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अमीर और अमीर हो रहे हैं, मिडिल क्लास का हाल क्यों है बेहाल

देश में अमीरों की प्रॉपर्टी और वेल्थ तेजी से बढ़ रही है, लेकिन मिडिल क्लास लगातार मुश्किलों का सामना कर रहा है। उनकी इनकम में कोई खास इजाफा नहीं हो रहा और उनके खर्चों पर प्रेशर बढ़ता जा रहा है। जहां एक तरफ देश में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ मिडिल क्लास की पर्चेजिंग पावर यानी खरीदने की क्षमता कम हो रही है।

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देश में अमीरों की प्रॉपर्टी और वेल्थ तेजी से बढ़ रही है, लेकिन मिडिल क्लास लगातार मुश्किलों का सामना कर रहा है। उनकी इनकम में कोई खास इजाफा नहीं हो रहा और उनके खर्चों पर प्रेशर बढ़ता जा रहा है। जहां एक तरफ देश में अरबपतियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है, वहीं दूसरी तरफ मिडिल क्लास की पर्चेजिंग पावर यानी खरीदने की क्षमता कम हो रही है।

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हाल में आई US बिलेनियर अंबिशन्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में बीते 12 महीनों में 32 नए अरबपति बने हैं। लेकिन इस दौरान मिडिल क्लास की इनकम में ज्यादा इजाफा नहीं हुआ और उनकी खर्च करने की क्षमता भी घट गई है।

इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत अब दुनिया में अरबपतियों की संख्या के मामले में थर्ड पोजीशन पर पहुंच गया है। इस लिस्ट में भारत से आगे केवल अमेरिका और चीन हैं। US बिलेनियर अंबिशन्स की रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में 2024 में अरबपतियों की संख्या 185 हो गई। 2023 के मुकाबले इसमें 42 फीसदी की बढ़ोतरी हुई है

इस बीच एक दिलचस्प जानकारी ये भी सामने आई है कि महिलाओं की आर्थिक भागीदारी भी तेजी से बढ़ रही है। इनकम टैक्स रिटर्न फाइल करने के मामले में महिलाओं की संख्या में बीते कुछ बरसों में इजाफा हुआ है। 

आंकड़ों के मुताबिक 

-2019-20 में 1.83 करोड़ महिलाओं ने ITR फाइल किया था
-जबकि 2023-24 में ये संख्या बढ़कर 2.29 करोड़ हो गई
-और कुल रिटर्न फाइलिंग का आंकड़ा 6.77 करोड़ पर पहुंच गया 

लेकिन, मिडिल क्लास पर इसका बिल्कुल उल्टा असर देखने को मिल रहा है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि शहरी मिडिल क्लास, जो कभी FMCG का सबसे बड़ा कंज्यूमर था, अब सबसे छोटा कंज्यूमर बन गया है। ऐसा इसलिए कहा जा रहा है क्योंकि शहरी इलाकों में खपत में ज्यादा गिरावट आई है और ग्रामीण इलाकों के मुकाबले शहरी FMCG मार्केट सुस्त हो गया है ।

मिडिल क्लास की घटती पर्चेजिंग पावर का असर ऑटोमोबाइल सेल्स, कंज्यूमर ड्यूरेबल्स और दूसरी इंडस्ट्रीज पर भी साफ नजर आ रहा है। वहीं, GDP के आंकड़े भी इस गिरावट को दिखा रहे हैं। यही वजह है कि जुलाई-सितंबर तिमाही में GDP ग्रोथ घटकर महज  5.4 फीसदी रह गई । कृषि को छोड़कर तकरीबन हर सेक्टर में दूसरी तिमाही के दौरान गिरावट आई है।

ऐसे में सुझाव दिया जा रहा है कि डिमांड को बढ़ाने के लिए सरकार को एक्टिव स्टेप्स उठाने होंगे। अगर ऐसा नहीं हुआ तो ग्रोथ रेट में ज्यादा गिरावट आ सकती है। इसके लिए सरकार को मिडिल क्लास की समस्याओं को समझकर उन्हें राहत देने के लिए कदम उठाने होंगे जिससे आर्थिक असमानता को घटाने में कामयाबी मिल सकती है।

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