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फिच ने घटाई अमेरिका की रेटिंग, अमेरिकी बाज़ार दबाव में

लंबे वक्त बाद ऐसा हुआ है। साल 2011 के बाद अमेरिका की रेटिंग में पहली बार कटौती की गई है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस फिच ने अमेरिका को टॉप रेटिंग दे रखी थी, उसने ऐसा कदम आखिर उठाया क्यों?

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अमेरिकी बाज़ार दबाव में
अमेरिकी बाज़ार दबाव में

दुनिया का सबसे ताकतवर और सबसे बड़ी इकोनॉमी वाले देश अमेरिका को 440 वॉट का झटका लगा है। आप भी सोच रहे है होंगे कि अमेरिका को भला कौन झटका दे सकता है। तो आपको बताएं कि अमेरिका की क्रेडिट रेटिंग एजेंसी Fitch ने अमेरिका को हिला कर रख दिया है। इतना ही नहीं फिच के कदम पर व्हाइट हाउस की ओर से तीखी प्रतिक्रिया दी गई है। 

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दरअसल फिच ने अमेरिका की रेटिंग को AAA से घटाकर AA+ कर दिया है। लंबे वक्त बाद ऐसा हुआ है। साल 2011 के बाद अमेरिका की रेटिंग में पहली बार कटौती की गई है। अब ऐसे में सवाल उठता है कि जिस फिच ने अमेरिका को टॉप रेटिंग दे रखी थी, उसने ऐसा कदम आखिर उठाया क्यों?

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फिच का कहना है कि अमेरिका की वित्तीय स्थिति और बढ़ते कर्ज चिंता का विषय है। अमेरिका में पिछले 20 साल में गवर्नेंस की स्थिति बदतर हुई है। डेट सीलिंग बढ़ाने को लेकर बार-बार हो रहे राजनीतिक गतिरोध के चलते देश के फिस्कल मैनेजमेंट में दुनिया का भरोसा अमेरिका के प्रति डगमगाया है। 2023 में सरकार का घाटा GDP के 6.3 परसेंट पहुंचने का अनुमान है जो 2022 में 3.7 प्रतिशत था। साथ ही डेट टु GDP रेश्यो भी बढ़ने की आशंका है। बढ़ती ब्याज दरों के कारण ब्याज महंगा हो गया है। अमेरिकी मार्केट में आगे भी दबाव देखने को मिल सकता है। 

फिच के रेटिंग डाउनग्रेड के फैसला का असर कितना व्यापक होगा, ये आपको बताएंगे लेकिन पहले जानिए कि फिच के इस कदम की अमेरिकी सरकार ने कड़ी आलोचना की है। अमेरिका की वित्त मंत्री जेनेट येलेन ने इसे फैसले को मनमाना और पुराने डेटा पर आधारित बताया है। येलेन का साफ कहना है कि अमेरिकी अर्थव्यवस्था तेजी से महामारी की मंदी से उबर गई है, बेरोजगारी दर 50 साल के निचले स्तर के करीब है और अप्रैल-जून तिमाही में अर्थव्यवस्था 2.4% की मजबूत सालाना दर से बढ़ रही है।

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फिच दुनिया की तीन बड़ी इंडिपेंडेंट रेटिंग एजेंसियों में से एक है जो किसी भी देश या कंपनी की क्रेडिट साख का आकलन करती है। इसके मायने ये हुए कि दुनियाभर के निवेशक क्रेडिट रेटिंग्स के बेंचमार्क के आधार पर ही निवेश करते हैं। इस रेटिंग के जरिए ही पता चलता है कि किसी कंपनी या सरकार के इंस्ट्रूमेंट्स में पैसा लगाने में कितना जोखिम है। अब बात करते हैं कि फिच के फैसला का अमेरिका पर क्या असर होगा? 

इससे मोर्टेगेज रेट्स पर असर हो सकता है। इससे इनवेस्टर्स अमेरिकी ट्रेजरीज को बेच सकते हैं। इससे यील्ड में बढ़ोतरी होगी जिससे सबकुछ महंगा हो सकता है। कई तरह के लोन के इंटरेस्ट रेट्स में इसे रेफरेंस माना जाता है। फिच के रेटिंग घटाने के बाद अमेरिका ऑस्ट्रिया और फिनलैंड के बराबरी पर आ गया है लेकिन स्विट्जरलैंड और जर्मनी से नीचे हो गया है। 

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अमेरिकी सरकार के इंस्ट्रूमेंट्स में निवेश को सबसे सुरक्षित माना जाता है क्योंकि इसकी इकोनॉमी का साइज दुनिया में सबसे बड़ा है और उसमें दूसरे देशों के बजाय ज्यादा स्थिरता है। इतना ही नहीं इसका असर भारत की IT कंपनियों पर भी देखने को मिलेगा, क्योंकि अगर अमेरिका की रेटिंग को डाउनग्रेड किया जाएगा तो निवेश में कटौती होगी, जिससे डिमांड भी कम होने की संभावना है।