मुखर्जी ने कहा कि भारत में करीब 4 करोड़ व्हाइट कॉलर नौकरी करने वाले लोग सीधे तौर पर लगभग 20 करोड़ नौकरियां पैदा करते हैं। अगर इनकी आय और रोजगार में सुधार नहीं हुआ, तो मध्यम वर्ग की आर्थिक परेशानी लंबे समय तक बनी रह सकती है। इसका असर देश की आर्थिक रफ्तार पर भी पड़ सकता है।
पैसों की तंगी से जूझ रहा है भारतीय मिडिल क्लास, घट रही खपत - एक्सपर्ट ने भविष्य के लिए दी चेतावनी
मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सौरभ मुखर्जी ने अपने ब्लॉग में कहा कि दिवाली 2023 के बाद से कॉरपोरेट मुनाफे की ग्रोथ बुरी तरह प्रभावित हुई है और इसका बड़ा कारण है मिडिल क्लास की घटती खपत।

Middle Class Spending Fall: क्या भारतीय मध्यम वर्ग के पास पैसे खत्म हो रहे हैं? मार्सेलस इन्वेस्टमेंट मैनेजर्स के सौरभ मुखर्जी ने अपने ब्लॉग में कहा कि दिवाली 2023 के बाद से कॉरपोरेट मुनाफे की ग्रोथ बुरी तरह प्रभावित हुई है और इसका बड़ा कारण है मिडिल क्लास की घटती खपत। उन्होंने लिखा कि कंपनियों की इनकम फिसल रही है क्योंकि मध्यम वर्गीय भारतीयों की जेबें खाली होती जा रही हैं।
एक्सपर्ट ने गिनाएं तीन बड़े कारण
सौरभ मुखर्जी के मुताबिक, व्हाइट कॉलर जॉब में गिरावट, वास्तविक मजदूरी में कमी और एआई का बढ़ता असर, मिडिल क्लास की आर्थिक ताकत को कमजोर कर रहे हैं। उनका कहना है कि यही इंजन भारत की लंबी अवधि की विकास गति को धीमा कर रहा है।
घरेलू बचत 50 साल के न्यूनतम स्तर पर
आरबीआई के आंकड़ों का हवाला देते हुए सौरभ मुखर्जी ने बताया कि FY24 में जीडीपी के हिस्से के रूप में घरेलू बचत 1977 के बाद सबसे निचले स्तर पर आ गई है। खपत, जो जीडीपी का 60% है, 2021-23 के बाद से लगातार घट रही है। एसयूवी, घर और ट्रैवल जैसी कैटेगरी, जहां कभी तेज उछाल था, वहां अब डिमांड ठंडी पड़ गई है। निफ्टी पर लिस्टेड कंपनियों ने FY25 में आय में सबसे तेज गिरावट दर्ज की।
नौकरी बाजार में ठहराव
मुखर्जी ने बताया कि 2020 से पहले व्हाइट कॉलर जॉब हर छह साल में दोगुनी हो जाती थीं। अब ग्रोथ रेट सालाना सिर्फ 3% है, यानी नौकरियों को दोगुना होने में 24 साल लगेंगे। आईटी, सॉफ्टवेयर और रिटेल जैसे सेक्टर स्थिर हैं। उन्होंने टीसीएस का उदाहरण देते हुए कहा कि कंपनी ने जुलाई 2025 में एआई के विस्तार के चलते 12,000 नौकरियां घटाने का एलान किया।
वेतन महंगाई से कम
Nifty-50 कंपनियों के एनालिसिस में सामने आया कि पिछले 8 सालों में कर्मचारियों का औसत वेतन महंगाई की रफ्तार से मेल नहीं खा पाया। 2016 से पहले जहां वेतन कम से कम लागत के बराबर बढ़ता था, आज व्हाइट कॉलर जॉब वाले कर्मचारी असल मायनों में गरीब हो रहे हैं।
भविष्य के लिए चेतावनी