भारत के चक्कर में सऊदी अरब और रूस में क्यों बढ़ रहा है तनाव?

जब भी तेल का जिक्र आता है तो जहन में सऊदी अरब के कुएं याद आते हैं। जहां तेल के भंडार के भंडार हैं। एक वक्त था जब सऊदी अरब तेल की बिक्री में बादशाह हुआ करता था, लेकिन अब बीते वक्त की बात हो गई हैं। जी हां पहले तेल उत्पादक देश जैसे ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात से बने संगठन ओपेक में सऊदी अरब की तूती बोलती थी। सऊदी अरब जैसे चाहे, वैसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को प्रभावित कर सकता था। लेकिन अब हालात वैसे नहीं रहे हैं। ऊपर से भारत के चक्कर में ये सऊदी और रूस के बीच में बड़ा तनाव पैदा हो गया है।

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जब भी तेल का जिक्र आता है तो जहन मेंSaudi Arab के कुएं याद आते हैं
जब भी तेल का जिक्र आता है तो जहन मेंSaudi Arab के कुएं याद आते हैं

By Harsh Verma:

जब भी तेल का जिक्र आता है तो जहन मेंSaudi Arab के कुएं याद आते हैं। जहां तेल के भंडार के भंडार हैं। एक वक्त था जब सऊदी अरब तेल की बिक्री में बादशाह हुआ करता था, लेकिन अब बीते वक्त की बात हो गई हैं। जी हां पहले तेल उत्पादक देश जैसे ईरान, इराक, कुवैत, संयुक्त अरब अमीरात से बने संगठन ओपेक में सऊदी अरब की तूती बोलती थी। सऊदी अरब जैसे चाहे, वैसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में तेल की कीमतों को प्रभावित कर सकता था। लेकिन अब हालात वैसे नहीं रहे हैं। ऊपर से भारत के चक्कर में ये सऊदी और रूस के बीच में बड़ा तनाव पैदा हो गया है। समझिए, आखिर क्या है मामला? 

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हम सबने देखा कि कैसे Russia और Ukraine की जंग के चलते अमेरिकी समेत यूरोपीय देशों में रूस पर कई तरह के प्रतिबंध लगाए। जिसमें से एक फैसला यूरोप का रूस के तेल पर प्रतिबंध लगाना भी था। जिसके बाद रूस ने पूरी ताकत के साथ कच्चे तेल को सस्ते दामों पर बेचना शुरू किया। अभी तक दुनिया के दो सबसे बड़ी आबादी वाले देश भारत और चीन सऊदी अरब से सस्ता तेल खरीदते आए थे। लेकिन रूस के जबरदस्त डिस्काउंट के चलते दोनों देशों ने तेल के लिए रूस की ओर रूख कर लिया। ऐसे में सऊदी अरब का रूस से तनाव बढ़ना लाजिमी है।

Russia के जबरदस्त डिस्काउंट के चलते भारत और चीन ने तेल के लिए रूस की ओर रूख कर लिया

आंकड़ों के हिसाब से समझें तो मई में भारत के जरिए इंपोर्ट किए गए कुल तेल का 42% रूस से खरीदा गया है। महीने के आधार पर देखें तो ये 15% की बढ़ोतरी है। मई में रूस से कुल 1.96 मिलियन बैरल प्रतिदिन आयात किया है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। वहीं चीन की बात करें तो मई में रूस से 1.4 मिलियन बैरल प्रतिदिन तेल आयात किया है यानि मंथली आधार पर ऑयल इंपोर्ट में 6.5% की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। अगर अप्रैल और मई के महीने में तुलना करें तो भारत ने रूस से अप्रैल में 37% तेल आयात किया तो वहीं मई में ये बढ़कर 42% हो गया। ईराक की बात करें तो अप्रैल में 17% तेल आयात किया गया, वहीं मई में ये बढ़कर 18% हो गया। लेकिन सऊदी अरब के आंकड़ों को देखें तो ये अप्रैल में 15% था जो मई में घटकर 12% रह गया। यानि कि सऊदी अरब से भारत के तेल इंपोर्ट में कटौती हुई है। 

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दरअसल, सऊदी अरब इसलिए रूस से नाराज है, क्योंकि उसने जिस हिसाब से सौदे किए, उस हिसाब से तेल का उत्पादन नहीं घटाया। इससे सऊदी अरब की तेल की कीमतों को कम से कम 81 डॉलर प्रति बैरल रखने की कोशिशों को झटका लगा। सऊदी अरब चाहता था कि तेल का उत्पादन घटनाया जाए। सऊदी अरब के अधिकारियों ने सार्वजनिक मंच पर रूस के सामने अपनी नाराजगी भी जाहिर की है, लेकिन रूस टस से मश नहीं हुआ। सऊदी अरब ताकतवर रूस का कुछ बिगाड़ नहीं पा रहा है। उधर, चीन और भारत धड़ल्ले से रूस से कच्चा तेल खरीद रहे हैं। भारत और चीन G-7 के प्राइस कैप को भी नहीं मान रहे हैं। इसका पूरा फायदा  रूस को हो रहा है। रूस के कच्चे तेल की कीमत 60 डॉलर प्रति बैरल है। जिसका सीधा नुकसान सऊदी की हो रहा है। एक तो रूस और यूक्रेन की जंग के बाद से रूस सऊदी अरब का तगड़ा प्रतिद्वंद्वी बनकर उभरा है। वहीं दूसरी ओर पूरी दुनिया इलेक्ट्रॉनिक व्हीकल के इस्तेमाल में तेजी ला रही है। जिसके चलते आने वाले दिनों में तेल की मांग घट सकती है। क्योंकि सऊदी के लिए कमाई का सिर्फ एक जरिया तेल की बिक्री ही है।

Saudi Arab की तेल की कीमतों को कम से कम 81 डॉलर प्रति बैरल रखने की कोशिशों को झटका लगा

 

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