
Mutaul Fund Investing: अपने पोर्टफोलियों को डायवर्सिफाइ करें, नहीं तो हो जाएगा नुकसान
अजीत मेनन कहते हैं कि निष्कर्ष यह निकलता है कि, हम जानते हैं कि एक सलाहकार या निवेशक के रूप में, कोई व्यक्ति चाहेगा कि पोर्टफोलियो के सभी फंड हर समय समान रूप से अच्छा प्रदर्शन करें, और यह एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति और पूर्वाग्रह भी है।

1986 में एसेट अलोकेशन पर लोकप्रिय रिसर्च पेपर ( शीर्षक- पोर्टफोलियो प्रदर्शन के निर्धारक, ब्रिंसन, हुड और बीबोवर द्वारा) प्रकाशित होने के बाद से इस विषय पर विशेष रूप से इन्वेस्टमेंट इंडस्ट्री में गहन बहस छिड़ गई है। रिसर्च पेपर ने यह निष्कर्ष निकाला कि एसेट अलोकेशन एक पोर्टफोलियो के रिटर्न में 93.6 फीसदी वेरिएशन (उतार-चढ़ाव) ला सकता है। इसलिए हमेशा ये कहा जाता रहा है कि अपने पोर्टफोलियों में विविधता लाएं। साल 2000 में, एक अन्य पॉपुलर अध्ययन (शीर्षक- क्या एसेट अलोकेशन पॉलिसी 40, 90 या 100 फीसदी प्रदर्शन की व्याख्या करती है? इबॉटसन और कपलान द्वारा) ने पहले की रिसर्च के दायरे का विस्तार किया। यह निष्कर्ष निकाला गया कि एसेट अलोकेशन ने रिटर्न की 90 फीसदी परिवर्तनशीलता (वेरिएबिलिटी) को समझाया है, हालांकि, उन्होंने पाया कि अलग अलग फंड के बीच रिटर्न का वेरिएशन सिर्फ 40 फीसदी एसेट अलोकेशन के कारण था, जबकि शेष अन्य फैक्टर्स की वजह से था, जैसे कि एसेट क्लास का समय, एसेट क्लास के भीतर शैली, मार्जिन ऑफ सेफ्टी और फीस।
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सरल शब्दों में, एक सलाहकार या निवेशक के नजरिए से इन सबका क्या मतलब है? हालांकि एसेट अलोकेशन का निर्णय महत्वपूर्ण है, लेकिन एक स्थिर फिक्स्ड एसेट अलोकेशन स्ट्रैटेजी इसका जवाब नहीं है। एक एनालिटिकल एसेट अलोकेशन स्ट्रैटेजी की आवश्यकता है, जो बाजार के बदल रहे माहौल और समय के साथ निवेशकों की बदलती आवश्यकताओं के अनुकूल हो सके। पीजीआईएम इंडिया म्यूचुअल फंड के सीईओ Ajit Menon के अनुसार ऊपर की बातों से साफ है कि रिटर्न की परिवर्तनशीलता के कारण, एसेट क्लास के भीतर भी विविधता लाना जरूरी है। एसेट क्लास के रूप में इक्विटी के भीतर समय-समय पर अलग अलग शैली के इंडेक्स का विश्लेषण करके इसका प्रमाण दिया जा सकता है। उदाहरण के लिए अगर कोई ग्रोथ-ओरिएंटेड मैनेजर्स बनाम वैल्यू-ओरिएंटेड मैनेजर्स को देखता है और उनके प्रदर्शन का विश्लेषण करता है, तो यह स्पष्ट हो सकता है कि वे दोनों साइकिल से गुजरते हैं। आप जिस देश का विश्लेषण कर रहे हैं उसके आधार पर, लंबी अवधि में, एक विशेष स्ट्रैटेजी दूसरे से बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। उदाहरण के लिए हमारी जैसी उभरती अर्थव्यवस्था में, शायद ग्रोथ स्टॉक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं, जबकि विकसित और मैच्योर अर्थव्यवस्थाओं में शायद वैल्यू स्टॉक बेहतर प्रदर्शन कर सकते हैं। याद रखें, ये एक ही एसेट क्लास के भीतर मैनेजर्स के बीच डाइवर्सिफिकेशन के पक्ष में थंब और विचार (कंसीडरेशन) के नियम हैं।

अजीत मेनन आगे कहते हैं कि निष्कर्ष यह निकलता है कि, हम जानते हैं कि एक सलाहकार या निवेशक के रूप में, कोई व्यक्ति चाहेगा कि पोर्टफोलियो के सभी फंड हर समय समान रूप से अच्छा प्रदर्शन करें, और यह एक स्वाभाविक मानवीय प्रवृत्ति और पूर्वाग्रह भी है। हालांकि, जैसा कि ऊपर दिए गए रिसर्च से साबित हुआ है, सबसे पहले एसेट अलोकेशन स्ट्रैटेजी को आगे बढ़ाने की आधारशिला का मतलब है कि किसी को उम्मीद है कि रिटर्न में परिवर्तनशीलता होगी। इसलिए, विवेकपूर्ण अप्रोच यह होगा कि शॉर्ट टर्म उतार-चढ़ाव और सापेक्ष रूप से अंडर परफॉर्मेंस यानी खराब प्रदर्शन के चरणों पर प्रतिक्रिया न करें और जल्दबाजी में किसी तरह का पोर्टफोलियो एक्शन न लें। पोर्टफोलियो से अक्सर खराब प्रदर्शन करने वाले विकल्पों को हटा दें और बिना समय खराब किए अपना पूरा निवेश बेहतर प्रदर्शन करने वाले विकल्पों में करें।
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