
मोदी सरकार का असली सरप्राइज अभी बाकी है !
संविधान के अनुच्छेद 81 के मुताबिक लोकसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 होगी। इस लिहाज से अभी 543 सीटें पर्याप्त नजर आती हैं लेकिन इसी अनुच्छेद में ये भी कहा गया है कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एक सांसद होना चाहिए। यानी संविधान का अनुच्छेद 81 आबादी के आधार पर सदस्य संख्या के निर्धारण की भी बात करता है।

नई संसद का आगाज महिला आरक्षण बिल से हुआ है। बीजेपी और कांग्रेस अपनी-अपनी पीठ थपथपा रही हैं। लेकिन सरकार इस बिल के साथ ही एक बड़े सरप्राइज पर काम कर रही है। दरअसल इस बिल के साथ ही लोकसभा की सीटों का परिसीमन भी शुरू हो सकता है। बढ़ी हुई सीटों के साथ महिला आरक्षण की नई व्यवस्था लागू की जाएगी। दरअसल, महिलाओं के लिए आरक्षित सीटों की पहचान के लिए परिसीमन आयोग का गठन जरूरी होगा और 2026 तक सीटों की संख्या को लेकर भी परिसीमन होना है। संसद के नए भवन में भविष्य की जरूरतों का ध्यान रखते हुए लोकसभा में 888 सांसदों के बैठने की व्यवस्था भी की गई है। इन सबको देखते हुए कहा जा रहा है कि सरकार एक ही परिसीमन आयोग का गठन कर महिलाओं के लिए सीटें चिह्नित करने और सीटों की संख्या बढ़ाने का काम सौंप सकती है। नया परिसीमन 2026 में होना है लेकिन अभी तक 2021 की जनगणना नहीं हुई है जिसके आंकड़े नए परिसीमन के लिए जरूरी हैं। सवाल ये भी उठ रहे हैं कि नया परिसीमन होगा कैसे?
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क्योंकि जम्मू कश्मीर को देखें या अन्य राज्यों को, विधानसभा सीटों के परिसीमन में भी तकरीबन एक से दो साल का समय लग जाता है। लोकसभा सीटों के परिसीमन के लिए सरकार अगर अभी आयोग गठित करती है तो भी ये कहीं 2027 तक मूर्त रूप ले पाएगी। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर नया परिसीमन संभव नहीं है। सरकार को अगर परिसीमन कराना है तो जनगणना भी जल्द करानी होगी। नया परिसीमन होता है तो हिंदी पट्टी के राज्यों में सीटों की संख्या अधिक बढ़ेगी जहां बीजेपी मजबूत है। दक्षिण के राज्य आबादी के आधार पर सीटों की संख्या बढ़ाने का विरोध करते रहे हैं। मोदी सरकार के लिए नया परिसीमन मास्टर स्ट्रोक कैसे है? इसे केवल उत्तर प्रदेश के उदाहरण से समझा जा सकता है। उत्तर प्रदेश की आबादी 23 करोड़ से अधिक है और ऐसे में 10 लाख की आबादी पर एक सांसद के फॉर्मूले को आधार बनाकर देखा जाए तो सूबे में सीटों की संख्या 230 के करीब पहुंच जाएगी जो इस समय की 80 सीटों से करीब तीन गुना अधिक है। ऐसे में उत्तर भारत के राज्यों में सीटों का बढ़ना दक्षिण के राज्यों में सियासी जमीन बनाने की कोशिश में जुटी बीजेपी के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है।

संविधान के अनुच्छेद 81 के मुताबिक लोकसभा में सदस्यों की अधिकतम संख्या 550 होगी. इस लिहाज से अभी 543 सीटें पर्याप्त नजर आती हैं लेकिन इसी अनुच्छेद में ये भी कहा गया है कि प्रति 10 लाख जनसंख्या पर एक सांसद होना चाहिए। यानी संविधान का अनुच्छेद 81 आबादी के आधार पर सदस्य संख्या के निर्धारण की भी बात करता है। जनसंख्या और सीटों का अनुपात देखें तो यूपी के गाजियाबाद और उन्नाव के साथ ही देश में कई ऐसी सीटें हैं जहां मतदाताओं की तादाद 20 लाख से भी अधिक है।
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