SEBI के इस नए प्रस्ताव से म्यूचुअल फंड में छिपे खर्च होंगे कम, निवेशकों को होगा ये फायदा
कैपिटलमाइंड AMC के CEO दीपक शेनॉय ने कहा कि ये बदलाव काफी बड़े है और अब फंड मैनेजर्स और ब्रोकरों को जल्दी से जल्दी इसके हिसाब से अपने काम को एडजस्ट करना पड़ेगा।

SEBI ने ताजा प्रस्ताव रखा है कि म्यूचुअल फंड्स ब्रोकरेज फीस पर एक सीमा तय की जा सकती है, जिससे निवेशकों पर पड़ने वाले छिपे हुए खर्च कम होंगे। कैपिटलमाइंड AMC के CEO दीपक शेनॉय ने कहा कि ये बदलाव काफी बड़े है और अब फंड मैनेजर्स और ब्रोकरों को जल्दी से जल्दी इसके हिसाब से अपने काम को एडजस्ट करना पड़ेगा।
क्या है SEBI का प्रस्ताव?
SEBI का मौजूदा नियम म्यूचुअल फंड्स को इक्विटी ट्रेड्स पर 0.12% और डेरिवेटिव्स पर 0.05% तक ब्रोकरेज देने की अनुमति देता है, और ये खर्च Total Expense Ratio (TER) में शामिल नहीं होते।
लेकिन अब SEBI प्लान कर रहा है कि इन खर्चों को सिर्फ 0.02% और 0.01% तक ही 'पास-थ्रू' माना जाएगा। जो भी खर्च इससे ऊपर होगा, उसे फंड मैनेजर को खुद उठाना पड़ेगा।
दीपक शेनॉय ने उदाहरण देते हुए समझाया कि:
मान लीजिए एक ₹1,000 करोड़ वाला फंड है और उस पर ₹0.9 करोड़ ब्रोकरेज खर्च हो रहा है। नए नियम के मुताबिक सिर्फ ₹0.2 करोड़ ही TER के बाहर माना जाएगा, बाकी ₹0.7 करोड़ फंड मैनेजमेंट फीस से कटेगा। इसका मतलब यह हुआ कि AMC की फीस में लगभग 7% की कटौती हो जाएगी।
ब्रोकर्स और AMCs पर दबाव
ये बदलाव AMC और ब्रोकर्स के रिश्ते पर भी असर डाल सकता है। SEBI के नए नियम के हिसाब से ब्रोकरेज को कम से कम 20 ब्रोकर्स में बांटना होगा, जिससे ब्रोकरेज की कंपीटिशन बढ़ जाएगी। दीपक शेनॉय का कहना है कि ब्रोकरों को अपने फीस को कम करना पड़ेगा, जिससे उनका मुनाफा भी घट सकता है।
निवेशकों के लिए क्या फायदा?
शेनॉय ने कहा कि ये बदलाव निवेशकों के लिए बड़ी जीत की तरह है, क्योंकि अब तक ब्रोकरेज फीस छिपे रहते थे और सिर्फ सालाना स्कीम रिपोर्ट्स में दिखते थे। उन्होंने आगे कहा कि अब समय आ गया है कि हम म्यूचुअल फंड्स के मैनेजर्स भी अपने ट्रांजैक्शन कॉस्ट को कम करें।

