ED ने जिस PMLA में Arvind Kejriwal को किया अरेस्ट, उसमें क्यों नहीं मिलती आसानी से बेल?
पीएमएलए के तहत जमानत की दोहरी शर्तों पर शीर्ष अदालत ने कहा था, 'हालांकि, दो शर्तें आरोपी के जमानत के अधिकार को सीमित करती हैं, लेकिन इस पर पूरी तरह रोक नहीं लगाती हैं। यह प्रावधान, जैसा कि 2018 में संशोधन के बाद लागू है, उचित है और इसमें मनमानी या अनुचितता नहीं है।

प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने गुरुवार को शराब घोटाले से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग मामले की जांच के सिलसिले में दिल्ली के मुख्यमंत्री Arvind Kejriwal को PMLA के तहत गिरफ्तार कर लिया है। केजरीवाल को आज स्पेशल पीएमएलए कोर्ट में पेश किया जाएगा और ईडी पूछताछ के लिए उनकी हिरासत की मांग करेगी। दिल्ली के सीएम ने गुरुवार देर रात अपनी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए Supreme Court का रुख किया है। शीर्ष अदालत इस मामले पर भी आज सुनवाई करेगी। दरअसल, ईडी ने अरविंद केजरीवाल को जिस कानून (Prevention of Money Laundering Act, 2002) के तहत गिरफ्तार किया है, उसमें जमानत मिलनी बहुत मुश्किल होती है। यह कानून साल 2002 में पारीत हुआ था और इसे 1 जूलाई 2005 को लागू किया गया था। इस कानून का मुख्य उद्देश्य मनी लॉन्ड्रिंग को रोकना है। साल 2012 में पीएमएलए में संशोधन कर बैंको, म्यूचुअल फंड्स, बीमा कंपनियो को भी इसके दायरे में लाया गया।
आरोपी को साबित करनी होती है अपनी बेगुनाही
इस कानून की धारा 45 में आरोपी की जमानत के लिए दो कठोर शर्तें हैं। PMLA के तहत सारे अपराध संज्ञेय और गैर जमानती होंगे। इस कानून में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है। ईडी को पीएमएलए कानून के तहत कुछ शर्तों के साथ बिना वारंट आरोपी के परिसरों की तलाशी लेने और उसे गिरफ्तार करने, संपत्ति की जब्ती और कुर्की का अधिकार प्राप्त है। पीएमएलए के तहत अरेस्ट होने वाले को ही अदालत में यह साबित करना होता है कि उस पर लगे आरोप बेबुनियाद हैं। जेल में रहते हुए आरोपी के लिए खुद को निर्दोष साबित कर पाना आसान नहीं होता। उदाहरण के लिए दिल्ली की आम आदमी पार्टी सरकार के ही दो पूर्व मंत्री मनीष सिसोदिया और सत्येंद्र जैन पीएमएलए के तहत जेल में हैं। एक अन्य AAP नेता संजय सिंह भी पीएमएलए में गिरफ्तार हुए थे और फिलहाल जेल में हैं।
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PMLA की धारा 45 में जमानत की दो कठोर शर्तें
मौजूदा सरकार ने 2018 में पीएमएलए में एक और संशोधन करते हुए इसकी धारा 45 में आरोपी की जमानत के लिए दो कठोर शर्तें जोड़ दी थीं। ये दो शर्तें थीं, जमानत याचिका के खिलाफ लोक अभियोजक को सुनने के लिए अदालत के के पास यह मानने के लिए उचित आधार हो कि आरोपी अपराध का दोषी नहीं है और जमानत पर रहने के दौरान उसके द्वारा कोई अपराध करने की आशंका नहीं है।पीएमएलए में इस संशोधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट में करीब 100 याचिकाएं दायर हुई थीं। इन याचिकाओं में पीएमएलए एक्ट के तहत ईडी को गिरफ्तारी, संपत्ति जब्त करने के अधिकार देने और जमानत की दोहरी शर्तों पर सवाल उठाए गए थे।
PMLA के तहत ED के अधिकारों को SC में दी गई थी चुनौती
याचिकाओं में ईडी को मिले इन अधिकारों को सीआरपीसी के दायरे से बाहर बताते हुए पीएमएलए एक्ट को असंवैधानिक बताया गया था।सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में 27 जुलाई 2022 को अपना फैसला सुनाया था और ईडी के अधिकारों को बरकरार रखा। साथ ही शीर्ष अदालत ने पीएमएलए में साल 2018 के संशोधन को भी सही ठहराया था। जस्टिस एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय पीठ ने कहा था कि मनी लॉन्ड्रिंग एक जघन्य अपराध है, जो न केवल राष्ट्र के सामाजिक और आर्थिक ताने-बाने को प्रभावित करता है, बल्कि अन्य जघन्य अपराधों को बढ़ावा देता है। इस पीठ के दो अन्य जज जस्टिस दिनेश माहेश्वरी और जस्टिस सीटी रविकुमार थे।
ED के अधिकारों, जमानत की 2 शर्तों को SC ने बरकरार रखा
पीएमएलए के तहत जमानत की दोहरी शर्तों पर शीर्ष अदालत ने कहा था, 'हालांकि, दो शर्तें आरोपी के जमानत के अधिकार को सीमित करती हैं, लेकिन इस पर पूरी तरह रोक नहीं लगाती हैं। यह प्रावधान, जैसा कि 2018 में संशोधन के बाद लागू है, उचित है और इसमें मनमानी या अनुचितता नहीं है। बता दें कि धन शोधन यानी मनी लॉन्ड्रिंग का मतलब अवैध रूप से अर्जित आय या धन को छिपाना या वैध बनाना है। अपराधी ऐसा इसलिए करते हैं, ताकि उनके द्वारा अवैध रूप से अर्जित धन, वैध स्रोतों से उत्पन्न प्रतीत हो।