कांग्रेस ने हिंडनबर्ग के आरोपों पर सेबी प्रमुख से पूछे 13 सवाल, जेपीसी और सुप्रीम कोर्ट जांच की मांग दोहराई
सेबी अध्यक्ष बुच और उनके पति ने आरोपों को निराधार बताया है और कहा है कि उनका वित्त एक खुली किताब है।

कांग्रेस ने हाल ही में अमेरिकी शॉर्ट-सेलर हिन्डनबर्ग रिसर्च द्वारा सेबी (भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड) की अध्यक्ष मधाबी पुरी बुच के खिलाफ लगाए गए आरोपों पर गहरी चिंता व्यक्त की है। इस संदर्भ में, कांग्रेस ने 13 सवाल उठाए हैं और एक संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) और सुप्रीम कोर्ट की जांच की मांग की है।
हिन्डनबर्ग के आरोप
हिन्डनबर्ग रिसर्च ने एक ब्लॉग पोस्ट में आरोप लगाया है कि मधाबी बुच और उनके पति ने उन ऑफशोर फंडों में हिस्सेदारी रखी है, जो अड़ानी समूह के कथित धनशोधन योजना में शामिल हैं। इस रिपोर्ट में सेबी की जांच में सुस्ती और अड़ानी समूह के खिलाफ कार्रवाई में कमी को भी उजागर किया गया है। कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश ने सेबी की जांच में इस "अड़ानी मेगा स्कैम" की अनदेखी पर सवाल उठाए हैं।
कांग्रेस की प्रतिक्रिया
कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि इस मामले की पूरी जांच के लिए जेपीसी की आवश्यकता है। उन्होंने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अड़ानी समूह को बचाने की कोशिश कर रहे हैं, जिससे भारत की संवैधानिक संस्थाओं की विश्वसनीयता प्रभावित हो रही है। खड़गे ने कहा, "छोटे और मध्यम निवेशकों को सुरक्षित रखने की आवश्यकता है, जो सेबी पर भरोसा करते हैं।"
जयराम रमेश ने कहा कि हिन्डनबर्ग के नए आरोपों से यह स्पष्ट होता है कि बुच और उनके पति का वित्तीय संबंध उन ही ऑफशोर फंडों से है, जो अड़ानी समूह के कंपनियों में बड़े हिस्से के लिए इस्तेमाल किए गए थे। उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि अड़ानी समूह के अध्यक्ष गौतम अड़ानी और बुच के बीच दो महत्वपूर्ण बैठकें हुई थीं, जो उनकी सेबी की अध्यक्षता संभालने के तुरंत बाद हुई थीं।
विपक्ष की एकजुटता
आम आदमी पार्टी (AAP) ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की मांग की है। पार्टी के सांसद संजय सिंह ने कहा कि सेबी की जांच दिशा-निर्धारित नहीं है और यह महत्वपूर्ण है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को गंभीरता से ले। उन्होंने आरोप लगाया कि सेबी ने अड़ानी समूह के खिलाफ जांच में जानबूझकर देरी की है।
कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने कहा कि बिना जेपीसी के कोई भी जांच प्रभावी नहीं होगी। उन्होंने कहा, "अगर सरकार को इस बारे में जानकारी थी, तो प्रधानमंत्री खुद इस साजिश का हिस्सा हैं।”
अड़ानी समूह की प्रतिक्रिया
अड़ानी समूह ने हिन्डनबर्ग के आरोपों को "दुष्ट, शरारती और तथ्य और कानून की अनदेखी" करार दिया है। समूह ने कहा कि यह आरोप केवल व्यक्तिगत लाभ के लिए पूर्व-निर्धारित निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जानकारी का चयन है।
हिन्डनबर्ग रिसर्च के आरोपों ने भारतीय राजनीतिक परिदृश्य में हलचल मचा दी है। कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों की मांग है कि इस मामले की गहन जांच होनी चाहिए ताकि निवेशकों के हितों की रक्षा की जा सके। यह मामला न केवल सेबी की विश्वसनीयता पर सवाल उठाता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि कैसे राजनीतिक और आर्थिक शक्तियां एक-दूसरे के साथ जुड़ी हुई हैं। कांग्रेस की मांग है कि जेपीसी की स्थापना से यह स्पष्ट हो सकेगा कि क्या वास्तव में सेबी और अड़ानी समूह के बीच कोई गुप्त संबंध है। इस मामले की जांच से यह भी पता चलेगा कि क्या भारत की संवैधानिक संस्थाएं अपने कर्तव्यों का पालन कर रही हैं या नहीं।
जैसे-जैसे यह मामला आगे बढ़ेगा, यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार और सेबी इस पर कैसे प्रतिक्रिया देते हैं और क्या सुप्रीम कोर्ट इस मामले में कोई कदम उठाएगा।