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सैलरी का 50% हिस्सा सिर्फ EMI भरने में जा रहा है...शहरों में पैदा हो रहा है नया टेंशन - एक्सपर्ट दे रहे चेतावनी

कई मामलों में सैलरी का 50% हिस्सा हर महीने की किस्तों और बीमा प्रीमियम में चला जाता है जबकि वित्तीय विशेषज्ञ इसे 25-30% तक ही अच्छा मानते हैं।

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EMI kill people Deam
फाउंडसै ने लोन और सैलरी को लेकर जताई चिंता. (Photo: ITG)

भारत के बड़े शहरों में कामकाजी लोगों की इनकम तो बढ़ रही है, लेकिन उससे भी ज्यादा तेजी से बढ़ रहा है EMI का दबाव। घर बनाने से लेकर लाइफस्टाइल सुधारने तक, लोग आसानी से लोन तो ले रहे हैं, लेकिन उसे चुकाना मुश्किल साबित हो रहा है। 

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कई मामलों में सैलरी का 50% हिस्सा हर महीने की किस्तों और बीमा प्रीमियम में चला जाता है जबकि वित्तीय विशेषज्ञ इसे 25-30% तक ही अच्छा मानते हैं।

रेनबो मनी के संस्थापक सिद्धार्थ मुकुंद ने लिंक्डइन पर इसी को लेकर चिंता जताई। उन्होंने लिखा कि शहरी कारोबारी वर्ग में एक अस्थिर बदलाव हो रहा है। उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था में उतार-चढ़ाव आना तो आम बात है, लेकिन इस बार माहौल कुछ अलग और भारी लग रहा है।

कंपनियों में छंटनी और टेक सेक्टर में 5% से भी कम सैलरी बढ़ना जैसे कारणों से कर्मचारी परेशान और तनाव में हैं।

मुकुंद ने कहा कि कोरोना महामारी से पहले लोग नौकरी बदलते थे ताकि उन्हें अच्छी सैलरी बढ़ोतरी मिले और वे आगे बढ़ सकें। उस समय लोग EMI का बोझ भी आत्मविश्वास के साथ उठा लेते थे, क्योंकि उनकी आमदनी बढ़ रही होती थी।

लेकिन अब हालात बदल गए हैं। अब बहुत से लोग सिर्फ गुजारा करने के लिए नौकरी बदल रहे हैं। लोग चाहते हैं कि सैलरी में 25-30% की बढ़ोतरी हो, ताकि वे अपनी EMI और जरूरी खर्चों को संभाल सकें।

उनकी इस पोस्ट पर कई लोगों ने अपनी राय दी है। एक यूजर ने लिखा कि आज के समय में लोग नौकरी महत्वाकांक्षा के लिए नहीं, बल्कि अपनी लाइफस्टाइल को बनाए रखने के लिए बदल रहे हैं।

एक और यूजर ने इसे “आने वाला बड़ा संकट” बताया और सलाह दी कि कर्मचारियों को अब फिर से बुनियादी चीजों पर ध्यान देना चाहिए जैसे कम खर्च करना, ज्यादा बचत करना और अपने परिवार व सेहत को सबसे ज्यादा महत्व देना।

मुकुंद ने चेतावनी दी कि अब हालात पहले जैसे नहीं रहे। पिछले 10-15 सालों में लोग जो उम्मीदें रखते थे, वो अब पूरी नहीं हो रही हैं। कई लोगों के लिए उनका सपना वाला घर अब बोझ बन गया है, और महत्वाकांक्षा की जगह अब लोग पहले अपनी जरूरतें और रोजमर्रा की जिंदगी को संभालने पर ध्यान दे रहे हैं।