
चावल के बाद अब चीनी एक्सपोर्ट पर सरकार लगा सकती है बैन
रिपोर्ट में बताया गया कि इस हफ्ते चीनी की कीमतें लगभग दो सालों की उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। इसलिए सरकार ने चीनी मीलों को 2 लाख टन ज्यादा चीनी बेचने की परमिशन दी है। देश में खाने-पीने की चीजों की महंगाई पहले से ही ज्यादा है। इसलिए, इस माहौल में सरकार एक्सपोर्ट पर बिल्कुल विचार करना नहीं करेगी।

बीते कुछ दिन पहले सरक़ार ने एक प्रेस रिलीज जारी कर यह जानकारी दी थी की कुछ चुनिंदा चावलों पर सरकार एक्सपोर्ट पर बैन लगा दी है। इसी बिच अब सरकार चीनी को लेकर एक बड़ा कदम उठाने जा रही है। जानकारी के मुताबिक अक्टूबर से शुरू होने वाले क्रॉप सीजन से सरकार चीनी के एक्सपोर्ट पर बैन लगा सकती है। सरकार से जुड़े अधिकारियो ने रॉयटर्स को बताया है कि बारिश की कमी के चलते गन्ने के प्रोडक्शन में कमी आई है, इसलिए देश में चीनी की कीमतों को काबू में रखने और इथेनॉल प्रोडक्शन के लिए पर्याप्त गन्ना बचाने के लिए सरकार यह फैसला ले सकती है। इस फैसले से ग्लोबल मार्केट में कीमतें बढ़ सकती है।
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सरकार ने इसके पहले 2016 में चीनी एक्सपोर्ट को कम करने के लिए 20% टैक्स लगा दिया था। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस सीजन में चीनी का प्रोडक्शन 3.3% कम हो कर 31.7 मिलियन टन तक रह सकता है। इसलिए सरकार ने 30 सितंबर तक केवल 6.1 मिलियन टन एक्सपोर्ट की अनुमति दी है। यह पिछले सीजन के 11.1 मिलियन टन के मुकाबले लगभग आधा है। रिपोर्ट में कहा गया है कि देश में चीनी के उत्पादन में आधे से ज्यादा की हिस्सेदारी करने वाले महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिलों में इस बार 50% कम बारिश हुई है। इसलिए, इस सीजन (2023-24) में उत्पादन कम रहेगी और अगले सीजन (2024-25) के लिए प्लांटिंग (रोपण) भी कम होगी।

रिपोर्ट में बताया गया कि इस हफ्ते चीनी की कीमतें लगभग दो सालों की उच्चतम स्तर पर पहुंच गई हैं। इसलिए सरकार ने चीनी मीलों को 2 लाख टन ज्यादा चीनी बेचने की परमिशन दी है। देश में खाने-पीने की चीजों की महंगाई पहले से ही ज्यादा है। इसलिए, इस माहौल में सरकार एक्सपोर्ट पर बिल्कुल विचार करना नहीं करेगी। 20 जुलाई को भारत ने डोमेस्टिक सप्लाई को बढ़ाने और त्योहार के वक्त रिटेल कीमतों को कंट्रोल में रखने के लिए गैर-बासमती सफेद चावल की सप्लाई में रोक लगा दी थी। देश से करीब 25% सप्लाई गैर-बासमती सफेद चावल की होती है। देश में खुदरा महंगाई जुलाई में 15 महीने के उच्चतम स्तर 7.44% पर पहुंच गई और फूड इनफ्लेशन 11.5% पर पहुंच गई, जो तीन वर्षों में सबसे ज्यादा है।
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