Shubhanshu Shukla Axiom-4 Mission: इतिहास रचने की कगार पर भारत! शुभांशु शुक्ला आज रवाना होंगे अंतरिक्ष स्टेशन

AXIOM-4 मिशन में NASA, Axiom Space और SpaceX की साझेदारी है। चार सदस्यीय इस दल में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे शुभांशु शुक्ला 14 दिनों तक अंतरिक्ष में रहकर 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों में भाग लेंगे। खास बात यह है कि इस मिशन में पहली बार ISRO के सात वैज्ञानिक प्रयोग भी शामिल किए गए हैं।

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By Gaurav Kumar:

Shubhanshu Shukla: भारत अंतरिक्ष विज्ञान के एक नए युग की दहलीज पर खड़ा है। आज दोपहर भारतीय समयानुसार ठीक 12:01 बजे, भारतीय अंतरिक्ष यात्री शुभांशु शुक्ला अमेरिका से AXIOM-4 मिशन के तहत अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) की ओर रवाना होंगे। यह मिशन स्पेसX के फाल्कन-9 रॉकेट के जरिए अमेरिकी केनेडी स्पेस सेंटर से लॉन्च होगा।

AXIOM-4 मिशन में NASA, Axiom Space और SpaceX की साझेदारी है। चार सदस्यीय इस दल में भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे शुभांशु शुक्ला 14 दिनों तक अंतरिक्ष में रहकर 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोगों में भाग लेंगे। खास बात यह है कि इस मिशन में पहली बार ISRO के सात वैज्ञानिक प्रयोग भी शामिल किए गए हैं।

इन प्रयोगों में माइक्रोग्रैविटी में कोशिकाओं का व्यवहार, जैविक अनुसंधान और नई अंतरिक्ष टेक्नोलॉजीज पर आधारित अध्ययन किए जाएंगे। यह पहली बार है जब भारतीय वैज्ञानिक प्रयोग किसी निजी अंतरिक्ष मिशन का हिस्सा बने हैं।

इसरो के अनुसार, "ये प्रयोग भविष्य में अंतरिक्ष यात्राओं के लिए भारत की वैज्ञानिक क्षमता को नई दिशा देंगे।"

शुभांशु शुक्ला भारत के पहले निजी अंतरिक्ष यात्री बनेंगे। उनसे पहले केवल राकेश शर्मा ने 1984 में सोवियत मिशन के तहत अंतरिक्ष की यात्रा की थी। अब, भारत की उपस्थिति वैश्विक अंतरिक्ष मिशनों में स्पष्ट रूप से देखी जा रही है। यह मिशन न केवल वैज्ञानिक दृष्टि से, बल्कि राष्ट्रीय गर्व के रूप में भी एक ऐतिहासिक माइलस्टोन है।

यह मिशन अब तक सात बार टल चुका है। अब नई लॉन्च तारीख आज यानी 25 जून तय की गई है। पहले लॉन्च में देरी की मुख्य वजहें लॉन्च व्हीकल में तकनीकी समस्याएं और इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) के ज़्वेज़्दा (Zvezda) मॉड्यूल में दबाव में आया बदलाव रहीं।

ज़्वेज़्दा मॉड्यूल में लीक की जानकारी सबसे पहले 2019 में सामने आई थी, और अंतरिक्ष एजेंसियां इसे ठीक करने के लिए तब से लगातार प्रयास कर रही हैं। एक्सिओम-4 मिशन से पहले इस मॉड्यूल की मरम्मत का काम पूरा किया गया।

अंतरिक्ष में जाने वाले अंतरिक्ष यात्रियों को मांसपेशियों की कमजोरी जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जो लंबे मिशनों और माइक्रोग्रैविटी अनुसंधान के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती है। उदाहरण के तौर पर, नासा की अंतरिक्ष यात्री सुनीता विलियम्स की बात करें तो, इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर 9.5 महीने बिताने के बाद जब वह पृथ्वी पर लौटीं, तो उनकी पीठ और पैरों की मांसपेशियां काफी कमजोर हो गई थीं।

अब एक्सिओम-4 मिशन के तहत भारत के शोध मिशनों में एक अहम उद्देश्य यह है कि माइक्रोग्रैविटी में मांसपेशियों को नुकसान पहुंचने के पीछे की वजहों को समझा जाए और इसके लिए प्रभावी उपचार-आधारित रणनीतियों को विकसित किया जाए। इस स्टडी का मकसद भविष्य के लंबे अंतरिक्ष अभियानों में अंतरिक्ष यात्रियों की मांसपेशियों को कमजोर होने से बचाना है।

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