
Uttarkashi Tunnel: 17 दिन,41 मजदूर,सरकार की कड़ी मशक्कत,ऑपरेशन हुआ पूरा,पढ़िए एक-एक दिन की कहानी
मजदूरों के बाहर आते ही रेस्क्यू में लगी टीम ने भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिए। 17 दिन बाद उस टनल से बाहर आने की खुशी मजदूरों के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी।

Uttarkashi में सभी 41 मज़दूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया गया है। बीते कल देर शाम सभी मजदूरों को NDRF की टीम ने बाहर निकाला। इस दौरान उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री Pushkar Singh Dhami मौके पर मौजूद रहे। सीएम धामी ने मजदूरों को माला पहनाकर उनका स्वागत किया। इसके बाद सभी मजदूरों को अस्पताल ले जाया गया, जहां उनका प्राथमिक उपचार किया जा रहा है। मजदूरों को उत्तराखंड सरकार की ओर से 1-1 लाख रूपए की मदद दी जाएगी। साथ ही धामी सरकार ने कंपनी से अपील की है कि वो निकाले गए 41 मजदूरों को वेतन के साथ 10-15 दिनों की छुट्टी दे। इस बीच PM Modi ने भी फोन पर मजदूरों से बात की। टनल में फसे मजदूरों के लिए देश दुनिया के एक एक लोग प्रार्थना कर रहे थे। 17 दिन का रेस्क्यू ऑपरेशन और 422 घंटे की कड़ी जंग। आखिरकार Silkyara Tunnel में फंसी 41 जिंदगियां बाहर आ ही गईं। मजदूरों के बाहर आते ही रेस्क्यू में लगी टीम ने भारत माता की जय के नारे लगाने शुरू कर दिए। 17 दिन बाद उस टनल से बाहर आने की खुशी मजदूरों के चेहरे पर साफ दिखाई दे रही थी। 17 दिनों के ऑपरेशन में कई तरह के चैलेंज का सामना करना पड़ा। इस खास कहानी में आज हम आपको बताएँगे की 17 दिनों की पूरी कहानी।
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12 नवंबर
12 नवंबर की सुबह, जब देशभर में दिवाली मनाने की तैयारी थी। सुबह करीब 5.30 बजे उत्तरकाशी के सिल्क्यारा टनल में भूस्खलन हुआ। पहले खबर आई कि 36 मजदूर फंसे हैं। इसके बाद पता चला कि अंदर 40 मजदूर हैं। इसके बाद मजदूरों को बचाने का ऑपरेशन शुरू हुआ। रेस्क्यू ऑपरेशन के लिए एनडीआरएफ, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रतिवादन बल, सीमा सड़क संगठन और परियोजना का निर्माण करने वाली राष्ट्रीय राजमार्ग एवं अवसंरचना विकास निगम (NHIDCL) और भारत-तिब्बत सीमा पुलिस(ITBP) समेत विभिन्न एजेंसियां शामिल हुईं।
13 नवंबर
मजदूरों से पानी निकासी की पाइप से संपर्क किया गया। मजदूरों से वॉकी-टॉकी के जरिए बात हुई। इसके बाद इसी पाइप से मजदूरों को ऑक्सीजन पहुंचाई गई। इसके साथ ही उन्हें खाने की चीजें भी भेजी गई। बचाव कार्यों के बीच मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी मौके पर पहुंचे। सुरंग के ढहे हिस्से में जमा मलबे को हटाने में कोई खास प्रगति नहीं, जबकि ऊपर से भूस्खलन जारी रहने से बचाव कार्य मुश्किल हुआ। परिणामस्वरूप 30 मीटर क्षेत्र में जमा मलबा 60 मीटर तक फैल गया। ढीले मलबे को ‘शाटक्रीटिंग’ की मदद से मजबूत करने और उसके बाद ड्रिलिंग कर उसमें बड़े व्यास की स्टील पाइपलाइन डालकर श्रमिकों को बाहर निकालने की रणनीति बनाई गई।
14 नवंबर
ऑगर मशीन की सहायता से मलबे में क्षैतिज ड्रिलिंग का प्लान बनाया गया। ड्रिलिंग के बाद उसमें 800 और 900 मिमी व्यास की पाइप डालने की योजना बनी। मौके पर पाइप लाई भी गई। हालांकि, सुरंग में मलबा गिरने और उसमें मामूली रूप से दो बचावकर्मियों के घायल होने बचाव कार्यों में बाधा आई। विशेषज्ञों की एक टीम ने सुरंग और उसके आसपास की मिटटी की जांच के लिए सर्वेंक्षण शुरू किया। सुरंग में फंसे लोगों को खाना, पानी, ऑक्सीजन, बिजली की आपूर्ति लगातार जारी रही। सुरंग में कुछ लोगों ने उल्टी की शिकायत की, जिसके बाद उन्हें दवाइयां भी उपलब्ध कराई गईं।
15 नवंबर
सिल्क्यारा टनल के काम में लगी ऑगर ड्रिलिंग मशीन से काम नहीं बना। इसके बाद एनएचआईडीसीएल ने बचाव कार्य तेज करने के लिए दिल्ली से अत्याधुनिक अमेरिकी ऑगर मशीन मंगाई।
16 नवंबर
उच्च क्षमता वाली अमेरिकी ऑगर मशीन जोड़कर सुरंग में स्थापित की गई। आधी रात के बाद ऑगर मशीन ने काम शुरू किया।

17 नवंबर
ऑगर मशीन से ड्रिलिंग का काम रात भर चलता रहा। मशीन ने 22 मीटर तक ड्रिल कर चार स्टील पाइप डाले। पांचवें पाइप को डाले जाने के दौरान मशीन के किसी चीज से टकराने से जोर की आवाज आई। इसके बाद ड्रिलिंग का काम रोकना पड़ा। मशीन को भी नुकसान हुआ। इसके बाद, बचाव कार्यों में सहायता के लिए उच्च क्षमता की एक और ऑगर मशीन इंदौर से मंगाई गई।
18 नवंबर
सुरंग में भारी मशीन से कंपन को देखते हुए मलबा गिरने की आशंका के चलते ड्रिलिंग शुरू नहीं हो पाई। प्रधानमंत्री कार्यालय के अधिकारियों की टीम और विशेषज्ञों ने पांच योजनाओं पर एक साथ काम करने का निर्णय लिया, जिनमें सुरंग के उपर से क्षैतिज ड्रिलिंग कर श्रमिकों तक पहुंचने का विकल्प भी शामिल था।
19 नवंबर
ड्रिलिंग रूकी रही, जबकि केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री Nitin Gadkari ने बचाव अभियान की समीक्षा की। उन्होंने कहा कि ऑगर मशीन के जरिए क्षैतिज ड्रिलिंग कर श्रमिकों तक पहुंचने का सर्वश्रेष्ठ विकल्प है। उन्होंने दो से ढ़ाई दिनों में सफलता मिलने की उम्मीद जताई।
20 नवंबर
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने फोन पर मुख्यमंत्री धामी से बातकर सुरंग में चल रहे बचाव कार्यों का जायजा लिया। इसके साथ ही श्रमिकों का मनोबल ऊंचा बनाए रखने पर जोर दिया। बचावकर्मियों ने मलबे में ड्रिलिंग कर छह इंच व्यास की पाइपलाइन डाली। इसके बाद पहली बार सुरंग में फंसे श्रमिकों को पूरा खाना भेजा गया। इसके अलावा कपड़े और अन्य जरूरी चीजों की आपूर्ति भी की गई। हालांकि, ऑगर मशीन के सामने बोल्डर आने से रूकी ड्रिलिंग शुरू नहीं हो पाई।
21 नवंबर
बचावकर्मियों ने सुरंग में फंसे श्रमिकों के सकुशल होने का पहला वीडियो जारी किया। सफेद और पीला हेलमेट पहने श्रमिक पाइप के जरिए खाना लेते और एक दूसरे से बातचीत करते दिखाई दिए। सिलक्यारा सुरंग के बड़कोट छोर पर दो विस्फोट कर दूसरी ओर से ड्रिलिंग की शुरुआत की गई। हालांकि, विशेषज्ञों ने बताया कि इस वैकल्पिक तरीके से श्रमिकों तक पहुंचने में 40 दिन लगने की संभावना है। एनएचआइडीसीएल ने ऑगर मशीन से सिलक्यारा छोर से फिर क्षैतिज ड्रिलिंग शुरू की।
22 नवंबर
800 मिमी के व्यास की स्टील पाइपलाइन मलबे में 45 मीटर अंदर तक पहुंची। कुल 57 मीटर मलबे में से 12 मीटर को भेदा जाना शेष रह गया। सुरंग के बाहर एंबुलेंस को खड़ा किया गया। इसके अलावा, घटनास्थल से 30 किलोमीटर दूर चिन्यालीसौड़ सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में 41 बिस्तरों का विशेष वार्ड बनाया गया। देर रात लोहे के सरिए और गर्डर सामने आने से ड्रिलिंग में फिर अवरोध आया।
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23 नवंबर
अड़चन आने से बचाव अभियान में छह घंटे की देरी हुई। बाधा को दूर करने के बाद ड्रिलिंग फिर शुरू हुई। राज्य सरकार के नोडल अधिकारी ने बताया कि बुधवार को आई रुकावट के बाद ड्रिलिंग में 1.8 मीटर की प्रगति हुई। ऑगर मशीन के नीचे बने प्लेटफॉर्म में दरारें आने से ड्रिलिंग फिर रूकी।
24 नवंबर
बाधाओं को दूर कर 25 टन वजनी ऑगर मशीन से ड्रिलिंग फिर शुरू हुई। लेकिन, कुछ देर बाद फिर लोहे का सरिया सामने आने से ड्रिलिंग रुक गई।
25 नवंबर
ऑगर मशीन टूटने के बाद मैनुअल ड्रिलिंग का निर्णय लिया गया। इसके साथ ही वर्टिकल ड्रिलिंग पर भी मंथन शुरू हुआ। टनल में फंसी ऑगर मशीन के ब्लेड को भी काटकर निकालने का काम शुरू हुआ।
26 नवंबर
टनल के ऊपर से वर्टिकल ड्रिलिंग शुरू हुई। इसके साथ ही ड्रिफ्ट टनल बनाने का काम भी जारी रहा। मैनुअल ड्रिलिंग के लिए रैट माइनर्स को भी बुलाया गया। वहीं, लेजर और प्लाज्मा कटर के जरिए ऑगर मशीन के ब्लेड काटने में भी तेजी आई। देर रात तक वर्टिकल ड्रिलिंग में तेजी आई और 19 मीटर से ज्यादा ड्रिल कर लिया गया।
27 नवंबर
वर्टिकल ड्रिलिंग का काम जारी रहा। इसके साथ ही ड्रिफ्ट टनल बनाने का प्लान बनाया गया, जिससे कम समय में मजदूरों को निकाला जा सकता है। मैनुअल खुदाई के लिए छह सदस्यीय रैट माइनर्स की टीम भी पहुंच गई। इसके बाद शाम को रैट माइनर्स की टीम ने सेना की मदद से हाथ खुदाई शुरू की। दूसरी तरफ रात तक 36 मीटर तक वर्टिकल ड्रिलिंग का भी काम पूरा हो गया।
28 नवंबर
रैट माइनर्स की टीम ने पूरी रात मैनुअल खुदाई की। इसके बाद सुबह खबर आई कि देशभर के लोगों को आज ही खुशखबरी मिल सकती है। किसी भी पल मजदूर बाहर निकाले जा सकते हैं। लेकिन, रेस्क्यू ऑपरेशन पूरा होने में शाम हो गई और शाम 7.47 बजे पहले मजदूर को बाहर निकाला गया। रैट माइनर्स ने सुरंग में करीब 12 मीटर खुदाई की, जहां पाइप डालकर श्रमिकों को सुरक्षित निकाला।
