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डिफ्लेशन के भंवर में फंसता चला जा रहा है चीन!

सुपरपावर अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में महंगाई यानि इंफ्लेशन सबसे बड़ा मुद्दा है। सरकारें हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं ताकि इस बेकाबू महंगाई पर कंट्रोल पाया जा सके। लेकिन चीन में उल्टी गंगा बह रही है।

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चीन की इकोनॉमी पर डिफ्लेशन का खतरा
चीन की इकोनॉमी पर डिफ्लेशन का खतरा

जहां एक तरफ पूरी दुनिया बढ़ती महंगाई के खिलाफ जंग लड़ रही है। वहीं चीन में एकदम अलग सी घटनाएं घट रही हैं। चीन में दुनिया से उलट ऐसा ट्रेंड चल रहा है, जो वहां कि अर्थव्यवस्था को भंवर में धकेलता जा रहा है और शी जिनपिंग सरकार चाह कर भी कुछ नहीं कर पा रही है। तो चलिए आपको बताते हैं कि चीन में कौन सा बड़ा सकंट दस्तक देने जा रहा है और इसका जल्द हल नहीं निकला तो ये दुनिया के बाकी देशों को भी अपने चपेट में ले सकता है।

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चीन में उल्टी गंगा बह रही है
चीन में उल्टी गंगा बह रही है।

चीन में डिफ्लेशन का खतरा 
सुपरपावर अमेरिका समेत दुनिया के ज्यादातर देशों में महंगाई यानि इंफ्लेशन सबसे बड़ा मुद्दा है। सरकारें हर मुमकिन कोशिश कर रही हैं ताकि इस बेकाबू महंगाई पर कंट्रोल पाया जा सके। लेकिन चीन में उल्टी गंगा बह रही है। वहां की सरकार को इंफ्लेशन की नहीं बल्कि डिफ्लेशन की चिंता सता रही है। यकीन मानिए ये डिफ्लेशन इतना खतरनाक है कि अगर मौजूदा हालात पर काबू नहीं पाया गया तो चीनी अर्थव्यवस्था और वहां के लेगों के बहुत पूरे दिन शुरू हो सकते हैं।

सबसे पहले समझते हैं डिफ्लेशन होता क्या है?
इंफ्लेशन में जैसे सब चीजों के दाम बढ़ते हैं, वहीं डिफ्लेशन में वस्तुएं और सर्विस की कीमत घटने लगते हैं। यानि पूरी इकॉनमी में कंज्यूमर प्रोडक्ट्स से लेकर जमीन-जायदाद तक के दाम कम होने लगते हैं। अब आप कहेंगे ये तो अच्छा सब सस्ता मिलेगा। जी नहीं, इसके बड़े घातक परिणाम होते हैं। अगर कोई कंपनी पहले से कम कीमत पर सामान बेचेगी तो उसे नुकसान होगा और वो इस नुकसान की भरपाई, अपनी लागत को घटाकर करेंगी। जिससे क्या होगा, कर्मचारियों की सैलरी में कटौती से लेकर छंटनी तक के फैसले लिए जाएंगे। इसका असर होगा कि परिवार में कमाने वाले कम होंगे, तो खर्चा भी सीमित होगा। जिससे वस्तुओं की मांग घट जाएगी। कंपनी का रेवेन्यू घटेगा तो शेयर मार्केट में भी शेयर की वैल्यू कम होगी। धीर-धीरे विदेशी निवेश आना बंद होगा जाएगा। बैंक भी कंपनियों को लोन देना बंद कर देंगे। 

कुल मिलाकर देखें तो किसी भी देश की अर्थव्यवस्था को बर्बाद करने की क्षमता रखता है डिफ्लेशन।

अब समझते है कि चीन में आखिर चल क्या रहा है?
सरकारी आंकड़ों के मुताबिक, चीन में 16 से 24 साल तक की उम्र के लोगों की बेरोजगारी दर जून में 20.8 प्रतिशत पर पहुंच गई। चीन में जून में कंज्यूमर इंफ्लेशन जीरो हो गई। इसका मतलब ये हुआ कि सालभर के दौरान चीजों के दाम नहीं बढ़े। होलसेल प्राइस में गिरावट का ये लगातार 9वां महीना रहा है। खाने-पीने की चीजों और ईंधन को अलग करके देखें तो चीन में कोर इंफ्लेशन भी घटकर 0.4 प्रतिशत पर आ गई। चीन में मैन्युफैक्चरिंग और सर्विसेज पर सुस्ती का साया भी है। फैक्ट्रियों में कामकाज जून में लगातार घट गया है। चीन के नैशनल ब्यूरो ऑफ स्टैटिस्टिक्स के मुताबिक, जून में सर्विस सेक्टर का आंकड़ा भी बेहद कमजोर रहा। नए ऑर्डर और नए एक्सपोर्ट ऑर्डर में भी लगातार तीसरे महीने कमी दर्ज की गई। वहीं दूसरी तिमाही अप्रैल-जून 2023 में चीन की GDP 6.3 फीसदी की दर से बढ़ी है, जो उम्मीद से कम है। 

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वहीं दूसरी ओर चीन प्रॉपर्टी सेक्टर की हालत खराब है। चीन में बढ़ता कर्ज भी एक बड़ा संकट बन गया है। चीन में प्रांतीय सरकारों और रियल एस्टेट डिवेलपर्स ने लाखों करोड़ डॉलर के कर्ज ले रखे हैं। ऊपर से विदेशी रेटिंग एजेंसियां लगातार चीन के GDP अनुमान को घटा रही है। क्योंकि चीन दुनिया का मैन्युफैक्चरिंग हब कहा जाता है, ऐसे में इस डिफ्लेशन का असर उन देशों पर भी पड़ेगा जो चीन पर काफी हद तक आश्रित हैं।  हालांकि अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में सुस्ती का माहौल है। लेकिन वहां हालात बढ़ती महंगाई के वजह से लेकिन चीन डिफ्लेशन से जूझ रहा है। जिनपिंग सरकार के लिए कड़े इम्तिहान का वक्त है।

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