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मिडिल क्लास सिस्टम का शिकार नहीं, खुद जिम्मेदार है: डेटा साइंटिस्ट की पोस्ट पर छिड़ी बहस

सोशल मीडिया पर डेटा साइंटिस्ट की पोस्ट को लेकर बहस छिड़ गई है। इस पोस्ट के हिसाब से मिडिल क्लास सिस्टम का शिकार नहीं, खुद जिम्मेदार है। आर्टिकल में पूरा मामला जानते हैं।

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मुंबई के डेटा साइंटिस्ट मोनिश गोसार की एक लिंक्डइन पोस्ट ने सोशल मीडिया पर बहस छेड़ दी है। उन्होंने मिडिल क्लास की फाइनेंशियल आदतों को लेकर जो सवाल उठाए हैं।  उनके सवाल ने लोगों को सोचने पर मजबूर कर दिया है।

गोसार ने अपने पोस्ट में साफ कहा कि मिडिल क्लास सिर्फ सिस्टम का शिकार नहीं है, बल्कि वो खुद अपनी फाइनेंशियल हालत के लिए जिम्मेदार है। उन्होंने इसे "Unpopular Opinion" बताते हुए लिखा कि मिडिल क्लास सिस्टम का विक्टिम नहीं है, वो खुद इसमें भागीदार है।

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गोसार ने उदाहरण देते हुए बताया कि उनका एक दोस्त का सालाना ₹15 लाख कमाता है, लेकिन फिर भी ₹10 लाख की कार ईएमआई पर खरीदता है, जबकि ₹3 लाख में सेकंड हैंड कार आसानी से मिल सकती थी। जब गोसार ने वजह पूछी तो दोस्त ने कहा कि मैं डिजर्व करता हूं। गोसार ने इस सोच को बैंकों की चाल बताया और कहा कि यही वो मानसिकता है जो हमें कर्ज के जाल में फंसाती है।

बढ़ता कर्ज और घटती समझदारी

भारत में क्रेडिट कार्ड डेब्ट बीते चार साल में दोगुना होकर ₹2.92 लाख करोड़ पहुंच चुका है। पर्सनल लोन (Personal Loan) भी 75% तक बढ़ गए हैं। गोसार कहते हैं कि किसी ने हमें कार्ड स्वाइप करने के लिए मजबूर नहीं किया। उनका मानना है कि आम लोग जरूरत और चाहत के बीच फर्क करना भूल चुके हैं।

सोशल मीडिया और दिखावे की होड़

गोसार का कहना है कि इंस्टाग्राम और सोशल मीडिया पर लोगों की जिंदगी देखकर हम अपनी इनकम को कम आंकने लगते हैं, जबकि हम भारत के टॉप 10% अर्नर्स में होते हैं। लेकिन फिर भी iPhone, महंगी गाड़ियां और फैंसी लाइफस्टाइल को पाने की चाहत में हम खुद को आर्थिक तंगी में डालते हैं।

गोसार ने यह भी कहा कि आम लोग 36% क्रेडिट कार्ड ब्याज देना तो मंजूर कर लेते हैं, लेकिन 12% म्यूचुअल फंड रिटर्न को नजरअंदाज कर देते हैं। उन्हें सिर्फ लो EMI आकर्षित करती है, लेकिन इसके पीछे छिपे भारी ब्याज की कोई परवाह नहीं करते। यही वजह है कि आम लोग कमाते तो हैं, लेकिन बचा नहीं पाते।

गोसार ने आखिर में लिखा कि सिस्टम ने हमें नहीं फंसाया, हमने खुद को फंसाया। उन्होंने कहा कि अब वक्त है कि मिडिल क्लास अपनी फाइनेंशियल प्लानिंग पर गंभीरता से सोचे और खुद जिम्मेदारी ले। सिर्फ सरकार या सिस्टम को कोसने से कुछ नहीं होगा।

हालांकि इस पोस्ट को लेकर सोशल मीडिया पर मिली-जुली रिएक्शन देखने को मिल रही है। कुछ लोगों ने इसे कड़वा सच माना, तो कुछ ने गोसार के नजरिए की आलोचना की। आलोचकों का कहना है कि मिडिल क्लास को दोष देना सही नहीं है क्योंकि असली समस्या कम सैलरी ग्रोथ, महंगाई और सोशल सिक्योरिटी की कमी है।

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