क्या अब बच्चा पैदा करना भी लग्जरी बन गया? जानिए साल 2025 में भारत में एक बच्चे को पालने का पूरा खर्च
linkedin पर एक पोस्ट वायरल हो रहा है। इस पोस्ट के अनुसार आज के समय में कई कपल बच्चा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वह फाइनेंशियल तौर पर स्टेबल नहीं है।

आज के समय में जब महंगाई हर चीज को छू रही है, तब एक बच्चा पालना भी अब मिडिल क्लास लोगों के लिए एक बड़ा फैसला बन गया है। पहले जहां लोग परिवार बढ़ाने को जिंदगी का हिस्सा मानते थे। वहीं अब ये सोचने लगे हैं कि क्या वे आर्थिक रूप से इसके लिए तैयार हैं। खासकर शहरी भारत में अब बच्चे की परवरिश करना कोई छोटी बात नहीं रही।
बेंगलुरु की स्टार्टअप फाउंडर मीनल गोयल ने अपने लिंक्डइन पोस्ट में एक कपल का जिक्र किया। उन्होंने अपने पोस्ट में कहा कि कपल इसलिए बच्चे नहीं कर रहे क्योंकि हम उसे अफोर्ड नहीं कर सकते। इस पर सोनल ने खुद बैठकर पूरा हिसाब लगाया और बताया कि भारत में एक बच्चे की परवरिश पर करीब 45 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं।
शुरुआती सालों में कितना खर्च होता है?
बच्चे के जन्म से लेकर प्री-स्कूल तक का खर्च बहुत ज्यादा होता है। अस्पताल में डिलीवरी, वैक्सीनेशन, बेबी फूड, डायपर और बच्चों के जरूरी सामान पर लाखों रुपये खर्च हो जाते हैं। अगर प्ले स्कूल या डे-केयर की बात करें तो उसमें भी अच्छी खासी रकम लगती है। इस पूरे शुरुआती दौर में ही लगभग 7 से 8 लाख रुपये खर्च हो जाते हैं।
स्कूल और ट्यूशन की जिम्मेदारियां
जब बच्चा स्कूल में पहुंचता है, तब उसकी पढ़ाई के साथ-साथ दूसरी जरूरतों का खर्च भी बढ़ने लगता है। स्कूल फीस, ट्यूशन, कोचिंग, किताबें, यूनिफॉर्म, गैजेट्स और स्कूल एक्टिविटीज पर हर साल बड़ी रकम जाती है। 6 से 17 साल की उम्र तक यह खर्च लगभग 17 लाख रुपये तक पहुंच सकता है।
कॉलेज की पढ़ाई और भी महंगी
बच्चे की आगे की पढ़ाई यानी कॉलेज या प्रोफेशनल कोर्स का खर्च आज के समय में काफी ज्यादा हो गया है। अगर बच्चा प्राइवेट कॉलेज में पढ़ता है, तो फीस, होस्टल, खाना और बाकी खर्च जोड़ने पर करीब 13 से 15 लाख रुपये तक का खर्च आता है।
कुल खर्च और डर का कारण
अगर इन सभी चरणों को मिलाकर देखा जाए तो एक बच्चे को पालने में 38 से 45 लाख रुपये तक का खर्च आता है। इसी वजह से आज के युवा कपल्स सोचने लगे हैं कि क्या वे बच्चे के लिए तैयार हैं। यह सिर्फ एक इमोशन्ल नहीं, अब एक आर्थिक फैसला भी बन गया है।
बच्चा पालना पूरी तरह नामुमकिन नहीं है, लेकिन इसके लिए समय पर प्लानिंग, सेविंग और सही फाइनेंशियल टूल्स की जरूरत होती है। SIP, चाइल्ड एजुकेशन प्लान और हेल्थ इंश्योरेंस जैसी चीजें इस जिम्मेदारी को आसान बना सकती हैं।