IDBI Bank के शेयरों में जबरदस्त तेजी क्यों आई?
आईडीबीआई का मार्केट कैप अभी करीब 95,000 करोड़ रुपये है। यानी हिस्सेदारी बेचने से सरकार को करीब 29,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। हालांकि कई एनालिस्ट्स का कहना है कि ट्रांजैक्शन की शर्तें बहुत आकर्षक नहीं हैं।

केंद्र सरकार ने पिछले कुछ सालों में कई सरकारी बैंकों का आपस में मर्जर किया है। इसके साथ ही सरकार का अब तेजी से फोकस सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विनिवेश यानि डिसइनवेस्टमेंट को आगे बढ़ाने पर है, इसके पीछे वजह है कि अब सरकारी बैंक काफी अच्छी स्थिति में हैं। अब मीडिया की कई रिपोर्ट्स में खबर आ रही है कि IDBI Bank के निजीकरण का रास्ता साफ हो गया है। RBI ने IDBI बैंक के लिए बोली लगाने वालों के लिए अपनी फिट एंड प्रॉपर रिपोर्ट दे दी है। Financial Regulator के जरिए इस रिपोर्ट में बताया जाता है कि कंपनी की क्या स्थिति कितनी फिट एंड फाइन है। इसका खबर का असर स्टॉक पर भी देखने को मिल रहा है, अगर आप देखें तो इंट्रा डे में स्टॉक में 6 प्रतिशत की तेजी देखने को मिल रही है। अभी ऐसे में सवाल ये है कि सरकार कितनी हिस्सेदारी बेचेगी और कितनी प्रतिशत का डिसइनवेस्टमेंट का प्लान है?
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मीडिया रिपोर्ट्स
दरअसल मीडिया में रिपोर्ट्स हैं कि अब इस खबर की पुष्टि की उम्मीद बजट से की जा रही है। बाजार को इस बात का इंतजार है कि विनिवेश पर बजट में सरकार की तरफ से क्या संकेत देगी? IDBI बैंक कई साल से सरकार की प्राइवेटाइजेशन लिस्ट में रहा है। सरकार बोली लगाने वालों के बारे में RBI के आकलन का इंतजार कर रही थी कि वो उन पैरामीटर्स को पूरा करते हैं या फिर नहीं, क्योंकि बिना पूरी प्रक्रिया आगे के कदम नहीं उठाए जा सकते हैं।
विदेशी बोलीदाता
RBI ने एक विदेशी बोलीदाता को छोड़कर बाकी सभी पर अपनी रिपोर्ट दी है। विदेशी बिडर ने अपनी जानकारी साझा नहीं की और विदेशी रेगुलेटर ने भी उसके बारे में डेटा उपलब्ध नहीं कराया है। सरकार के पास आईडीबीआई बैंक में 45.5% हिस्सेदारी है। इसमें देश की सबसे बड़ी इंश्योरेंस कंपनी एलआईसी 49% से अधिक हिस्सेदारी के साथ सबसे बड़ी शेयरधारक है। आईडीबीआई पहले फाइनेंशियल इंस्टीट्यूट था जो बाद में बैंक बन गया। योजना के मुताबिक सरकार बैंक में 60.7% हिस्सेदारी बेच सकती है। इसमें सरकार का 30.5% और LIC का 30.2% हिस्सा शामिल है।
आईडीबीआई का मार्केट कैप
आईडीबीआई का मार्केट कैप अभी करीब 95,000 करोड़ रुपये है। यानी हिस्सेदारी बेचने से सरकार को करीब 29,000 करोड़ रुपये मिल सकते हैं। हालांकि कई एनालिस्ट्स का कहना है कि ट्रांजैक्शन की शर्तें बहुत आकर्षक नहीं हैं। सरकार ने बीपीसीएल, कॉनकॉर, बीईएमएल, शिपिंग कॉर्पोरेशन, आईडीबीआई बैंक, दो सरकारी बैंकों और एक बीमा कंपनी के विनिवेश की योजना बनाई थी लेकिन पिछले 18 महीनों से इस दिशा में कोई प्रगति नहीं हुई है। माना जा रहा था कि आम चुनावों के बाद चीजें आगे बढ़ेंगी लेकिन चुनावी नतीजों में इसके भविष्य पर सवालिया निशान लगा दिया है।