अनिल अंबानी की ये कंपनी बुरी तरह फेल! अब SBI ने कहा ‘फ्रॉड’, 30 जून से बंद है ट्रेडिंग

RCom की गिरती साख को बीते 1 जुलाई को और झटका तब लगा, जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने कंपनी के लोन खाते को “फ्रॉड” घोषित कर दिया और पूर्व निदेशक अनिल अंबानी का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को भेज दिया।

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By Gaurav Kumar:

Reliance Communications Share: एक जमाने में भारत की दूसरी सबसे बड़ी टेलीकॉम कंपनी रही रिलायंस कम्युनिकेशंस (RCom) के शेयर में बीते 30 जून के बाद से ट्रेडिंग नहीं हुई है। RCom की गिरती साख को बीते 1 जुलाई को और झटका तब लगा, जब स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) ने कंपनी के लोन खाते को “फ्रॉड” घोषित कर दिया और पूर्व निदेशक अनिल अंबानी का नाम भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) को भेज दिया।

बीते 30 जून को शेयर बीएसई पर 4.73% या 0.08 गिरकर 1.61 रुपये पर बंद हुआ था।

 यह मामला अगस्त 2016 से जुड़ा है और RCom ने इसे एक आधिकारिक फाइलिंग में पुष्टि की है। हालांकि, कंपनी ने याद दिलाया कि 2019 से वह कॉरपोरेट इनसॉल्वेंसी रिजॉल्यूशन प्रक्रिया के तहत है, और इस अवधि से पहले के सभी कर्जों को उसी योजना के तहत निपटाया जाना चाहिए।

2005 में अंबानी भाइयों के विभाजन के बाद अनिल अंबानी के नेतृत्व में RCom ने भारतीय टेलीकॉम बाजार में तूफानी एंट्री की थी। सस्ते कॉल रेट, 501 रुपये के मोबाइल ऑफर और सीडीएमए तकनीक के सहारे RCom ने व्यापक नेटवर्क और निवेशकों का भरोसा जीता। 2006 में हुए IPO को 73 गुना ओवरसब्सक्रिप्शन मिला और कंपनी ने 5,000 करोड़ रुपये से अधिक जुटाए।

लेकिन समय के साथ GSM तकनीक की ओर रुझान, जियो की एंट्री और बढ़ते कर्ज ने कंपनी की नींव हिला दी। RCom ने 2010 में 3G स्पेक्ट्रम के लिए 8,585 करोड़ रुपये खर्च किए, जिससे उसका वित्तीय संतुलन बिगड़ा। 2016 में जियो के मुफ्त कॉल और डेटा ऑफर ने रही-सही कसर पूरी कर दी।

2019 में RCom ने दिवालिया होने की अर्जी दी। उस वक्त कंपनी पर 45,000 करोड़ रुपये से अधिक का कर्ज था। कंपनी की संपत्तियों की बिक्री और पुनर्गठन योजनाएं नाकाम रहीं। अनिल अंबानी को कोर्ट की अवमानना से बचाने के लिए बड़े भाई मुकेश अंबानी ने 450 करोड़ रुपये की मदद की थी।

आज, जबकि RCom का अतीत कानूनी झंझटों में उलझा है, अनिल अंबानी एक बार फिर नए क्षेत्रों- क्लीन एनर्जी और डिफेंस में वापसी की कोशिश कर रहे हैं। उनकी कंपनियों को हाल ही में सरकारी टेंडर, PPA करार और विदेशी रक्षा सौदे मिले हैं, जिससे निवेशकों में नई उम्मीद जगी है।

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