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लड़कों में डर का माहौल! 'बेवफा' सोनम केस के बाद बैचलर लाइफ vs शादी पर छीड़ी बहस

सोनम और मुस्कान केस के बाद सोशल मीडिया पर बैचलर लाइफ vs शादी को लेकर बहस छिड़ गई है। चलिए एक्सपर्ट से जानते हैं कि अकेले रहना कितना सही है।

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इंदौर के राजा रघुवंशी हत्याकांड ने देश भर को झकझोर दिया है। 23 मई को महज 11 दिन की शादी के बाद पत्नी सोनम रघुवंशी ने अपने प्रेमी राज कुशवाहा के साथ मिलकर पति की हत्या करा दी। इस घटना ने न केवल रिश्तों की बुनियाद को सवालों के घेरे में डाला है, बल्कि युवाओं को सोचने पर मजबूर किया है कि क्या अब अकेले रहना ही बेहतर है?

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सोनम ने पारिवारिक दबाव में शादी की, जबकि वह राज से प्यार करती थी। उसने पुलिस को बताया कि वह राजा के साथ असहज थी और उससे छुटकारा चाहती थी। मनोवैज्ञानिक डॉ. चंद्र प्रकाश के अनुसार, यह एक उदाहरण है कि भावनात्मक अस्थिरता और सामाजिक दबाव किस तरह विनाशकारी फैसले की ओर ले जा सकते हैं।

बैचलर लाइफ vs शादी पर छीड़ी बहस

इस घटना के बाद सोशल मीडिया पर बैचलर लाइफ vs शादी को लेकर बहस छिड़ गई है। युवा कह रहे हैं - “जब रिश्ते इतने खतरनाक हो सकते हैं तो अकेले रहना बेहतर है।” कानपुर के अभिनेता सुधांशु शर्मा कहते हैं, “शादी का रिस्क क्यों लें? अकेले रहकर खुद की जिंदगी बेहतर जी सकता हूं।”

मनोवैज्ञानिक डॉ. सत्यकांत त्रिवेदी बताते हैं कि अकेलेपन और एकाकीपन में बड़ा फर्क है। अकेलापन अगर व्यक्ति की इच्छा से चुना गया हो तो यह आत्म-जागरूकता, रचनात्मकता और मानसिक शांति का स्रोत बन सकता है। बीबीसी की रिपोर्ट में फ्लोरा त्सापोव्स्की की रिपोर्ट के मुताबिक अकेले रहना एक स्वस्थ मानसिक विकल्प हो सकता है, अगर उसे सकारात्मक रूप से अपनाया जाए।

डंडी यूनिवर्सिटी के शोध और पीटर मैकग्रा की किताब ‘Solo’ दोनों इस बात को समर्थन देते हैं कि रिश्ते जरूरी हैं, लेकिन खुश रहने के लिए वे अनिवार्य नहीं।

भारत में भी यह सोच पनप रही है। गुरुग्राम के कॉर्पोरेट कर्मी निखिल तिवारी ने कहा कि, “मैं शादी के प्रेशर से दूर हूं और अपने तरीके से जिंदगी जी रहा हूं।” वंश शुक्ला जैसे छात्र कहते हैं, “रिश्तों में विश्वास करना अब कठिन लगने लगा है।”