क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म, थीएटर्स की जगह ले रहे है?
हाल के वर्षों में ओटीटी पर पंचायत, स्क्विड गेम, स्कैम 1992, दिल्ली क्राइम और मिर्जापुर जैसे कंटेंट की लोकप्रियता ने यह साफ कर दिया है कि दर्शक अब केवल स्टार पावर पर निर्भर नहीं रहना चाहते।

Theatres vs OTT platforms: एक समय था जब शुक्रवार को सिनेमाघरों के बाहर टिकट के लिए लंबी कतारें लगती थीं। लेकिन अब यह दृश्य तेजी से बदल रहा है। ओवर-द-टॉप (ओटीटी) प्लेटफॉर्म जैसे Netflix, Amazon Prime Video, JioHotstar इत्यादि अब न केवल दर्शकों की पसंद में शामिल हो चुके हैं, बल्कि बॉलीवुड के पारंपरिक वर्चस्व को भी चुनौती दे रहे हैं।
हाल के वर्षों में ओटीटी पर पंचायत, स्क्विड गेम, स्कैम 1992, दिल्ली क्राइम और मिर्जापुर जैसे कंटेंट की लोकप्रियता ने यह साफ कर दिया है कि दर्शक अब केवल स्टार पावर पर निर्भर नहीं रहना चाहते। वे कहानियों की गहराई, अभिनय और नए विषय को तवज्जो दे रहे हैं - जो अक्सर थिएटर-फ्रेंडली मसाला फिल्मों में नहीं मिलती।
कोविड-19 से आया मोड़
कोविड-19 महामारी ने इस बदलाव को और तेज किया। सिनेमाघर बंद होने के कारण निर्माता सीधे ओटीटी पर फिल्में रिलीज करने लगे। इससे दर्शकों की आदतों में स्थायी बदलाव आया। अब दर्शक मोबाइल या टीवी पर अपनी सुविधा से कंटेंट देखना पसंद करते हैं।
क्या ओटीटी प्लेटफॉर्म, थीएटर्स की जगह ले रहे है?
फिलहाल यह कहना अभी जल्दबाजी होगा कि ओटीटी बॉलीवुड की जगह ले रहा है। बड़े बजट की फिल्में जैसे पठान, जवान और आरआरआर की बॉक्स ऑफिस सफलता यह दिखाती है कि थिएटर का अनुभव अब भी दर्शकों के लिए खास है। लेकिन यह कहना बिल्कुल जायज है कि ओटीटी ने लोगों को कंटेट देखने का तरीका बदला है।
विशेषज्ञों का मानना है कि भविष्य में ओटीटी और थीएटर्स दोनों अस्तित्व में रहेंगे। ओटीटी इनोवेशन और विविधता लाएगा, जबकि थिएटर इवेंट फिल्मों और ग्रुप एक्सपीरियंस को बढ़ाएगा।
फिल्म बनाने के रणनीति में बदलाव
OTT के बढ़ते प्रभाव ने फिल्म बनाने की रणनीति को भी बदला है। अब निर्माता पहले से ज़्यादा कंटेंट-फोकस्ड स्क्रिप्ट पर ध्यान दे रहे हैं। अभिनेता भी इस मंच को गंभीरता से लेने लगे हैं - मनोज बाजपेयी, पंकज त्रिपाठी और शेफाली शाह जैसे कलाकार OTT के दम पर नए सिरे से दर्शकों के दिलों में जगह बना चुके हैं।
साथ ही, वेब सीरीज और डिजिटल फिल्मों के जरिए उन्हें लंबे समय तक अपने किरदार को विकसित करने का मौका मिलता है, जो पारंपरिक फिल्मों में अक्सर नहीं मिल पाता।
वहीं, क्षेत्रीय कंटेंट की पहुंच भी OTT के जरिए व्यापक हुई है। अब मराठी, मलयालम, बंगाली और तमिल कहानियां भी हिंदी दर्शकों तक आसानी से पहुंच रही हैं।