Rashid-Amritpal ने सांसद पद की ली शपथ, पैरोल पर तिहाड़ और डिब्रूगढ़ जेल से आए बाहर
लोकसभा के लिए आर्टिकल-99 और राज्यसभा के लिए आर्टिकल-188 ये तय करते हैं कि हर सांसद को पदभार संभालने से पहले शपथ लेना जरूरी है। सांसद जब तक शपथ नहीं लेता, तब तक सदन की किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकता। शपथ लेने तक वो संसद सदस्य होने के अधिकारों का फायदा भी नहीं ले सकता।

दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद कश्मीरी नेता Sheikh Abdul Rashid और असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक Amritpal Singh ने शुक्रवार 5 जुलाई को सांसद पद की शपथ ली। दोनों आज पैरोल पर बाहर आए और संसद भवन में शपथ ली। 56 साल के इंजीनियर राशिद को शपथ लेने के लिए तिहाड़ जेल से दो घंटे की पैरोल मिली थी। वहीं, 31 साल के अमृतपाल सिंह को 4 दिन की पैरोल मिली है। हालांकि, परिवार से मुलाकात के बाद दोनों को आज ही वापस तिहाड़ और डिब्रूगढ़ जेल ले जाया जाएगा। राशिद ने जेल में रहते हुए जम्मू-कश्मीर के बारामूला सीट से 2024 लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज की है। अमृतपाल पंजाब के खडूर साहिब से लोकसभा चुनाव जीता है। जेल में रहने के कारण दोनों 18वीं लोकसभा के पहले सत्र में 24 और 25 जून को अन्य सांसदों के साथ शपथ नहीं ले सके थे। नए सांसद के लिए 60 दिन के अंदर शपथ लेना जरूरी होता है। ऐसा न होने पर उसकी सदस्यता जा सकती है।
सेफ हाउस में एक घंटे तक परिवार से मिलेगा अमृतपाल
दिल्ली पुलिस संसद में शपथ के बाद अमृतपाल को उसके परिवार से मुलाकात करवाएगी। इसके लिए उसके परिवार को सेफ हाउस में लाया जा रहा है। यहां खडूर साहिब सांसद एक घंटे तक परिवार से मिलेगा। लोकसभा महासचिव की ओर से तय किए सुरक्षाकर्मी वहां मौजूद रहेंगे। अमृतपाल को पैरोल की 10 शर्तों में परिवार से दिल्ली में मुलाकात की मंजूरी दी गई है।
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राशिद ने उमर अब्दुल्ला को हराया
राशिद ने जेल में रहते हुए बारामूला से निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ा और जम्मू-कश्मीर के पूर्व CM उमर अब्दुल्ला और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष सज्जाद लोन को हराया है। ये जीत छोटी-मोटी नहीं, बल्कि घाटी की अब तक की सबसे बड़ी जीत है। राशिद करीब 2 लाख वोट से जीते हैं। उन्हें 4.72 लाख वोट मिले। इंजीनियर राशिद को 2016 में जम्मू-कश्मीर में आतंकी फंडिंग के आरोप में UAPA के तहत अरेस्ट किया गया था। 2019 से वो तिहाड़ जेल में बंद हैं। राशिद का नाम कश्मीरी व्यवसायी जहूर वताली की जांच के दौरान सामने आया था, जिसे NIA ने घाटी में आतंकवादी समूहों और अलगाववादियों को कथित तौर पर फंडिंग करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। NIA ने इस मामले में कश्मीरी अलगाववादी नेता यासीन मलिक, लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक हाफिज सईद और हिजबुल मुजाहिदीन प्रमुख सैयद सलाहुद्दीन सहित कई लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की थी। इस मामले में यासीन मलिक को दोषी ठहराया गया और 2022 में ट्रायल कोर्ट ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई थी।
अमृतपाल ने कांग्रेस उम्मीदवार कुलबीर सिंह जीरा को हराया
अमृतपाल सिंह की पहचान खालिस्तानी लीडर के तौर पर है। उसने जेल में रहते हुए ही ‘वारिस पंजाब दे' संगठन के प्रमुख अमृतपाल ने खडूर साहिब सीट से निर्दलीय लोकसभा चुनाव लड़ा। उसने कांग्रेस उम्मीदवार कुलबीर सिंह जीरा को 1,97,120 वोटों के अंतर से हराया। अमृतपाल के चुनाव लड़ने का एक मकसद ये भी था कि इस बहाने उसे पंजाब लाया जा सके। अमृतसर के अजनाला थाने पर 23 फरवरी, 2023 को हजारों की संख्या में लोगों ने हमला किया था। आरोप है कि अपने करीबी लवप्रीत सिंह तूफान की गिरफ्तारी के विरोध में अमृतपाल इस भीड़ को लीड कर रहे थे। इस दौरान पुलिस और भीड़ के बीच हिंसक झड़प भी हुई।इस मामले के बाद से ही अमृतपाल फरार हो गया। दो महीने सर्च ऑपरेशन के बाद 23 अप्रैल को पुलिस और जांच एजेंसियों ने उसे मोगा जिले के रोड़े गांव से अरेस्ट कर लिया। उस पर NSA के तहत कार्रवाई की गई। वो असम की डिब्रूगढ़ जेल में है। परिवार की मांग है कि अमृतपाल को असम से पंजाब की जेल में शिफ्ट किया जाए।
सांसद का शपथ लेना जरूरी, सदस्यता जाने का खतरा क्यों
लोकसभा के लिए आर्टिकल-99 और राज्यसभा के लिए आर्टिकल-188 ये तय करते हैं कि हर सांसद को पदभार संभालने से पहले शपथ लेना जरूरी है। सांसद जब तक शपथ नहीं लेता, तब तक सदन की किसी भी कार्यवाही में शामिल नहीं हो सकता। शपथ लेने तक वो संसद सदस्य होने के अधिकारों का फायदा भी नहीं ले सकता। संविधान के तहत सांसद को 60 दिनों के अंदर शपथ लेनी अनिवार्य है। अगर कोई सांसद इस अवधि में शपथ नहीं ले पाता है, तो उसकी सीट खाली मानी जा सकती है। हालांकि, कुछ खास परिस्थितियों में ये अवधि बढ़ाने का भी प्रावधान है। बिना विस्तार के शपथ न लेने पर सांसद की सीट खाली घोषित की जा सकती है। 60 दिन के अंदर ही सांसद अवधि बढ़ाने की मांग कर सकता है। इसके लिए उसे एक आवेदन करना होगा, जिसमें उसे अपनी अनुपस्थिति की वजह का जिक्र करना होगा। लोकसभा में सदस्यों की हाजिरी की निगरानी के लिए कमेटी बनाई जाती है। स्पीकर इस कमेटी में सदस्यों को नियुक्ति करते हैं। इसमें आम तौर पर वरिष्ठ और अनुभवी सदस्य शामिल किए जाते हैं। कमेटी की जिम्मेदारी मामलों की निष्पक्ष समीक्षा और फैसला करना है। सभी गैरमौजूद सांसदों को कमेटी को अपनी गैरमौजूदगी की वजह बतानी होती है। फिर समिति की सिफारिशें सदन में पेश की जाती हैं, जिस पर वोटिंग के बाद अंतिम फैसला होता है।

