Kodak Story: एक महान कैमरा कंपनी का पतन और दिवालिया होने की कहानी
कोडक, एक समय कैमरा और फोटोग्राफी की दुनिया का सबसे बड़ा नाम, कैसे एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया जहां उसे दिवालिया घोषित करना पड़ा? यह कहानी न केवल तकनीकी प्रगति की है, बल्कि एक उद्योग की बदलती जरूरतों और बाजार की मांगों को नजरअंदाज करने की है।

कोडक, एक समय कैमरा और फोटोग्राफी की दुनिया का सबसे बड़ा नाम, कैसे एक ऐसी स्थिति में पहुंच गया जहां उसे दिवालिया घोषित करना पड़ा? यह कहानी न केवल तकनीकी प्रगति की है, बल्कि एक उद्योग की बदलती जरूरतों और बाजार की मांगों को नजरअंदाज करने की है।
कोडक का स्वर्णिम युग
कोडक की शुरुआत 1888 में जॉर्ज ईस्टमैन द्वारा हुई थी। उन्होंने पहली बार ऐसा कैमरा पेश किया जिसे आम लोग भी इस्तेमाल कर सकते थे। कोडक ने फोटोग्राफी को आम जनता के लिए सुलभ और सस्ता बना दिया। कंपनी का प्रसिद्ध स्लोगन, "You press the button, we do the rest," फोटोग्राफी की पूरी प्रक्रिया को सरल बनाने की उसकी सोच को दर्शाता था। 20वीं सदी के ज्यादातर हिस्सों में कोडक कैमरा और फिल्म उद्योग का पर्याय बन गया।
कोडक का फोटोग्राफी के साथ-साथ फिल्म निर्माण, फोटोग्राफिक पेपर, कैमरे और कैमरा रोल्स जैसे विभिन्न उत्पादों में भी एकाधिकार था। 1976 तक, अमेरिका में 85% कैमरों और 90% फिल्म बाजार पर कोडक का कब्जा था। कंपनी न केवल बाजार में अपना दबदबा बनाए हुए थी, बल्कि उन्होंने फोटोग्राफी के क्षेत्र में कई तकनीकी अविष्कार भी किए।
डिजिटल फोटोग्राफी: एक क्रांति जिसे कोडक ने नजरअंदाज किया
1975 में, कोडक के एक इंजीनियर, स्टीव सैसन ने पहला डिजिटल कैमरा विकसित किया। यह एक क्रांतिकारी आविष्कार था, लेकिन कोडक ने इसे गंभीरता से नहीं लिया। कंपनी ने डिजिटल फोटोग्राफी के बढ़ते भविष्य को समझने के बजाय अपनी फिल्म कैमरा तकनीक पर ध्यान केंद्रित किया। उनका मानना था कि डिजिटल कैमरा उनकी फिल्म रोल बिजनेस को नुकसान पहुंचाएगा, जो उनके मुनाफे का प्रमुख स्रोत था।
यह निर्णय उनके लिए विनाशकारी साबित हुआ। 1990 के दशक में जब डिजिटल फोटोग्राफी का बाजार तेजी से बढ़ने लगा, तो कोडक ने अपनी क्षमता और विशेषज्ञता का लाभ उठाने में देरी कर दी। इस दौरान सोनी, कैनन और निकॉन जैसी कंपनियों ने डिजिटल कैमरों के बाजार में अपने पैर जमाने शुरू कर दिए और कोडक पीछे छूट गया।
नेतृत्व की गलतियां और बाजार की अनदेखी
कोडक का प्रबंधन हमेशा इस बात पर केंद्रित रहा कि उनका फिल्म रोल बिजनेस हमेशा लाभदायक रहेगा। उन्होंने न केवल डिजिटल फोटोग्राफी को अपनाने में देरी की, बल्कि अन्य तकनीकी प्रगति जैसे कि ऑनलाइन फोटो शेयरिंग और स्मार्टफोन के उभरते कैमरा फीचर्स को भी नजरअंदाज किया।
2000 के दशक की शुरुआत में, जबकि पूरी दुनिया डिजिटल कैमरों और स्मार्टफोन फोटोग्राफी की ओर बढ़ रही थी, कोडक ने अपनी फिल्म उत्पादन क्षमता को बढ़ाने में निवेश किया। कंपनी ने 2004 तक अपने फिल्म बिजनेस से बहुत बड़ी कमाई की थी, लेकिन अगले कुछ ही सालों में इस बिजनेस की मांग में तेजी से गिरावट आई।
दिवालियापन की ओर यात्रा
कोडक ने डिजिटल फोटोग्राफी को अपनाने के लिए कुछ प्रयास किए, लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी थी। 2000 के दशक के मध्य तक, कंपनी के राजस्व में गिरावट शुरू हो गई थी। 2012 तक, कोडक ने अपने पास मौजूद संसाधनों का अधिकतर हिस्सा खो दिया था। कंपनी पर बढ़ते कर्ज और घटते मुनाफे ने उसे दिवालिया होने की कगार पर ला खड़ा किया।
17 जनवरी 2012 को, कोडक ने न्यूयॉर्क की एक अदालत में अध्याय 11 के तहत दिवालियापन का आवेदन किया। कंपनी ने अपने 131 साल पुराने इतिहास में पहली बार इस तरह की आर्थिक संकट का सामना किया।
कोडक के पतन से सीखे जाने वाले सबक
कोडक की दिवालियापन की कहानी एक महत्वपूर्ण सबक सिखाती है: तकनीकी प्रगति और बाजार के बदलते रुझानों को नजरअंदाज करना किसी भी कंपनी के लिए घातक हो सकता है। कोडक ने अपने पुराने व्यापार मॉडल पर भरोसा किया और समय के साथ बदलते रुझानों को अपनाने में देरी कर दी।
यह घटना अन्य बड़ी कंपनियों के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने वर्तमान व्यापार मॉडल पर निर्भर न रहें, बल्कि भविष्य की संभावनाओं और नवाचारों पर ध्यान दें।
कोडक की वापसी का प्रयास
दिवालिया होने के बाद, कोडक ने अपने व्यवसाय को फिर से संगठित किया और प्रिंटिंग और डिजिटल इमेजिंग के क्षेत्र में दोबारा प्रयास किए। कंपनी ने खुद को डिजिटल प्रिंटिंग, कमर्शियल प्रिंटिंग, और सॉफ्टवेयर में पुनः स्थापित करने का प्रयास किया है, लेकिन कैमरा बाजार में उसकी कभी न दोहराई जा सकने वाली प्रमुख स्थिति अब एक बीते युग की कहानी बनकर रह गई है।