एक्टिव और पैसिव म्यूचुअल फंड में आपको भी उलझन है? जानिए आपके लिए कौन सा सही
कई निवेशक एक्टिव (Active Funds) और पैसिव फंड्स (Passive Funds) के बीच उलझ जाते हैं। इन दोनों की रणनीति, खर्च और संभावित रिटर्न अलग होते हैं, इसलिए दोनों में फर्क समझना जरूरी है।

Active vs Passive Mutual Funds: म्यूचुअल फंड्स निवेश का एक लोकप्रिय साधन है। लेकिन इनमें निवेश करते समय कई निवेशक एक्टिव (Active Funds) और पैसिव फंड्स (Passive Funds) के बीच उलझ जाते हैं। इन दोनों की रणनीति, खर्च और संभावित रिटर्न अलग होते हैं, इसलिए दोनों में फर्क समझना जरूरी है।
एक्टिव म्यूचुअल फंड
एक्टिव फंड में प्रोफेशनल फंड मैनेजर तय करता है कि कौन-से शेयर या बॉन्ड खरीदे या बेचे जाएं। इसका टारगेट होता है मार्केट से बेहतर रिटर्न देना।
उदाहरण के लिए, अगर बाजार 10% रिटर्न दे रहा है तो फंड मैनेजर का मकसद इससे ज्यादा रिटर्न दिलाना होगा। इस रिसर्च और मैनेजमेंट के कारण एक्टिव फंड्स में खर्च (Expense Ratio) ज्यादा होता है, जो आपके रिटर्न से काटा जाता है। लेकिन बेहतर रिटर्न की संभावना के साथ इनका जोखिम भी ज्यादा होता है और सफलता की कोई गारंटी नहीं होती।
पैसिव म्यूचुअल फंड
पैसिव फंड किसी इंडेक्स को कॉपी करता है, एक्टिव फंड की तरह इसका मतलब बाजार से बेहतर रिटर्न दिलाना नहीं होता है।
पैसिव फंड अगर निफ्टी 50 को ट्रैक कर रहा है तो उन्हीं 50 कंपनियों में और उसी रेश्यो में निवेश करेगा। इसमें रिसर्च और निर्णय लेने का काम नहीं होता, इसलिए फीस कम होती है। रिटर्न बाजार के करीब-करीब होते हैं। इन्हें आसान, पारदर्शी और लंबे समय में एक्टिव फंड की तुलना में सुरक्षित माना जाता है।
हाल के समय में, खासकर 2025 में, भारतीय निवेशकों का रुझान पैसिव फंड्स की ओर बढ़ा है। इंडेक्स फंड और ETF जैसे विकल्प सस्ते, सरल और शुरुआती निवेशकों के लिए आकर्षक हैं। दूसरी ओर, कई निवेशक अब भी मानते हैं कि कुशल फंड मैनेजर लंबे समय में बेहतर रिटर्न दिला सकते हैं, भले ही इसके लिए ज्यादा फीस देनी पड़े।
आपके लिए कौन-सा सही?
अगर आप एक्सपर्ट मैनेजमेंट चाहते हैं, ज्यादा फीस देने को तैयार हैं और अतिरिक्त जोखिम उठा सकते हैं, तो एक्टिव फंड्स चुन सकते हैं। वहीं अगर आप कम-खर्चीला, आसान और स्थिर निवेश चाहते हैं, तो पैसिव फंड बेहतर होगा।