
Russia Crude Oil: रूस की अजीब मांग से भारत परेशान?
रूस के कुछ ऑयल सप्लायर युआन में पेमेंट मांग रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। देश में 70% रिफाइनरी कंपनियां सरकारी हैं। यानि इन कंपनियों को पेमेंट के लिए फाइनेंस मिनिस्ट्री के ऑर्डर को मानना होता है।

क्या रूस और चीन की जुगलबंदी भारत को बड़ी मुश्किल में डाल सकती है। आखिर क्यों रूस भारत को बार-बार चीनी करेंसी युआन में लेनेदेन पर जोर दे रहा है? रूस को भारत की न से आने वाले दिनों में दोनों देशों के रिश्तों पर कैसा असर देखने को मिल सकता है? इन तमाम सवालों ने इस पूरा मामले को बहुत गंभीर बना दिया है। आइये बारीकी से समझते हैं हर एक पहलू को... 5 राज्यों में विधानसभा चुनाव बेहद नजदीक हैं और उसके बाद सीधा देश में लोकसभा चुनाव होने जा रहे हैं। मौजूदा वक्त में ग्लोबल चिंताएं देश के लिए बड़ा सिरदर्द बनी हुई हैं। इजरायल और हमास के बीच चल रही जंग के कारण कच्चा तेल 93 डॉलर प्रति बैरल के ऊपर पहुंच गया है। इस बीच रूस से मिल रहे सस्ते कच्चे तेल पर भी भारत के लिए तलवार लटक रही है। इसकी पीछे की वजह है मोड ऑफ पेमेंट। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो रूस ने भारत से क्रूड की पेमेंट चीनी करेंसी युआन में करने की मांग की है। लेकिन भारत की ओर से इनकार कर दिया गया है। भारत का इनकार ऐसे समय में है जब रूस तेल का सबसे बड़ा सप्लायर बनकर उभरा है। ऐसे में सवाल उठता है कि रूस भारत को युआन में पेमेंट करने के लिए जोर क्यों दे रहा है? और इससे आने वाले दिनों में क्या तेल के खेल में रूस भारत को फंसा सकता है? चलिए जानते हैं। यूक्रेन युद्ध के कारण पश्चिमी देशों ने रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए हैं। जिसके बाद भारत ने रूस से सस्ते में क्रूड खरीदा। लेकिन पेंच फंसा पेमेंट को लेकर, क्योंकि रुपये में पेमेंट करने को लेकर पहले सहमति बनी और फिर रूस पलट गया। रूस का कहना है कि उसके पास रुपये की जरूरत से ज्यादा सप्लाई है और इसे खपाने में उसके संघर्ष करना पड़ रहा है। पिछले एक साल में रूस के लिए युआन की अहमियत बढ़ गई है क्योंकि उसे चीन से भारी इंपोर्ट करना पड़ रहा है। रूस की कंपनियां युआन का ज्यादा से ज्यादा इस्तेमाल कर रही हैं। यह ही वजह है कि इस साल रूस में युआन सबसे ज्यादा ट्रेड होने वाली करेंसी बन गई है। भारत की रिफाइनरी कंपनियां ज्यादातर UAE की करेंसी दिरहम, डॉलर और रुपये में पेमेंट करती हैं। छोटे-मोटे लेनदेन के लिए युआन का इस्तेमाल होता है। बिजनेस में मजबूती के चलते रूस और चीन के रिश्तों में और मजबूती आई है।
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सवाल वहीं का वहीं खड़ा है। रूस के कुछ ऑयल सप्लायर युआन में पेमेंट मांग रहे हैं। लेकिन मोदी सरकार इसे मानने को तैयार नहीं है। देश में 70% रिफाइनरी कंपनियां सरकारी हैं। यानि इन कंपनियों को पेमेंट के लिए फाइनेंस मिनिस्ट्री के ऑर्डर को मानना होता है। सरकारी तेल कंपनी इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन ने पहले युआन में भुगतान किया था लेकिन सरकार ने इसे रोक दिया है। ऐसे में रूस का अगल कदम क्या होगा ये कोई नहीं जानता है। मीडिया रिपोर्ट्स की मानें तो चार-पांच कार्गो के पेमेंट में देरी हुई है क्योंकि दोनों पक्षों के बीच करेंसी एक्सचेंज पर सहमति नहीं बन पाई। भारत अभी सबसे ज्यादा कच्चा तेल रूस से ही आयात कर रहा है। लेकिन पेमेंट की दिक्कत बढ़ने से ये सौदा मुश्किल में पड़ सकता है। अब देखना होगा कि भारत और रूस की ओर से आने वाले दिनों में क्या कदम उठाया जाता है।
