इतने तरह के होते हैं IPO, कई निवेशक हैं इस बात से अनजान
IPO Alert: Share Market: शेयर बाजर के निवेशक IPO शब्द से अवगत है। लेकिन, बाजार के निवेशक नहीं जानते हैं कि आईपीओ कई तरह के होते हैं।

Share Market: जब कोई कंपनी पहली बार अपने शेयर आम लोगों को बेचती है, तो इसे IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग (Initial Public Offering) कहा जाता है। इसका मतलब है कि अब कोई भी व्यक्ति उस कंपनी में पैसे लगाकर उसका हिस्सा बन सकता है। IPO के जरिए कंपनी शेयर बेचकर पैसा जुटाती है और बदले में निवेशकों को कंपनी में भागीदारी मिलती है।
IPO से कंपनी को तो फंड मिलते ही हैं, वहीं आम लोग भी उसमें पैसा लगाकर अच्छा रिटर्न कमा सकते हैं। लेकिन हर IPO एक जैसा नहीं होता। इसके भी दो अलग-अलग तरीके होते हैं। आइए, जानते हैं कि IPO कितने प्रकार का होता है और उनमें क्या फर्क होता है।
IPO क्या होता है? (What is IPO?)
IPO यानी इनिशियल पब्लिक ऑफरिंग, वह प्रोसेस होता है जिसमें कोई प्राइवेट कंपनी पहली बार अपने शेयर आम जनता को बेचती है। इससे पहले कंपनी केवल कुछ खास लोगों या प्रमोटरों के पास होती है। लेकिन IPO आने के बाद वह कंपनी सार्वजनिक हो जाती है और लोग उसके शेयर खरीद सकते हैं।
इसका फायदा यह होता है कि कंपनी को बाजार से पैसा मिल जाता है, जिससे वह अपना कारोबार बढ़ा सकती है। वहीं निवेशक उस कंपनी में पैसे लगाकर उसके फायदे में हिस्सेदार बन सकते हैं।
IPO के दो तरीके होते हैं (Type of IPO)
IPO दो तरह फिक्स्ड प्राइस इश्यू और बुक बिल्डिंग इश्यू के जरिये जारी होता है।
फिक्स्ड प्राइस इश्यू: इस तरीके में कंपनी पहले से ही अपने शेयर की एक तय कीमत तय कर देती है। मतलब अगर किसी शेयर की कीमत 100 रुपये रखी गई है, तो हर निवेशक को उसी कीमत पर शेयर मिलेंगे।
इसमें कंपनी पहले अपने अकाउंट और आर्थिक स्थिति को देखकर यह तय करती है कि शेयर की कीमत कितनी होनी चाहिए। जब IPO बंद होता है, तब जाकर पता चलता है कि कितने लोगों ने शेयर खरीदा है।
इस तरीके में अक्सर शेयर की कीमत असली बाजार कीमत से कम होती है, जिससे निवेशकों को ज्यादा मुनाफा हो सकता है।
बुक बिल्डिंग इश्यू: इस तरीके में कंपनी शेयर की कोई एक कीमत नहीं रखती, बल्कि एक दायरा तय करती है जिसे प्राइस बैंड कहा जाता है। जैसे 100 से 120 रुपये। इसमें निवेशक खुद तय करते हैं कि वे कितनी कीमत पर और कितने शेयर खरीदना चाहते हैं।
इन बोली लगाई गई कीमतों को देखकर कंपनी बाद में शेयर की असली कीमत तय करती है। इसमें हर दिन की मांग देखी जा सकती है, जिससे कंपनी और निवेशकों दोनों को बेहतर फायदा मिल सकता है।