'30 हजार की नौकरी करूं या चाय की टपरी खोलूं?' - डॉली चायवाला की सफलता के बाद ये सवाल हर युवा के मन में

जब से डॉली चायवाला की रील वायरल हुई है और उसकी तरक्की की एक से बढ़कर एक रील सामने आ रही है, लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर इतने पढ़े लिखे होने का क्या मतलब जब आपसे ज्यादा चाय वाला कमाता हो?

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By Gaurav Kumar:

Job vs Tea Stall: “30 हजार की नौकरी करूं या चाय की टपरी खोलूं?” - ये सवाल आज के युवाओं के बीच बहस का मुद्दा बन चुका है। युवाओं के मन में या फिर सोशल मीडिया पर अक्सर यह विचार अलग-अलग रील के रूप में सामने आता है।

जब से डॉली चायवाला की रील वायरल हुई है और उसकी तरक्की की एक से बढ़कर एक रील सामने आ रही है, लोगों के मन में यह सवाल आता है कि आखिर इतने पढ़े लिखे होने का क्या मतलब जब आपसे ज्यादा चाय वाला कमाता हो? अब सवाल उठता है क्या सच में यह तुलना जायज है या फिर इसका कोई मेल ही नहीं है? चलिए डिटेल में जानते हैं।

₹30,000 की नौकरी vs चाय की टपरी

30,000 रुपये की नौकरी एक निश्चित वेतन, कार्य-घंटों का अनुशासन और कुछ हद तक सुरक्षा देती है। स्वास्थ्य बीमा, पीएफ, प्रमोशन जैसी सुविधाएं भविष्य के लिए रास्ता बनाती हैं। हालांकि, इसमें आय सीमित होती है और ग्रोथ स्लो हो सकती है—खासकर अगर आप मध्यम दर्जे की नौकरी में फंसे हैं।

एक चाय की टपरी का खर्चा शुरू में कम होता है। अगर जगह अच्छी हो, ग्राहक नियमित हों, और आप स्वाद में कुछ नया जोड़ सकें तो ₹1-2 लाख महीने की कमाई भी मुमकिन है। मगर इसके साथ जुड़ी हैं चुनौतियां: रोज़ बारिश-धूप में खड़ा रहना, रेगुलेशन का डर, प्रतिस्पर्धा, और कोई निश्चित आय नहीं।

तुलना करना सरल, लेकिन निर्णय कठिन

चाय की टपरी में एक उद्यमिता की भावना है, लेकिन वो तभी सफल होगी जब आप मेहनत, धैर्य और स्मार्ट प्लानिंग के लिए तैयार हों। वहीं नौकरी में भले ही पैसा कम हो, लेकिन अगर आप उसमें स्किल बढ़ाएं, नेटवर्क बनाएं, और जॉब बदलने की हिम्मत रखें तो वहां भी ग्रोथ की गुंजाइश है।

क्या करें?

अगर आपके पास बिज़नेस करने का जुनून और थोड़ा रिस्क लेने की हिम्मत है, तो चाय की टपरी सिर्फ एक शुरुआत हो सकती है। लेकिन अगर आप स्टेबल इनकम, प्रोफेशनल ग्रोथ और स्किल डेवलपमेंट चाहते हैं, तो 30 हजार की नौकरी एक मजबूत आधार हो सकती है।

₹30,000 की नौकरी vs चाय की टपरी: क्या सच में तुलना जायज है?

यह तुलना केवल पैसे तक सीमित नहीं होनी चाहिए। सवाल ये है कि आप खुद को कहां बेहतर महसूस करते हैं - जहां नियम तय हैं, या जहां हर दिन नया जोखिम और मौका है।

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