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मोदी, पुतिन, जिनपिंग की उपस्थिति में BRICS करेंसी का नया प्रस्ताव

चीन के साथ अमेरिका ट्रेड वॉर और अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बीच, अगर BRICS देशों के बीच नई करेंसी पर सहमति बन जाती है, तो यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली (International Financial System) यानी IFS को चुनौती देने के साथ-साथ इन देशों की आर्थिक ताकत को भी बढ़ा सकती है।

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चीन के साथ अमेरिका ट्रेड वॉर और अमेरिका द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बीच, अगर BRICS देशों के बीच नई करेंसी पर सहमति बन जाती है, तो यहअंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली (International Financial System) यानी IFS को चुनौती देने के साथ-साथ इन देशों की आर्थिक ताकत को भी बढ़ा सकती है।

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दरअसल रूस के कजान में 22 से 24 अक्टूबर तक होने वाली 16वीं BRICS समिट एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें दुनिया के सबसे बड़े विकासशील देशों के नेता मिलकर एक नई वैश्विक रिजर्व करेंसी पर चर्चा करने वाले हैं। इस समिट में न केवल भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रहेगें, बल्कि अन्य देशो के राष्ट्रपति जैसे व्लादिमीर पुतिन, और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग समेत अन्य सदस्य के नेता मौजूद रहेंगे।

BRICS देशों की नई करेंसी का उद्देश्य

BRICS देशों की नई करेंसी का उद्देश्य की बात करे तो BRICS देशों—ब्राजील, रूस, भारत, चीन, और दक्षिण अफ्रीका—ने अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने और वैश्विक आर्थिक स्वतंत्रता बढ़ाने के लिए एक नई करेंसी की आवश्यकता महसूस की है।जो मौजूदा समय में, लगभग 90% अंतरराष्ट्रीय कारोबार अमेरिकी डॉलर में होता है। पिछले कुछ वर्षों की बात करें तो अमेरिकी डॉलर का वैश्विक वर्चस्व घटा है, लेकिन फिर भी यह सबसे अधिक इस्तेमाल की जाने वाली करेंसी है।

आर्थिक कारणों का प्रभाव

चीन और अमेरिका के बीच चल रहे व्यापार युद्ध, और अमेरिका द्वारा रूस और चीन पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण BRICS देशों को अपनी आर्थिक नीतियों में बदलाव की जरूरत महसूस हुई है। ये देश एक साझा नई करेंसी के माध्यम से अमेरिकी डॉलर और यूरो पर अपनी निर्भरता कम करने का प्रयास कर रहे हैं।

2022 में 14वें BRICS समिट के दौरान पहली बार इस नई करेंसी की जरूरत पर चर्चा की गई थी। तब रूस के राष्ट्रपति पुतिन ने कहा था कि BRICS देशों को एक नई वैश्विक रिजर्व करेंसी की योजना बनानी चाहिए। इसके बाद, अप्रैल 2023 में ब्राजील के राष्ट्रपति लुइज इनासियो लूला डी सिल्वा ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया।

BRICS करेंसी का अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर प्रभाव

यदि BRICS देशों के बीच नई करेंसी पर सहमति बन जाती है, तो इसका सीधा असर अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली पर पड़ेगा। इस नई करेंसी के इस्तेमाल से, BRICS सदस्य देश अपने आर्थिक हितों को सुरक्षित रखने के साथ-साथ अमेरिकी प्रतिबंधों के प्रभाव को भी कम कर सकते हैं।

विशेषज्ञों का मानना है कि अगर BRICS देश डॉलर के बजाय अपनी नई करेंसी का उपयोग करने लगते हैं, तो इससे अमेरिका की शक्ति और प्रभावशीलता में कमी आ सकती है।

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BRICS करेंसी का असर किन क्षेत्रों पर होगा?

तेल और गैस: नई करेंसी के माध्यम से तेल और गैस के व्यापार में परिवर्तन संभव है। यदि BRICS देश अपनी करेंसी का उपयोग करते हैं, तो इससे वैश्विक तेल बाजार में नया समीकरण बन सकता है।

बैंकिंग और फाइनेंस: वित्तीय लेन-देन में नई करेंसी के प्रयोग से बैंकों की रणनीतियों में बदलाव आ सकता है।

कमोडिटीज: वस्तुओं के व्यापार में नई करेंसी का इस्तेमाल करके BRICS देश वैश्विक बाजार में अपनी स्थिति मजबूत कर सकते हैं।

अंतर्राष्ट्रीय ट्रेड: BRICS देशों के बीच व्यापार को सरल बनाने के लिए नई करेंसी एक महत्वपूर्ण कदम हो सकती है।

टेक्नोलॉजी: नई करेंसी तकनीकी व्यापार में अवसर पैदा कर सकती है, जिससे इन देशों के बीच सहयोग बढ़ सकता है।

टूरिज्म और ट्रैवल: यात्रा के खर्चों में बदलाव हो सकता है, जिससे पर्यटन उद्योग पर प्रभाव पड़ेगा।

फॉरेन एक्सचेंज मार्केट: विदेशी मुद्रा बाजार में नए समीकरण बन सकते हैं, जिससे BRICS देशों की मुद्रा की स्थिति मजबूत हो सकती है।

BRICS देशों की नई करेंसी का प्रस्ताव वैश्विक अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हो सकता है। यदि इस पर सहमति बनती है, तो यह अंतरराष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली को चुनौती देने के साथ-साथ डॉलर की बादशाहत को भी प्रभावित कर सकती है। ऐसे में, BRICS देश वैश्विक आर्थिक पटल पर एक नया अध्याय लिखने की दिशा में आगे बढ़ सकते हैं, जो न केवल उनकी आर्थिक ताकत को बढ़ाएगा बल्कि वैश्विक स्तर पर आर्थिक संतुलन भी स्थापित कर सकता है।

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