
बढ़ते यात्री, घटती एयरलाइंस, महंगे टिकट, क्या करेंगे यात्री
भारत में विमानन के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों के मद्देनजर कई भारतीय कंपनियों ने एयरलाइंस बिज़नेस में हाथ आजमाए लेकिन विमान ईंधन की कीमतों में वृद्धि, एयरपोर्ट्स पर लगने वाला टैक्स, आपसी प्रतिस्पर्द्धा और सरकार की विमानन नीति में खामियों के कारण आज हालात ये है कि बहुत ही कम एयरलाइंस रह गई हैं और लोगों के पास विकल्प कम रह गए हैं। कई बार यात्री शिकायत करते हैं कि कई खास रूट्स पर तो मनमाना किराया भी वसूला जाने लगा है।

भारत में विमान के क्षेत्र में उपलब्ध अवसरों के मद्देनजर कई भारतीय कंपनियों ने एयरलाइंस बिज़नेस में हाथ आजमाए लेकिन विमान ईंधन की कीमतों में वृद्धि, एयरपोर्ट्स पर लगने वाला टैक्स, आपसी प्रतिस्पर्द्धा और सरकार की विमानन नीति में खामियों के कारण आज हालात ये है कि बहुत ही कम एयरलाइंस रह गई हैं और लोगों के पास विकल्प कम रह गए हैं। कई बार यात्री शिकायत करते हैं कि कई खास रूट्स पर तो मनमाना किराया भी वसूला जाने लगा है। लेकिन ऐसा नहीं है कि एयरलाइंस कंपनियां मुनाफे में रही हैं। पिछले 20 सालों में विमानन कंपनियों को भारी घाटा उठाना पड़ा है। एयरलाइन सेक्टर इस समय बुरे दौर से गुजर रहा है। जहां एक तरफ किंगफिशर एयरलइंस और जेट एयरवेज डूब चुकी है, वही दूसरी ओर बजट एयरलाइन गो फर्स्ट दिवालिया होने की कगार पर है। इसके लिए कंपनी ने खुद ही NCLT में वॉलंटरी इनसॉल्वेंसी प्रॉसीडिंग के लिए आवेदन दिया है। आज हम आपको बताएंगे कि भारतीय विमान सेक्टर आखिर ऐसा क्या हो गया है कि एक के बाद एक कंपनी घाटे में चली गई। आइये नज़र डालते हैं कि एयरलाइंस कंपनियों के इतिहास पर
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किंगफिशर एयरलाइंस
भगोड़े कारोबारी विजय माल्या ने सन् 2003 में इस एयरलाइंस की स्थापना की थी और साल 2005 में सिगल क्लास इकोनॉमी के रुप में इस एयरलाइन ने अपना परिचालन शुरु किया था। शुरुआती कुछ सालों में किंगफिशर एयरलाइंस ने मोटा मुनाफा कमाया और कर्ज में डूबी एयर डेक्कन को साल 2008 में खरीद लिया। आंकड़ों की मानें तो साल 2011 में घरेलू उड़ानों के मामलों में किंगफिशर की दूसरी सबसे बड़ी हिस्सेदारी थी। । इसके बाद साल 2014 के अंत में इसे डिफॉल्टर घोषित कर दिया गया।

जेट एयरवेज
1992 में जेट एयरवेज की शुरुआत हुई थी। एक साल बाद एयरलाइन ने दो विमान बोइंग 737 और बोइंग 300 के साथ परिचालन शुरु किया और कंपनी ने तगड़ा मुनाफा कमाते हुए भारतीय एयरलाइन में सबसे उंची उड़ान भरी। साल 2006 में जेट एयरवेज ने एयर सहारा को करीब 2000 करोड़ रुपये में खरीद कर अपने बेड़े में 27 नए विमान शामिल कर लिए। इसके बाद जेट एयरवेज ने पीछे मुड़ कर नही देखा और घरेलू उड़ानों के साथ-साथ कंपनी ने अंतरराष्ट्रीय उड़ानें भी शुरु कर दीं। अंतरराष्ट्रीय उड़ान शुरु करने का फैसला गलत साबित हुआ और कंपनी की वित्तीय परेशानियां शुरु हो गई। साथ ही साथ घरेलू उड़ानों के लिए मार्केट में इंडिगो एयरलाइन ने अपनी पकड़ मजबूत करने लगी और नतीजतन 2012 के मध्य तक इंडिगो ने घरेलू बाजार में जेट का मार्केट शेयर तोड़ दिया। भारी घाटे और कर्ज के कारण जेट एयरवेज ने अप्रैल 2019 में अपना सारा परिचालन बंद कर खुद को दिवालिया घोषित कर दिया। इसके बंद होते ही करीब 17 हजार कर्मचारियों की नौकरयां चली गई।

गो फर्स्ट
गो फर्स्ट ने साल 2005 में एविएशन सेक्टर में आई थी। पिछले तीन सालों में इसके प्रमोटरों ने 3,200 करोड़ रुपये का बड़ा निवेश किया था और पिछले दो सालों में 2,400 करोड़ रुपये का निवेश किया था। वर्तमान में गो फर्स्ट की हालत ये हो चुकी है कि अपने ऑपरेशनल क्रेडिटर्स की पेमेंट भी नहीं कर पाई। कंपनी को एविएशन फ्यूल का भुगतान करना था, जो कंपनी नहीं कर सकी, जिसके चलते कंपनी को सभी उड़ानों को रद्द करना पड़ा है। वर्तमान में घरेलू मार्गों पर 81% से ज्यादा बाजार हिस्सेदीरी इंडिगो और टाटा समूह की है। बाकी 19% मे से भी करीब 15% हिस्सेदीरी दो कंपनियों की है। इनमें से एक गो फर्स्ट का ऑपरेशन बंद हो गया है और स्पाइसजेट की हलत भी ठीक नहीं है। एक्सपर्स्ट्स का कहना है कि घरेलू एविएशन सेक्टर डुओपॉली की तरफ बढ़ रहा है। मतलब बाजार में दो कंपनियों या समूह का ही दबदबा होगा।

कहने को तो देश में 15 विमानन कंपनियां हैं। लेकिन सिर्फ 7 ऑपरेशनल हैं। इनमें दो (गो फर्स्ट और स्पाइसजेट) की माली हालत खराब है और (Air India, Vistara) मर्ज होने वाली है। आकासा ऑपरेट तो कर रही है, लेकिन नाम के लिए। कंपनी के पास बाजार हिस्सेदारी 0.5% भी नही है। विमानन नियामक DGCA के आंकड़ों के मुताबिक, अप्रैल में घरेलू एयर ट्रैफिक 15% बढ़ा। बीते माह रोजाना 4.3 लाख पैसंजर ने फ्लाइट से यात्रा की। इसके मुकाबले खत्म वित्त वर्ष 2022-2023 में रोज औसत 3.73 लाख लोगों ने फ्लाइट ली थी। अगर एयर लाइंस कंपनियां ऐसे ही ग्राउंडेड होते रहे तो आने वाले दिनों में हवाई यात्रा करने वाले यात्रियों का क्या होगा। अति तीव्र यात्रा करना कितना मुश्किल होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। इसपर सरकार की नीतियों में बदलाव आती है या एयरलाइन कपनियां अपने बिज़नेस पॉलिसी में बदलाव लाती है ये देखना होगा।
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