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संसद में सुरक्षा को लेकर कौन है जिम्मेदार ! संसद में कितने लेयर की होती है सुरक्षा? पढ़िए पूरी खबर

जब प्रधानमंत्री संसद पहुंचते हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए एसपीजी से तालमेल का काम भी पीएसएस का है। लोकसभा और राज्यसभा के अपने सुरक्षा घेरे भी होते हैं। लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव (सिक्योरिटी) संसद की पूरी सुरक्षा के प्रमुख होते हैं। सारी एजेंसियां इन्हीं को रिपोर्ट करती हैं।

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संसद की सुरक्षा के लिए मल्टीलेयर घेरा होता है
संसद की सुरक्षा के लिए मल्टीलेयर घेरा होता है

आज हर किसी के मुंह पर यही सवाल है कि आखिर Sagar Sharma और D.Manoranjan इतनी सख्त सुरक्षा को पार करके संसद के अंदर कैसे पहुंच गए? कैसे कोई सागर के पास मौजूद कलर पटाखा नहीं पकड़ पाया। आइए जानते हैं कि संसद में कितने लेयर की सुरक्षा होती है और किसके हाथों में सिक्योरिटी की जिम्मेदारी होती है? जब कोई संसद के अंदर जाता है तो कितनी बार उसकी चेकिंग की जाती है। बता दें कि संसद की सुरक्षा की जिम्मेदारी पार्लियामेंट्री सिक्योरिटी सर्विस (PSS), पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG), सुरक्षा एजेंसियों और दिल्ली पुलिस के जिम्मे होती है। सीसीटीवी कैमरों, दिल्ली पुलिस और तमाम एजेंसियां मिलकर संसद की सुरक्षा करती हैं। संसद भवन के अलग-अलग भागों में तैनाती की सबसे मुख्य वो लेयर होती है जहां पर संसद भवन के अंदर की सुरक्षा की जाती है। यहां पर 2000 से ज्यादा सुरक्षाकर्मियों की अलग-अलग भागों में तैनाती रहती है। संसद की सुरक्षा के लिए मल्टीलेयर घेरा होता है। इसमें एलीट सुरक्षा एजेंसियों के अफसर और जवानों के अलावा संसद की अपना सिक्योरिटी ग्रुप का घेरा शामिल होता है। पास लेकर विजिटर गैलरी तक जाने वाले लोगों की बहुत बारीकी से जांच की जाती है है। इसके बावजूद चूक का मामला सामने आया है। पार्लियामेंट की सिक्योरिटी के सबसे बाहरी घेरे में दिल्ली पुलिस के जवानों की तैनाती होती है। बाहर से आने वाले लोगों पर दिल्ली पुलिस की कड़ी निगाह रहती है। यहां निगरानी के लिए दिल्ली पुलिस की ही जिम्मेदारी होती है। पुलिस यहां वीवीआईपी लोगों को सुरक्षा मुहैया कराने से लेकर उन्हें एस्कॉर्ट करने तक का काम करती है। पार्लियामेंट के आसपास अलग-अलग एजेंसियों के जवान तैनात रहते हैं। इनमें आईटीबीपी, एनएसजी और सीआरपीएफ के कमांडो प्रमुख हैं। दिल्ली पुलिस की एंटी टेररिस्ट स्वाट टीम की भी यहां तैनाती रहती है। दिल्ली पुलिस के कमांडो भी इसमें शामिल होते हैं। उनके पास हथियार और वाहन होते हैं। संसद की सुरक्षा में तीसरा घेरा केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (CRPF) के पार्लियामेंट ड्यूटी ग्रुप (PDG) का होता है। इस घेरे को बनाने का काम 13 दिसंबर 2001 को संसद पर हमले के बाद हुआ था।

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स्पेशल कमांडो ट्रेनिंग लिए इस ग्रुप में ज्यादातर सुरक्षाकर्मी अर्धसैनिक बलों से आते हैं। पार्लियामेंट की सुरक्षा में चौथा घेरा पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (PSS) का होता है। लोकसभा और राज्यसभा में सांसदों की सुरक्षा के लिए यही सिक्योरिटी सर्विस तैनात रहती है। दोनों सदनों के लिए अलग-अलग सुरक्षा का इंतजाम होता है। यह सेवा विजिटर्स पास से आए लोगों, मीडियाकर्मियों और अन्य की सुरक्षा से जुड़ी गतिविधियों के लिए जिम्मेदार होती है। इसके अलावा कैमरों से भी संसद में नजर रखी जाती है। पार्लियामेंट का अपना इंटीग्रेटेड सिक्योरिटी सिस्टम अलग होता है। इसमें सैकड़ों की संख्या में सीसीटीवी जुड़े होते हैं। एक कंट्रोल रूम से वहां तैनात सुरक्षाकर्मी लाइव फीड देखकर, उस पर नजर रखते हैं। हर आने वाले शख्स की चेकिंग होती है। संदिग्ध हरकत करने पर अलार्म बजने लगते हैं। दोनों सदनों में तैनात मार्शल पार्लियामेंट सिक्योरिटी सर्विस (PSS) को रिपोर्ट करते हैं। जब प्रधानमंत्री संसद पहुंचते हैं तो उनकी सुरक्षा के लिए एसपीजी से तालमेल का काम भी पीएसएस का है। लोकसभा और राज्यसभा के अपने सुरक्षा घेरे भी होते हैं।  लोकसभा सचिवालय में संयुक्त सचिव (सिक्योरिटी) संसद की पूरी सुरक्षा के प्रमुख होते हैं। सारी एजेंसियां इन्हीं को रिपोर्ट करती हैं।