमी से बैलेंस शीट पर दबाव
अब बैंकों के पास पहले जितना पैसा नहीं बचा है। महंगाई को काबू में रखने के लिए RBI ने ब्याज दरें ऊंची रखी हैं और बाजार से पैसा खींच लिया है। इसके साथ ही IPO, त्योहारों की खरीददारी और स्मॉल सेविंग्स स्कीम में लोगों का पैसा लगना भी बैंकों की जमा राशि घटा रहा है। इसका सीधा असर क्रेडिट-डिपॉजिट रेशियो पर पड़ा है, जो 76% से ऊपर चला गया है।
इन सबके बीच राहत की खबर ये है कि बैंक अब टेक्नोलॉजी की तरफ तेजी से बढ़ रहे हैं। AI की मदद से अब लोन जल्दी और समझदारी से दिए जा रहे हैं। फिनटेक कंपनियों के साथ मिलकर बैंक गांव और छोटे शहरों तक भी लोन पहुंचा पा रहे हैं।
CA Manish Mishra का मानना है कि जो बैंक समय रहते डिजिटल बनेंगे और डेटा से फैसले लेंगे, वही इस दौर में टिक पाएंगे। बैंक के लिए सही लोन देना जरूरी है।
बैंक अब सिर्फ डिपॉजिट पर डिपॉजिट नहीं रहना चाहते। वो अब इंफ्रास्ट्रक्चर बॉन्ड्स, NRI से पैसा जुटाने और NBFC के साथ मिलकर को-लेंडिंग जैसे नए रास्तों को अपना रहे हैं। कई प्राइवेट बैंक तो टियर-2 कैपिटल मार्केट से भी पैसा जुटाने में लगे हैं।