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सैलरी उतनी तेजी से बढ़ नहीं रही फिर गुरुग्राम में कौन खरीद रहा है प्रॉपर्टी? सामने आई चौंकाने वाली सच्चाई

सवाल उठता है: जब सैलरी उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा तो फिर ये घर खरीद कौन रहा है? सिग्नेचर ग्लोबल के अमित काइकर ने बताई चौंकाने वाली सच्चाई।

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रियल एस्टेट की कीमतें आसमान छू रही हैं, लेकिन घरों की बिक्री अब भी जारी है। सवाल उठता है: जब सैलरी उतनी तेजी से नहीं बढ़ रहा तो फिर ये घर खरीद कौन रहा है? सिग्नेचर ग्लोबल के अमित काइकर के मुताबिक, आज घर खरीदने का फैसला सिर्फ सैलरी पर नहीं, बल्कि पहले से मौजूद संपत्ति, पारिवारिक समर्थन और फाइनेंशियल लिवरेज पर टिका है।

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रियल एस्टेट सलाहकार विशाल भार्गव के साथ पॉडकास्ट बातचीत में काइकर ने बताया कि गुरुग्राम जैसे बाजारों में भले ही कीमतें तेजी से बढ़ी हों, लेकिन तकनीकी रूप से ‘अफॉर्डेबिलिटी’ यानी वहन क्षमता बेहतर हुई है। उन्होंने कहा, “मुंबई में ईएमआई-टू-इनकम रेश्यो पहले 90% था, जो अब 50% तक आ गया है। एनसीआर में यह 55% से घटकर लगभग 30% हो गया है।”

काइकर ने आगे कहा कि हालांकि, इसका मतलब यह नहीं है कि लोगों की आमदनी अचानक बढ़ गई है। असल में, NCR जैसे क्षेत्रों में खरीदारों की प्रोफाइल ही बदल गई है। “मुंबई में ज्यादातर खरीदार पहले किराये पर रहते हैं, फिर सेविंग्स करके घर लेते हैं। लेकिन एनसीआर में कई खरीदार पहले से संपत्ति के मालिक हैं या उन्होंने संपत्ति विरासत में पाई है,”

ये संपत्तियां या तो बेच दी जाती हैं या लोन लेने के लिए गारंटी के रूप में इस्तेमाल की जाती हैं। इससे लोन की जरूरत घटती है और मंथली ईएमआई भी कम होती है। काइकर ने  कहा कि इन लोगों की ईएमआई कम इसलिए नहीं है कि सैलरी बहुत बढ़ गई है, बल्कि इसलिए कि वे जीरो से शुरू नहीं कर रहे। 

काइकर के मुताबिक, एक मिड-सेगमेंट घर के लिए दंपति की संयुक्त मासिक आय ₹2.5–3 लाख होनी चाहिए, जबकि प्रीमियम हाउसिंग के लिए ₹5–6 लाख मासिक। अधिकांश खरीदार ₹50–75 लाख की सेविंग्स डाउन पेमेंट के लिए लाते हैं और ₹1–1.5 करोड़ का होम लोन लेते हैं।

आज घर खरीदने की अफॉर्डेबिलिटी आपकी इनकम से कहीं ज़्यादा इस बात पर निर्भर करती है कि आपके पास पहले से क्या है।