उदयपुर के सिटी पैलेस की प्रॉपर्टी को लेकर घमासान
दुनिया भर में सिटी ऑफ लेक के नाम से प्रसिद्ध उदयपुर, जिसकी एक खूबसूरती उसका सिटी पैलेस भी है। जिसकी चमक और राजपूताना रुतबा दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। लेकिन इस सिटी पैलेस की इन दीवारों के पीछे कई ऐसे विवाद छुपे हैं जो अब अदालतों की चौखट से निकल कर सड़कों तक पहुंच गये हैं।

दुनिया भर में सिटी ऑफ लेक के नाम से प्रसिद्ध उदयपुर, जिसकी एक खूबसूरती उसका सिटी पैलेस भी है। जिसकी चमक और राजपूताना रुतबा दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है। लेकिन इस सिटी पैलेस की इन दीवारों के पीछे कई ऐसे विवाद छुपे हैं जो अब अदालतों की चौखट से निकल कर सड़कों तक पहुंच गये हैं।
महाराणा प्रताप की विरासत को लेकर उनके वंशजों की बीच की लड़ाई नई नही हैं..बल्कि ये विवाद बरसों से चला रहा है...इसकी शुरुआत 1983 में हुई जब महेंद्र सिंह मेवाड़ अपने पिता भगवत सिंह मेवाड़ के ख़िलाफ़ कोर्ट चले गए थे। जिसके बाद ये मामला साल दर साल अदालत की चौखट पर जाता रहा है और तारीख पर तारीख मिलने के 37 साल बाद 2020 में उदयपुर की ज़िला अदालत में मामले में फ़ैसला सुनाया।
.कोर्ट ने विवादित संपत्ति को चार हिस्सों में बांट दिया। इसमें एक हिस्सा महाराणा भगवत सिंह को और बाक़ी बचे तीन उनकी बेटे-बेटी में बांटने का फैसला सुनाया गया। साथ ही कोर्ट का कहना था कि जब तक असल बंटवारा नहीं होता, तब तक भगवत सिंह की तीनों संतानें चार-चार साल के लिए बारी-बारी से शाही संपत्ति का इस्तेमाल करेंगे।
हालांकि अरविंद सिंह मेवाड़ ने फैसला लागू होने से पहले जोधपुर हाईकोर्ट में 7 सितंबर 2020 को अपील लगाई और ऐसे मामला राजस्थान हाई कोर्ट में पहुंच गया था। जिसके बाद 2022 में हाई कोर्ट ने ज़िला अदालत के फ़ैसले पर रोक लगा दी और कहा कि अंतिम फ़ैसला आने तक तीनों ही संपत्तियों पर अरविंद सिंह मेवाड़ का अधिकार रहेगा। यानी ये पूरा झगड़ा उदयपुर सिटी पैलेस से ही जुड़ी तीन अलग-अलग प्रॉपर्टी पर है। इनमें राजघराने का शाही पैलेस शंभू निवास, बड़ी पाल और घास घर शामिल है। राजघराने के सदस्यों का ही आकलन है कि इन तीनों प्रॉपर्टी की वैल्यू करीब 60 हजार करोड़ रुपए है।
एक बार फिर पूरा विवाद पूर्व राजपरिवार के सदस्य महेंद्र सिंह मेवाड़ के निधन के बाद उनके पुत्र और विधायक विश्वराज के राजतिलक और इससे जुड़ी रस्मों को लेकर शुरू हुआ है...जिसमें मेवाड़ राजघराने की विरासत को संभालने के दो दावेदार आमने सामने है...अब मामला हाईकोर्ट में हैं और जबतक इसका फैसले नहीं आ जाता तब तक उत्तराधिकार के जंग के सुलझने के आसार नहीं है।