
बाज़ार से क्यों गायब हो गए महारथी ब्राडंस और कम्पनियाँ?
एक कहावत है कि जब ताल से ताल न मिले तो, हो जाता हैं सुर, बेहाल। ये बात उन कम्पनियों और ब्रांड्स पर सटीक बैठती है, जो वक्त पर नई तकनीक और प्रतिस्पर्धा से ताल मिलाने में चूक गयीं। नतीजतन आज वे सभी बाज़ार से गायब हैं। कई भारतीय कम्पनियां-ब्रांड्स, जो कभी अपनी गुणवत्ता के लिए जनता के बीच लोकप्रियता थे- अब इतिहास के पन्नों में दफन हैं।

एक कहावत है कि जब ताल से ताल न मिले तो, हो जाता हैं सुर, बेहाल। ये बात उन कम्पनियों और ब्रांड्स पर सटीक बैठती है, जो वक्त पर नई तकनीक और प्रतिस्पर्धा से ताल मिलाने में चूक गयीं। नतीजतन आज वे सभी बाज़ार से गायब हैं। कई भारतीय कम्पनियां-ब्रांड्स, जो कभी अपनी गुणवत्ता के लिए जनता के बीच लोकप्रियता थे- अब इतिहास के पन्नों में दफन हैं। ग्राहकों की अपेक्षाएं, तकनीक और प्रतिस्पर्धा तेज़ी से फलते-फूलते बाज़ार में हर साल बदलती हैं। यही वजह है कि वैश्वीकरण के दौर मे जब कई नए ब्रांड भारतीय बाज़ार में उतरे तो उन्होंने पहले से पैठ बनाए ब्रांडो को तकनीक के आधार पर टक्कर दी। नई कम्पनियों ने ग्राहकों के लुभाने के लिए नई तकनीकी और मार्केटिंग का सहारा लिया। जबकि पहले से बाज़ार पर पकड़ रखने वाले ब्रांड्स बदलते वक्त और तकनीक के साथ खुद को ढालने में नाकाम रहे। इससे बाजार की मांग में बदलाव हुआ और उपभोक्ताओं ने प्राथमिकताओं के आधार पर लोकप्रिय ब्रांड्स को छोड़ नए ब्रांड्स को अपनी पसंद बनाना शुरु कर दिया।
आइए, ऐसे ही कुछ प्रमुख ब्रांड्स पर नज़र डालते हैं, जो एक दौर में भारतीय बाज़ार के सितारे थे लेकिन बदले व्यापारिक परिदृश्य के बाद इनकी चमक धूमिल पड़ गयी और आज ये विलुप्त हो चुके हैं।
हिंदुस्तान मशीन टूल्स यानि एचएमटी
भारतीय बाजार में गुणवत्ता का प्रतीक मानी जाती थी हिंदुस्तान मशीन टूल्स। घड़ियां, ट्रैक्टर, प्रिंटिंग मशीनरी, मेटल फ़ॉर्मिंग प्रेस, प्लास्टिक प्रोसेसिंग मशीनरी, बियरिंग, कृषि और चिकित्सा जैसे उपकरण बनाने के लिए मशहूर थे एचएमटी। भारत सरकार के स्वामित्व वाली सार्वजनिक क्षेत्र की इंजीनियरिंग कंपनी एचएमटी की शुरुआत 7 फ़रवरी 1953 को बेंगलुरु में हुई थी। इस कम्पनी की सबसे मशहूर प्रोड्क्ट थी घंडिया। 1970 और 80 का दशक की हर उम्र की पीढ़ी के हाथ में एचएमटी की घड़ियां बंधी होती थी। एचएमटी की घड़ियों को जनता, तरुण, नूतन, प्रिया, निशात और कोहिनूर जैसे नाम दिए गए थे। घड़ी भी बनाने वाली इस कम्पनी का वक्त खराब हुआ और नई तकनीक और प्रतिस्पर्था के आगे घुटने टेक दिए। 1990 के दशक में कंपनी की वित्तीय मुश्किलें शुरु हुई और 2016 तक पूरी तरह दिवालिया होने के बाद इससे बंद कर दिया गया।

एस्कॉर्ट्स कंपनी की राजदूत मोटरसाइकिल
1960, 70 और 80 के दौर के युवाओं की पसंदीदा बाइक हुआ करती थी राजदूत मोटरसाइकिल। 1973 की ‘बॉबी’ फिल्म के बाद युवाओं में इसका क्रेज बढ़ गया था। राजदूत मोटरसाइकिल का निर्माण एस्कॉर्ट्स ग्रुप करती थी। लेकिन भारतीय एस्कॉर्ट्स कम्पनी और जापान की यामाहा ने मिलकर 1983 में यामाहा आरडी 350 राजदूत बाइक का एक नया और दमदार वर्जन लॉन्च किया। इस परफॉर्मेंस बेस्ड बाइक ने धूम मचा दी थी। लेकिन 1990 के दशक में कई दूसरे विदेशी और भारतीय मोटरसाइकिल के भारतीय बाजार में उतरने से प्रतिस्पर्धा बढ़ने लगी। नए डिजाइन, बेहतरीन माइलेज और नई-उन्नत तकनीक वाली बाइक्स के आगे राजदूत की रफ्तार धीमी पड़ने लगी। जिसके बाद ये बाईक भारतीय सड़कों से गायब होती चली गयी।

लोहिया मशीनरी लिमिटेड यानि एलएमएल
एलएमएल एक ऐसी भारतीय कंपनी थी जो मोटरसाइकिल, स्कूटर और मोपेड बनाने के लिए भारतीय बाज़ार में उतरी थी। 1980 और 90 के दशक में एलएमएल ने Piaggio के साथ साझेदारी कर बाज़ार में "वेस्पा" मॉडल्स के स्कूटर उतारे। जिसने मध्य वर्ग में काफी धूम मचायी। लेकिन आगे चलकर प्रतिस्पर्धा के दौर में Piaggio के साथ साझेदारी को खत्म होने और नए खिलाड़ियों के मैदान में उतरने के बाद एलएमएल पिछड़ने लगा। 1990 के दौर में भारतीय दोपहिया बाजार में हीरो होंडा, बजाज, टीवीएस नए ब्रांड्स उतरे। इन कंपनियों ने ग्राहकों के बीच अपनी पहचान किफायती, भरोसेमंद और ईंधन-प्रभावी मॉडल्स के रुप में की जिससे एलएमएल पुराने मॉडल और तकनीक के मामले में बाजार की इस दौड़ में पीछे रह गयी और हमेशा के लिए इसकी रफ्तार थम गयी।

एम्बेसेडर और फिएट कार
किसी समय भारत की सड़कों पर एम्बेसेडर और फिएट कारें बेखौफ दौड़ा करती थीं। नेता, अभिनेता से लेकर काली-पीली टैक्सीवालों के पास तक एम्बेसडर कारें थी। खासतौर से सरकारी अधिकारियों की भी पसंदीदा कार एम्बेसडर ही थी। लेकिन वक्त ने करवट बदली और सड़क पर छोटी और ज्यादा माइलेज देने वाली कारों ने दौड़ना शुरु किया। बाज़ार की दौड़ में नए-नए डिजाइन और माइलेज देने वाली सस्ती गाड़ियों के आगे एम्बेसेडर और फिएट पिछड़ गयीं। जल्द ही ये भी प्रतिस्पर्धा से बाहर होकर सड़कों से गायब हो गयी।

कोडक
यादों को संजो कर रखने का सबसे बड़ा जरिया था कोडक। एक दौर था जब फोटोग्राफी की दुनिया पर राज था कोडक कम्पनी का। आपके घर में रखी ज्यादातर ब्लैक एड वाईट और कलर तस्वीरें कोडक के कैमरों और रील की देने हैं। कोडक कंपनी की शुरुआत 1880 में हुई थी। 1940 के दशक में 35mm वाले कोडक कैमरे का फिल्मों में भी काफी इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा दूसरे विश्व युद्ध में पत्रकारों ने इस कैमरे से युद्ध की यादगार तस्वीरें उतारी थी। 19वीं और 20वीं सदी में इस कैमरे का बोलबाला रहा। लेकिन 21वीं सदी में बदली तकनीक और प्रतिस्पर्धा ने इस कैमरे का बाजार से फोकस आउट कर दिया। 2004 तक ये कम्पनी घाटा झेलते-झेलते दिवालिया हो गयी। डिजिटल कैमरे, डिजिटल फोटोग्राफी और स्मार्टफोन के दौर में कोडक कम्पनी ने खुद को अपग्रेड करने के देरी की। जिस वजह से जनता ने उसकी पुरानी तकनीक से दूरी बना ली और आज कोडक कम्पनी भी किसी पुरानी तस्वीर की तरह बाज़ार की दुनिया में धुंधली पड़ गयी है।

नोकिया
मौजूदा दौर में भी वक्त पर अपग्रेड ने करना या नई तकनीक के मुताबिक खुद को ढ़ालने में थोड़ी-सी देरी भी कंपनी या प्रोड्क्ट का बाज़ार से नामो-निशान मिटा सकती है। इसकी सबसे बड़ी मिसाल है प्रतिस्पर्धा की दौड़ में नंबर वन के पायदान से पिछड़कर सबसे पीछे खड़ी और मोबाइल की दुनिया में कभी दबदबा रखने वाली नोकिया कंपनी। नोकिया के मोबाइल फोन एक समय भारतीय बाजार में बहुत मशहूर थे। सस्ते और टिकाऊ होने की वजह से हर हाथ में नोकिया का मोबाइल पहुंच चुका था। लेकिन दूसरी कंपनियों के बाज़ार में उतरने और स्मार्टफोन के दौर में नोकिया ने ऑपरेटिंग सिस्टम को अपग्रेड करने में थोड़ी देर कर दी। जिस वजह से मोबाइल फोन की दूसरी कंपनियों ने अपने एंड्रॉइड और आईओएस और नए-नए मॉडल-फीचर्स की बदौलत बाजार पर कब्जा कर लिया। नतीजा यह रहा कि नोकिया जैसी मजबूत कंपनी से ग्राहकों को भरोसा टूटता चला गया और आज भारतीय बाजार से इसके फोन लगभग गायब हो चुके हैं।

ऑनिडा
एक दौर था जब टेलीविज़न बनाने वाली कम्पनियों में ऑनिडा टीवी सबसे बड़ा ब्रांड माना जाता था। उसके विज्ञापनों ने घर-घर में अपनी पहचान बना ली थी। ऑनिडा का टीवी घर में रखना शान की बात थी। लेकिन वक्त ने इसे भी भारतीय बाज़ार से गायब कर दिया। क्योंकि बदलते समय के साथ नई-नई कंपनियां तकनीकन और नए डिज़ाइन वाले फ्लैट और दीवार में आसानी से टांगने वाले टीवी लेकर बाज़ार में उतरी। लेकिन ऑनिडा ने नई तकनीक और ट्रेंड्स को अपनाने में देर की। जिसकी वजह से दूससरे ब्रांड जैसे सैमसंग, एलजीऔर सोनी ने स्मार्ट टीवी और हाई-रिज़ॉल्यूशन डिस्प्ले जैसे फीचर्स पर फोकस किया। दूसरी तरफ चीनी ब्रांड जैसे श्याओमी, वनप्लस, और टीसीएल ने भी कम कीमत पर उच्च गुणवत्ता वाले फीचर्स वाले टीवी बाजार में लाकर ऑनिडा जैसे घरेलू ब्रांड्स की मांग को और कम कर दिया। यहीं कारण थे कि नए कंपनियां ग्राहकों को लुभाने में आगे निकल गयी और ओनिडा के पुराने मॉडल और तकनीकों वाले टीवी घरों से बाहर कर दिए गए।

बाज़ार में नई तकनीक और प्रतिस्पर्धा के आगे घुटने टेकने की ये कहानियां सीख देती हैं कि प्रतियोगिता वाले बाज़ार में अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वक्त पर बदलना, नई तकनीक को अपनाना, ग्राहकों की जरुरतों को समझना बेहद जरुरी है।
डिस्क्लेमर: यह जानकारी केवल सूचना के उद्देश्यों के लिए है और इसे निवेश सलाह के रूप में नहीं समझा जाना चाहिए। निवेश निर्णय लेने से पहले एक वित्तीय सलाहकार से परामर्श करने की सिफारिश की जाती है।