
Anil Agarwal के ड्रीम प्रोजेक्ट पर ग्रहण! रिपोर्ट के मुताबिक सरकार का फंडिंग से इनकार
भारत के माइनिंग किंग अनिल अग्रवाल का ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना टूटता नजर आ रहा है। 9 महीने पहले भारत को सिलिकॉन वैली यानि की चिप या सेमीकंडक्टर हब बनाने का सपना देने वाले अनिल अग्रवाल का प्रोजेक्ट फिलहाल लटकता नजर आ रहा है। खबरों की मानें तो सरकार ने साफ तौर पर अनिल अग्रवाल के प्रोजेक्ट के लिए फंड देने से इनकार कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब खुद प्रधानमंत्री मोदी, भारत की सेमीकंडक्टर मार्केट में तेजी लाने के लिए लगातार बढ़ावा दे रहे हों, तो फिर वेदांता रिसोर्सेज को किस आधार पर फंड देने से इनकार किया जा रहा है।

भारत के माइनिंग किंग Anil Agarwal का ड्रीम प्रोजेक्ट का सपना टूटता नजर आ रहा है। 9 महीने पहले भारत को सिलिकॉन वैली यानि की चिप या सेमीकंडक्टर हब बनाने का सपना देने वाले अनिल अग्रवाल का प्रोजेक्ट फिलहाल लटकता नजर आ रहा है। खबरों की मानें तो सरकार ने साफ तौर पर अनिल अग्रवाल के प्रोजेक्ट के लिए फंड देने से इनकार कर दिया है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब खुद प्रधानमंत्री Narendra Modi, भारत की सेमीकंडक्टर मार्केट में तेजी लाने के लिए लगातार बढ़ावा दे रहे हों, तो फिर वेदांता रिसोर्सेज को किस आधार पर फंड देने से इनकार किया जा रहा है।
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तो सबसे पहले अनिल अग्रवाल के ड्रीम प्रोजेक्ट की पृष्ठभूमि समझ लीजिए। साल 2022 में भारत सरकार देश को सेमीकंडक्टर हब बनाने के लिए खास पॉलिसी लेकर आई थी। जिसके तहत चिप या सेमीकंडक्टर प्लांट लगाने वाली कंपनियों को 10 अरब डॉलर का इनसेंटिव देने का ऐलान किया था और ऐसे में सरकार की ओर से कंपनियों को आमंत्रित किया था। जिसके बाद अनिल अग्रवाल ने पिछले साल भारत में 19 बिलियन डॉलर का निवेश करके चिप प्लांट लगाने का एलान किया था।

अब समझिए कि सरकार ने क्यों फंडिंग से इनकार किया? इसके लिए अनिल अग्रवाल की कंपनी Vedanta Resources ने ताइवान के हॉग हाई प्रेसिजन कंपनी यानि की फॉक्सकॉन के साथ ज्वाइंट वेंचर किया था। जिसके तहत दोनों कंपनियों ने वेंचर के तहत 28-नैनोमीटर चिप्स को बनाने के लिए इनसेंटिव्स के लिए अप्लाई किया था, लेकिन Bloomberg में छपी खबर के मुताबिक केंद्र सरकार की ओर से इंसेंटिव देने से इनकार कर दिया गया। खबरों की मानें तो दोनों कंपनियों ने ही सरकार के क्राइटेरिया को पूरा नहीं किया। फंडिंग हासिल करने के लिए या तो इस प्रोजेक्ट के लिए टेक्नोलॉजी पार्टनर मिलना चाहिए या फिर 28-नैनोमीटर चिप के लिए मैन्युफैक्चरिंग ग्रेड टेक्नोलॉजी का लाइसेंस, दोनों में से अभी तक कंपनी ने कोई भी शर्त पूरी नहीं की है। जिसके बाद सरकार की ओर से आर्थिक मदद देने से इनकार कर दिया गया।
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चिपमेकिंग का कोई अनुभव नहीं, दरअसल वेदांता और होन हाई दोनों के पास ही चिपमेकिंग का कोई पिछला एक्सपीरियंस नहीं है। प्रोडक्शन रेडी टेक्नोलॉजी खोजने में उनकी मुश्किल इस बात को दर्शाती है कि उनके लिए सेमीकंडक्टर प्लांट को लगाना कितना मुश्किल है। इस पर अरबों रुपये खर्च होते हैं और इसे चलाने के लिए उच्च स्तरीय विशेषज्ञों की जरूरत होती है। मीडिया में चल रही खबरों के मुताबिक केंद्र सरकार संभावित तौर पर वेदांता को एक बार फिर 40 नैनोमीटर चिप के लिए इंसेटिव के लिए आवेदन करने को बोल सकती है। कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, दूरसंचार और IT हार्डवेयर जैसे क्षेत्रों से महत्वपूर्ण मांग के बीच देश का सेमीकंडक्टर मार्केट 2026 तक 64 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। ऐसे में भारत सरकार से लेकर दिग्गज कंपनियां ये मौका अपने हाथ से नहीं गंवाने देना चाहती हैं।
