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कम लागत में बड़ा मुनाफा: जानिए कैसे करें आयरन से भरपूर राजगिरा की खेती

Rajgira Farming: भारत में किसानों को अब पारंपरिक फसलों की जगह मोटे अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी कड़ी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, कोदो आदि मोटे अनाजों की खेती पर किसान भाई ध्यान दे रहे हैं। इन सबके बीच राजगिरा (Amaranth) एक बेहद फायदेमंद और पोषक अनाज है, जो न केवल किसानों को अच्छा मुनाफा देता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।

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कृषि उत्पादों के मामलों में भारत पूरी दुनिया में चीन के बाद दूसरे स्थान पर है। इसी कारण भारत को कृषि प्रधान देश भी कहा जाता है। देश की GDP की बात करें तो कृषि देश में अहम योगदान करता है, साथ ही पुरे भारत में अनाज की भी पूर्ति करता हैं। वहीं दूसरी तरफ़ देखें तो भारत में अनेकों प्रकार की खेती की जाती है, जिससे किसानों को काफ़ी फ़ायदा भी मिलता है। आज हम बात करेंगे एक ऐसे खेती के बारे में जो कम लागत में बड़ा मुनाफ़ा देता है। आइए जानते हैं ऐसा क्या है इस खेती में?

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Rajgira Farming: भारत में किसानों को अब पारंपरिक फसलों की जगह मोटे अनाज उगाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसी कड़ी में ज्वार, बाजरा, मक्का, रागी, कोदो आदि मोटे अनाजों की खेती पर किसान भाई ध्यान दे रहे हैं। इन सबके बीच राजगिरा (Amaranth) एक बेहद फायदेमंद और पोषक अनाज है, जो न केवल किसानों को अच्छा मुनाफा देता है बल्कि स्वास्थ्य के लिए भी लाभदायक है।

राजगिरा के पोषण और विशेषता

जगिरा एक ऐसा अनाज है जो गेहूं, चावल और ज्वार की तुलना में अधिक पौष्टिक माना जाता है। इसे भारत के अलग-अलग हिस्सों में राम दाना, अनार दाना, चुआ, राजरा बाथू, मारचू एवं चौलाई के नाम से जाना जाता है। यह फसल नवरात्र में खास रूप से मांग में रहती है और इससे बने लड्डू भी खूब बिकते हैं। इसके अलावा, बेकरी उत्पादों जैसे बिस्कुट, केक, और पेस्ट्री में भी इसका इस्तेमाल होता है।

कम पानी में बंपर उत्पादन

राजगिरा कम पानी में बंपर उत्पादन देने वाली फसल के रूप में जानी जाती है। इसके बीजों में 12-19% प्रोटीन, 63% कार्बोहाइड्रेट्स और 5.5% लाइसिन होता है। इसके साथ ही, यह आयरन, बीटा केरोटिन और फोलिक एसिड का बेहतरीन स्रोत है।

खेती की सही तकनीक

राजगिरा की खेती के लिए 6-7.5 pH मान वाली बलुई दोमट मिट्टी आदर्श मानी जाती है। खेत को खरपतवार मुक्त रखने के लिए गहरी जुताई और मिट्टी को भुरभुरा बनाना चाहिए। इसकी फसल मात्र 4-5 सिंचाइयों में तैयार हो जाती है। पहली सिंचाई बुवाई के 5-7 दिनों बाद करनी चाहिए और इसके बाद हर 15-20 दिनों के अंतराल पर सिंचाई की जा सकती है।

कटाई का सही समय

राजगिरा की फसल 120-135 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। फसल की पत्तियां जब पीली पड़ने लगती हैं, तब कटाई शुरू कर देनी चाहिए। समय पर कटाई न करने से इसके नाजुक दाने झड़ सकते हैं।

Rajgira Farming से आर्थिक लाभ

कम समय और कम लागत में अच्छे उत्पादन के कारण राजगिरा किसानों के लिए लाभदायक साबित हो रहा है। जिन इलाकों में सर्द और नम जलवायु है, वहां यह फसल आसानी से उगाई जा सकती है। यह छोटे किसानों के लिए एक बेहतर विकल्प साबित हो सकता है।

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