अमेरिकी टैरिफ का असर! Arvind, Welspun Living और KPR Mill का ब्रोकरेज ने घटाया टारगेट - फिसला स्टॉक

एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग का अनुमान है कि टेक्सटाइल और अपैरल पर कुल टैरिफ बोझ 62-65 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा, जिससे अमेरिकी बाजार में भारतीय कंपनियों के लिए कंपीटिशन करना लगभग असंभव हो सकता है।

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By Gaurav Kumar:

Textile Stocks: अमेरिका द्वारा 27 अगस्त 2025 से भारत से आयात होने वाले टेक्सटाइल पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू करने के फैसले ने भारतीय निर्यातकों की चिंता बढ़ा दी है। एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग का अनुमान है कि टेक्सटाइल और अपैरल पर कुल टैरिफ बोझ 62-65 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा, जिससे अमेरिकी बाजार में भारतीय कंपनियों के लिए कंपीटिशन करना लगभग असंभव हो सकता है। चीन, बांग्लादेश और वियतनाम जैसे देशों पर तुलनात्मक रूप से कम टैरिफ लगने से भारत को नुकसान होगा।

भारत के टेक्सटाइल निर्यात में अमेरिका की हिस्सेदारी सबसे बड़ी है, जो कुल निर्यात का 28 प्रतिशत (करीब 10 अरब डॉलर) है। इसमें गारमेंट्स और होम टेक्सटाइल्स का बड़ा योगदान है। बढ़े हुए टैरिफ इस लंबे समय से चले आ रहे व्यापारिक संबंध को झटका दे सकते हैं और प्रमुख निर्यातकों की वित्तीय स्थिति पर दबाव डाल सकते हैं।

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एंटीक स्टॉक ब्रोकिंग ने अरविंद लिमिटेड (Arvind Ltd) पर 'Hold' रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस ₹453 से घटाकर ₹330 कर दिया है। 

वहीं वेलस्पन लिविंग (Welspun Living Ltd) पर ब्रोकरेज ने 'Hold' रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस ₹155 से घटाकर ₹132 कर दिया है और केपीआर मिल (K.P.R. Mill Limited) पर भी 'Hold' रेटिंग देते हुए इसका टारगेट प्राइस ₹1,055 का दिया है।

ब्रोकरेज के मुताबिक, अरविंद की 38% और वेलस्पन की 60% बिक्री अमेरिका से आती है, जिससे असर ज्यादा होगा। अरविंद ने यूके में अपनी इनकम दोगुनी करने का टारगेट रखा है, जबकि वेलस्पन का नॉन-US बिजनेस 40% तक पहुंच चुका है। गोकलदास एक्सपोर्ट्स और वेलस्पन ने यूरोप और यूके पर फोकस बढ़ा दिया है। फिर भी, अमेरिकी बाजार से होने वाले संभावित नुकसान की पूरी भरपाई मुश्किल दिखती है।

रिपोर्ट के मुताबिक पहले लगाए गए 25% टैरिफ को अमेरिकी रिटेलर्स किसी हद तक संभाल पाए थे, लेकिन अतिरिक्त 25% अब इन कंपनियों को ज्यादा नुकसान पहुंचा सकता है। सितंबर के बाद के कई ऑर्डर फिलहाल होल्ड पर हैं।

निर्यातकों को राहत के लिए भारत सरकार जीएसटी सुधार और कॉटन इंपोर्ट ड्यूटी छूट जैसी इन डायरेक्ट मदद दे रही है, लेकिन इसका असर सीमित है। इंडस्ट्री एक्सपर्ट मानते हैं कि कंपनियों को विदेशी बाजारों में विविधता लानी होगी। हाल के एफटीए के चलते ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और यूएई में अवसर बढ़े हैं।

ब्रोकरेज का मानना है कि जब तक भारत और अमेरिका के बीच कोई व्यापार समझौता नहीं होता, निर्यातकों के लिए माहौल चुनौतीपूर्ण बना रहेगा। 

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