
Global Economy में बढ़ता जा रहा है कर्ज के डिफॉल्ट का संकट
कई दशकों के नुकसान से उबरने में लगे क्रेडिट मार्केट्स में एक बार फिर चिंता की लहर दौड़ गई है। दरअसल, इस संकट की वजह है कि दुनियाभर में जब ब्याज दरें कम थीं तो कंपनियों ने जमकर कर्ज उठाया था। लेकिन अब आर्थिक सुस्ती के हालात में इस कर्ज को वापस करना मुसीबत बन गया है। इसकी वजह यह है कि दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने हाल में ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की है। महंगाई को देखते हुए इसमें आने वाले दिनों में कटौती की उम्मीद भी नहीं है।

Global Economy में जारी सुस्ती से अब कारोबार जगत का संकट गहराने लगा है। ऐसे में दुनियाभर में कर्ज के भुगतान में डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। अनुमान है कि इन कंपनियों पर 500 अरब डॉलर से ज्यादा का भारी-भरकम कर्ज है। यही नहीं आने वाले दिनों में हालात के ज्यादा खराब होने की आशंका है। इससे ग्लोबल इकॉनमी पर मंडरा रहा खतरा ज्यादा गंभीर हो गया है। कई दशकों के नुकसान से उबरने में लगे क्रेडिट मार्केट्स में एक बार फिर चिंता की लहर दौड़ गई है। दरअसल, इस संकट की वजह है कि दुनियाभर में जब ब्याज दरें कम थीं तो कंपनियों ने जमकर कर्ज उठाया था। लेकिन अब आर्थिक सुस्ती के हालात में इस कर्ज को वापस करना मुसीबत बन गया है। इसकी वजह यह है कि दुनियाभर के सेंट्रल बैंकों ने हाल में ब्याज दरों में भारी बढ़ोतरी की है। महंगाई को देखते हुए इसमें आने वाले दिनों में कटौती की उम्मीद भी नहीं है।
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ऐसे में ये कर्ज संकट लगातार गहराता जा रहा है। अगर अलग अलग सेक्टर्स के फंसे कर्ज की बात करें तो इस तरह का सबसे ज्यादा लोन Real Estate Sector पर है जो करीब 168.3 अरब डॉलर है। इसके बाद Telecommunications पर 62.7 अरब डॉलर HealthCare Sectorमें 62.6 अरब डॉलर Software and Services में 35.5 अरब डॉलर और Retail में 32.6 अरब डॉलर का कर्ज फंसा हुआ है। इसके अलावा बाकी सेक्टर्स में यह 228.2 अरब डॉलर है। अगले कुछ साल में 785 अरब डॉलर के कर्ज का भुगतान होना है । लेकिन जिस तरह से China और Europe में ग्रोथ धीमी हुई है उससे कंपनियों के लिए इतने बड़े कर्ज का भुगतान कर पाना एक बड़ी चुनौती है। जाहिर है कर्ज ना चुकाए जाने पर कंपनियों के दिवालिया होने का खतरा बढ़ सकता है। इसके संकेत मिलने शुरु भी हो गए हैं और America में इस साल 120 से ज्यादा बड़ी कंपनियां दिवालिया हो चुकी हैं।

Moody's Investors Services के मुताबिक अगले साल डिफॉल्ट करने वाली कंपनियों की संख्या 5.1 फीसदी की दर से बढ़ सकती है। जून तक एक साल के दौरान ये रेट 3.8 फीसदी था। बेहद खराब आर्थिक हालात होने पर तो ये रेट बढ़कर 13.7 फीसदी हो सकता है जो 2008-09 की मंदी से ज्यादा है। ऐसे में आशंका है कि डिफॉल्ट बढ़ने पर निवेशक और बैंक पैसा देने से किनारा करेंगे जिससे फंडिंग जुटाना मुश्किल हो जाएगा। इसके बाद कंपनियों के डिफॉल्ट करने का रेट तेजी से बढ़ सकता है। इस चक्र का असर लेबर मार्केट पर भी आएगा जिससे बेरोजगारी बढ़ेगी। फिर लोगों का खर्च करना घट जाएगा जिससे मंदी का भयावह रुप पैदा हो सकता है।
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