भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती और निवेश के अवसर
सरकार की भविष्य की नीतियों पर स्पष्टता मिलने तक बाजार में मजबूती बनी रह सकती है। केंद्रीय बजट सरकार की ओर से इस तरह की पहली घोषणा है। अर्थव्यवस्था के स्ट्रक्चरल ड्राइवर्स को देखते हुए, हमारा मानना है कि यह सुधार मिड टर्म में इक्विटी में आवंटन बढ़ाने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। निवेशकों को धैर्य और अनुशासन बनाए रखना चाहिए और लंबी अवधि के निवेश के लिए उपयुक्त अवसरों पर नजर रखनी चाहिए।

Author: Hemant Kanawala, Senior Executive Vice President - Investments, Kotak Mahindra Life Insurance
यदि आप एक निवेशक के रूप में बाजार में धैर्य बनाए रखते हैं, तो सफल निवेशक बनने की संभावनाएं बढ़ जाती हैं। मेरे 29 वर्षों के अनुभव ने मुझे यह सिखाया है कि बाजार की अनिश्चितताओं और अस्थिरताओं के बावजूद धैर्य एक महत्वपूर्ण गुण है। वर्तमान में, जब देश ने चुनाव के बाद नई सरकार पाई है, निवेशकों के लिए यह समझना महत्वपूर्ण है कि नई सरकार की आर्थिक नीतियों और एजेंडों का बाजार और अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा। आइए उन मौकों का विश्लेषण करें जो इस समय मौजूद हैं और रिटेल निवेशकों के लिए हमारी निवेश यात्रा कैसी हो सकती है:
नीति सुधार और भविष्य की संभावनाएं
पिछले दशक में सरकार ने पॉलिसी स्तर पर कई सुधार किए हैं, जैसे कि कॉर्पोरेट टैक्स रेट को कम करना, उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना (PLI), जीएसटी लागू करना, रिटायरमेंट फंड को स्टॉक में निवेश की अनुमति देना, बैंकरप्सी कोड और रियल एस्टेट रेगुलेटरी अथॉरिटी (RERA)। ये सुधार अर्थव्यवस्था की संरचना को बेहतर बनाने में सहायक साबित हुए हैं और निवेश आधारित विकास को बढ़ावा मिला है। हमारा मानना है कि अगले पांच सालों में और भी सकारात्मक संरचनात्मक बदलाव आने की संभावना है, जैसे कि फिस्कल कंसोलिडेशन, इंफ्रास्ट्रक्चर पर खर्च, प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट, एनर्जी ट्रांजिशन, और सोशल इंफ्रास्ट्रक्चर पर अधिक खर्च।
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मैक्रो लेवल पर स्थिरता
पिछले दशक में सरकार की सबसे बड़ी उपलब्धि मैक्रो लेवल पर स्थिरता रही है, जिसने निरंतर विकास की नींव रखी है। सरकार महंगाई को 4% के आसपास बनाए रखने का लक्ष्य रखती है, जिसमें 2% का विचलन स्वीकार्य है। इन्फ्लेशन वित्त वर्ष 2024 में 5.4% से घटकर वित्त वर्ष 2025 में 4.5% पर आने की संभावना है। सरकार की प्राथमिकता फिस्कल डेफिसिट को जीडीपी के 4.5% तक लाने की है, जो वित्त वर्ष 2024 में 5.6% थी। चालू खाता घाटा (CAD) 2% से कम और 600 बिलियन अमेरिकी डॉलर से अधिक का विदेशी मुद्रा भंडार भारतीय रुपये को स्थिरता प्रदान करेगा। इन सभी कारकों ने भारत को सबसे तेजी से बढ़ती बड़ी अर्थव्यवस्था बनने में मदद की है और अगले कुछ सालों तक 6% से अधिक की वृद्धि बनाए रखने की संभावना है।
कैपेक्स साइकिल
कोविड-19 महामारी के बाद से कैपेक्स में सुधार का नेतृत्व सरकार ने किया है, जबकि प्राइवेट कैपेक्स में सुधार के शुरुआती संकेत दिख रहे हैं। सप्लाई-साइड में सुधार, कैपेसिटी यूटिलाइजेशन दरों में सुधार, और कॉर्पोरेट एवं फाइनेंशियल सेक्टर की बैलेंस शीट में लचीलापन के चलते कैपेक्स साइकिल को शुरू करने के लिए मजबूत आधार मिलने की संभावना है। जीडीपी में मैन्युफैक्चरिंग की हिस्सेदारी वर्तमान में 14% से बढ़कर 2030 तक 20% से अधिक हो जाएगी।
एनर्जी ट्रांजिशन
एनर्जी के इंपोर्टेड सोर्स, मुख्य रूप से ऑयल और कोयले पर निर्भरता के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था प्रभावित होती रही है। जब इन कमोडिटी की इंटरनेशनल कीमतें बढ़ती हैं, तो इसका असर भारत के चालू खाता घाटा पर पड़ता है। इसलिए सरकार ने उचित रूप से एनर्जी सोर्स को फॉसिल फ्यूल से रिन्यूएबल एनर्जी में शिफ्ट करने को प्राथमिकता दी है और हमें इस दिशा में सार्थक प्रगति देखने की संभावना है। वर्तमान में, 72% एनर्जी कोयले और ऑयल से आती है, जो 2034 तक घटकर 58% हो जाएगी। इससे प्रदूषण को कम करने में भी मदद मिलेगी क्योंकि अर्थव्यवस्था की वृद्धि के साथ एनर्जी की मांग भी बढ़ेगी।
निष्कर्ष
सरकार की भविष्य की नीतियों पर स्पष्टता मिलने तक बाजार में मजबूती बनी रह सकती है। केंद्रीय बजट सरकार की ओर से इस तरह की पहली घोषणा है। अर्थव्यवस्था के स्ट्रक्चरल ड्राइवर्स को देखते हुए, हमारा मानना है कि यह सुधार मिड टर्म में इक्विटी में आवंटन बढ़ाने का एक अच्छा अवसर प्रदान करता है। निवेशकों को धैर्य और अनुशासन बनाए रखना चाहिए और लंबी अवधि के निवेश के लिए उपयुक्त अवसरों पर नजर रखनी चाहिए।