Narendra Modi Interview: नरेंद्र मोदी का सबसे सॉलिड इंटरव्यू,चार संपादक और हर सवाल का जवाब

लोकसभा चुनाव के बीच PM Modi का आजतक ने सबसे सॉलिड इंटरव्यू लिया है। इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल, मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप, मैनेजिंग एडिटर श्वेता सिंह और कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी ने पीएम मोदी से देश के तमाम मुद्दों पर बात की है।

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लोकसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आजतक ने सबसे सॉलिड इंटरव्यू लिया है
लोकसभा चुनाव के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का आजतक ने सबसे सॉलिड इंटरव्यू लिया है

By BT बाज़ार डेस्क:

लोकसभा चुनाव के बीच PM Modi  का 'आजतक' ने सबसे सॉलिड इंटरव्यू लिया। इस इंटरव्यू में पीएम मोदी ने विपक्ष के हर आरोप और चुनावी मुद्दे पर बेबाक राय रखी। इंडिया टुडे ग्रुप के न्यूज डायरेक्टर राहुल कंवल, मैनेजिंग एडिटर अंजना ओम कश्यप, मैनेजिंग एडिटर श्वेता सिंह और कंसल्टिंग एडिटर सुधीर चौधरी के सवालों के पीएम ने जवाब दिए।

अंजना ओम कश्यपः प्रधानमंत्री जी, लोग जब चुनाव की तैयारी करते हैं तब उम्मीदवारों की लिस्ट बनाते हैं। घोषणा पत्र और स्टार कैंपेनर तय करते हैं लेकिन आप 100 दिन आगे का एजेंडा बनाने में लग गए हैं। पहला प्रश्न आपसे यही है कि 2014 में जब आप आए तो सौ दिन के अंदर आपने ओआरओपी, काले धन पर एसआईटी गठित की। 2019 में आए तो 62 दिन में आपने ट्रिपल तलाक और 66 दिन में कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाया। 2024 में अगर आप सत्ता में आते हैं तो सौ दिन में क्या करेंगे, कौन से बड़े और सख्त फैसले ले सकते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः एक तो शायद मेरी कार्यशैली का हिस्सा है कि चीजों को बहुत वेल एंड एडवांस करता हूं। जब संगठन का काम करता था, तब भी काफी पूर्वानुमान लगाता था कि मुझे इस समय ये करना है, इस समय ये करना है. इसलिए टाइम का भी ढंग से बंटवारा करता हूं। प्राथमिकता भी बड़ी आसानी से तय कर सकता हूं। किसी मैनेजमेंट स्कूल का स्टूडेंट तो नहीं रहा लेकिन शायद यह काम करते-करते डेवलप हुआ है। बहू भी जब शादी करके घर में नई आती है, पहले पांच-सात-दस दिन बराबर देखा जाता है कि यह कैसे काम करती है, कैसा स्वभाव है। ये दुनिया का स्वभाव है। मुझे लगा कि इसको एड्रेस करना चाहिए। एक बड़ी मजेदार घटना बताता हूं। 26 जनवरी को गुजरात में भूकंप आया, भयंकर भूकंप था। उस वक्त मैं पार्टी का काम करता था कि अक्टूबर में मुझे अचानक सीएम बनना पड़ा। सीएम की शपथ लेकर सीधा भूकंप प्रभावित इलाके में चला गया। दो-तीन रात वहीं रहा और देखा सब चीजें। पहले वॉलंटियर के रूप में देखता था, अब सीएम के रूप में देख रहा था और फिर आकर अधिकारियों की मीटिंग ली। सबने बताया कि मार्च तक यह हो जाएगा, वो हो जाएगा. मैंने उनसे कहा कि सबसे पहले ये मार्च वाला बजट कैलेंडर बाजू में रख दो और बताओ कि 26 जनवरी के पहले क्या करोगे? दुनिया 26 जनवरी को देखने आएगी कि एक साल में क्या किया है, सारा पॉइंट आउट करके बताइए. फिर पूरी मशीनरी को सक्रिय किया और यहां शायद 24 जनवरी को दिल्ली आकर प्रेसवार्ता कर देश को रिपोर्ट कार्ड दिया था और उस समय जैसा मेरा अनुमान था, मीडिया गुजरात पहुंचा था। लेकिन 24, 25, 26 जनवरी की रिपोर्ट्स में वाहवाही के सिवाय कुछ नहीं था। उसका एक कारण ये था कि मैंने मार्च के डेड एंड को प्रीपोन कर लिया। इसकी ताकत समझता हूं और इसलिए एक 100 दिन का एजेंडा सेट करता हूं। मैं यह नहीं चाहता हूं कि सरकार चलती है, यार कोई अच्छी चीज आ जाएगी देख लेंगे। जी नहीं सरकार मुझे चलाना है। सरकार चलती है इसके लिए मुझे लोगों ने नहीं बैठाया है। मुझे देश में कुछ चीजों को चलाना है। मुझे कुछ चीजों को बदलना है और इसलिए मैंने क्या किया कि 2014 में सौ दिन के लिए सोचा पांच साल के लिए मेरे पास मैनिफेस्टो होता है। 2019 में यह भी देखा, साथ-साथ ग्लोबल चीजों की तरफ थोड़ा ध्यान दिया। 2024 के लिए मेरी सोच थोड़ी लंबी है। पिछले पांच साल से काम कर रहा हूं। 20 लाख से ज्यादा लोगों से इनपुट लिए हैं और उनके आधार पर 2047 का एक विजन डॉक्यूमेंट बना रहा हूं। इस पर काम करते-करते अफसरों की दो पीढ़ी रिटायर हो चुकी होगी। काफी नए लोग आए हैं. अभी चुनाव कार्यक्रम की घोषणा के एक महीने पहले सभी सचिव और काउंसिल की एक बड़ी समिट की और कहा कि इस विजन डॉक्यूमेंट में से मुझे पांच साल की प्राथमिकताएं बताएं. उसके आधार पर पांच साल का मैप बनाया। फिर उसमें से सौ दिन की प्राथमिकताएं तय कर दीं कि पहली प्राथमिकता ये होगी, दूसरी ये होगी। इस पर काम भी शुरू हो गया है। लेकिन अब मन में नया विचार आया है जो पहली बार आपके सामने बता रहा हूं। तब सौ दिन का सोच रहा था, तभी सवा सौ दिन पर सोचने के लिए मजबूर हो गया और उत्साहित भी हूं. देखा कि इस पूरे कैंपेन में फर्स्ट टाइम वोटर कहो या युवा पीढ़ी कहो, उनके एस्पिरेशन को फील कर रहा हूं सौ दिन का प्लान कर लिया है, अब 25 दिन और जोड़ना चाहता हूं और उसे पूरी तरह यूथ पर फोकस करना चाहता हूं। 25 दिन टोटली डेडिकेट करना चाहता हूं।

सुधीर चौधरीः बड़ी बात है कि चुनाव समाप्त नहीं हुआ और हम आपके अगले टर्म की बात कर रहे हैं। आप सौ दिन, 125 दिन की बात कर रहे हैं। इससे ऐसा लगता है कि आप आश्वस्त हैं कि वापस आने वाले हैं। हर जगह जो बीजेपी का सबसे बड़ा एसेट है, वह आपका चेहरा है और आपका काम है। आपको कभी ऐसा लगा कि इस बार तीसरे टर्म के दौरान कैंडिडेट्स ने भी शायद ऐसा सोच लिया कि आपके नाम पर ही जीत के आना है। आपके काम ने, आपने इतना अच्छा करके रखा है कि उनको कोई ज्यादा मेहनत करने की जरूरत है नहीं, तो उस हिसाब से कुछ आप देख रहे हैं कि कोई लैक ऑफ पार्टिसिपेशन या जरूरत से ज्यादा एक श्योरिटी कैंडिडेट्स में या कार्यकर्ताओं में?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः हम चुनाव जीतने वाले हैं और हमारी सरकार बनने वाली है, इस अनुमान पर पहुंचने में आप बहुत लेट हैं। मुझे राष्ट्रपति पुतिन का फोन आया था सितंबर की मीटिंग के लिए। मुझे जी-7 का फोन आया पार्टिसिपेशन के लिए. तो दुनिया को तो पूरा भरोसा है कि यह सरकार बनने वाली है। जहां तक चुनाव का सवाल है, एक साल पहले बड़ी मीटिंग करके पार्टी से कहा था कि कैंडिडेट का इंतजार मत करो, कमल ही आपका कैंडिडेट है और कोई कैंडिडेट है ही नहीं। एक साल से सिर्फ कमल के लिए ही काम करना तय कर चुका था। हम सब लोग कमल के लिए ही काम कर रहे हैं. मैं, मेरे साथी और हमारे विरोधी...सभी कमल के लिए ही काम कर रहे हैं।हमारे विरोधी जितना कीचड़ उछालते हैं, कमल उतना ही ज्यादा कमल खिलता है।

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सुधीर चौधरीः आपको ऐसा लगता है कि ये आपका सबसे कंफर्टेबल चुनाव है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः ऐसा है, हमें कभी कंफर्ट जोन बनाना नहीं चाहिए. अगर यह कंफर्टेबल है तो मैं खुद चुनौती खड़ी करूंगा। देखिए, स्ट्रेट हाइवे पर एक्सीडेंट ज्यादा होते हैं और जहां मोड़ हों, वहां कम होते हैं। मैं लोगों को जागृत रखना चाहता हूं, दौड़ाए रखना चाहता हूं। कंफर्ट जोन वाली दुनिया मुझे मंजूर नहीं।

सुधीर चौधरीः लोग भी कहते हैं कि अगर सब इतना आसान है तो आप इतनी मेहनत क्यों कर रहे हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः  मैं इसको अवसर मानता हूं। जनता जनार्दन के दर्शन करना, उनकी भावनाओं को समझना, यही तो मेरी प्राणशक्ति है, मेरी ऊर्जा है। लोकतंत्र में चुनाव को हमें जीत-हार के सीमित अर्थ में नहीं लेना चाहिए। यह बहुत बड़ी एक प्रकार से ओपन यूनिवर्सिटी होती है कि आपके पास अवसर होता है अपने विचारों को लोगों तक ले जाने का और आप जब डायरेक्ट विचार ले जाते हैं, तब न डायलूजन आता है और न डायवर्जन आता है। एक परफेक्टली मैसेजिंग आप कर सकते हैं। अब जैसे काशी गया तो मेरा मिजाज अलग था लेकिन जब कोडरमा गया तो वहां का दृश्य देख अपने भाषण का विषय बदल दिया। पहले जाता था रास्ते में कुछ अलग सोचता था मुझे लगा कि ये जो लोग हैं, मुझे इनके साथ यह बात करनी है और मानता हूं कि सभी राजनीतिक दलों का कर्तव्य है कि वे चुनाव का भरपूर उपयोग करें और लोगों को एजुकेट करें। अपनी वर्किंग स्टाइल से करें, अपने प्रोग्राम से, अपनी आइडियोलॉजी से करें। ये काम सबको करना चाहिए, मैं तो चाहूंगा कि अब भी 14 दिन बचे हैं वो करें लेकिन नहीं कर रहे हैं।

श्वेता सिंहः मोदी जी उसी सवाल से आगे बढ़ते हुए आपसे ये जानना चाहती हूं कि वो कौन सी बात है कि आप जिम्मेदारी उठा लेते हैं।गुजरात के दो विधानसभा चुनाव मैंने कवर किए। ये आपका तीसरा लोकसभा चुनाव है जो मैं कवर कर रही हूं। मैंने देखा कि हर जगह आप जिम्मेदारी लेकर खड़े हो जाते हैं कि मोदी के नाम पर वोट देना है क्योंकि इसमें एक डर फेलियर का भी रहता है जो शायद आप महसूस नहीं करते हैं। चार सौ पार के नारे के साथ आपने शुरू किया जो बहुत बड़ा है। उस समय सब लोग आप पर हावी हो गए थे कि चार सौ पार कैसे हो जाएगा और आज भी वही मुद्दा है, वही चर्चा है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः देखिए आप परिवार वाले लोग हैं। आपके बच्चे हैं. आपका बच्चा 90 मार्क लाता है तो आप उससे जरूर कहते होंगे कि अगली बार ज्यादा लाना है, ये जरूर कहते होंगे। 99 लाया तो आपने कहा कि 100 लाना तो मुश्किल है लेकिन आप जरूर कहते होंगे कि सौ लाना है। हमारे पास 2019 से 2024 तक एनडीए और एनडीए प्लस के रूप में पहले से 400 थे। तो यह मेरा कर्तव्य बनता है अभिभावक के रूप में भी कि 400 पार जाना है। यह मेरी जिम्मेवारी बनती है क्योंकि हमें निरंतर आगे बढ़ना है. ये तो नहीं कहूंगा कि 90 है तो तुम्हारे दोस्तों के इतने नहीं हैं तो 60 लाओगे तो चलेगा। जहां तक जिम्मेवारी की बात है, यह लीडरशिप का कर्तव्य है। आज देश का दुर्भाग्य है कि नेता एक-दूसरे के सिर पर ठीकरा फोड़ कर भाग जाते हैं, चमड़ी बचाते हैं. यह तो देश के लिए सबसे निराशा और दुख की बात है। कम से कम एक इंसान है जो जिम्मेवारी लेने को तैयार है जो भागता नहीं है। जो कहता है कि ये कह रहा हूं, ये मेरी जिम्मेदारी है और देश में हर दल में जिम्मेवारी लेने वाले लोग होने चाहिए। ऐसे लोग नहीं होने चाहिए जो अपने साथियों पर ठीकरा फोड़ करके भाग जाएं. यह शोभा नहीं देता है।

राहुल कंवलः प्रधानमंत्री जी, जब 2014 का चुनाव हुआ उस वक्त देश में मनमोहन सिंह के खिलाफ, कांग्रेस और यूपीए के खिलाफ बहुत गुस्सा था। लोग बदलाव चाहते थे, 2019 का चुनाव हुआ, उससे पहले पुलवामा, बालाकोट हुआ। राष्ट्रियता का भाव था देश भर में और लोग आपको एक और मौका देना चाहते थे। इस बार विश्लेषक ऐसा कह रहे हैं कि क्या वोटरों में वो जोश, वो जज्बा है जो 2019 में था? वोटिंग परसेंटेज कम हुई है, इसे आप कैसे देखते हैं? क्या आपको लगता है कि वोटर्स में एक तरीके से उस तरह का जोश नहीं है जो कि 2014 और 2019 में था. उसको आप कैसे स्टडी करते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः ऐसा है कि कुछ लोगों की रोजी रोटी इस पर डिपेंड है कि उनको खुद को रेलिवेंट रहने के लिए क्या करना होगा।कुछ तो शिगूफे छोड़ने पड़ते हैं वर्ना तो हवा बन जाएगी कि यार ये तो जीता हुआ है। चुनाव में क्या है यार, विज्ञापन भी नहीं मिलेगा। सब कुछ बेकार हो जाएगा तो एक यह कारण है। मुझे याद है मैं गुजरात में पार्टी का काम करता था तो 95 से पहले का कोई चुनाव होगा वो, उसके पहले नगरपालिका के चुनाव थे। नगरपालिका का चुनाव हमारे यहां सिंबल पर नहीं लड़ा जाता था। ज्यादातर स्वतंत्र उम्मीदवार बनकर लड़ते थे लोग लेकिन बीजेपी ने शुरू किया कि हम सिंबल पर लड़ेंगे। हम लड़े. चूंकि इंडिपेंडेंट ज्यादा जीते तो दिल्ली से जो पत्रकार आए वो सवाल करते थे कि अभी-अभी ये हारे हैं, चुनाव कैसे जीतेंगे? मैंने कहा यार तुम लोगों के पास कोई काम नहीं है क्या। ये नगर पालिका का चुनाव कैसे होता है, स्टडी तो करो. वैसा ही है यह मतदान का। मतदान को पॉलिटिकल पार्टी की परफॉर्मेंस से जोड़ने की बजाय यह देखना चाहिए कि लोकतंत्र में मतदान बड़ा महत्वपूर्ण है। उदासीनता लोकतंत्र के लिए अच्छी नहीं है। हमारा नैरेटिव वह होना चाहिए ताकि लोकतंत्र मजबूत हो. उसकी बजाय हम उसमें से रिजल्ट खोजने लगते हैं और वह भी तथ्य नहीं है, तर्क है सिर्फ। अब उन तर्कों के बीच समय बर्बाद करके क्या करेंगे। मैं जमीन पर जाता हूं और मैंने कभी पहले क्लेम नहीं किए. मेरे खिलाफ शिकायत यह है कि मैं हार-जीत के क्लेम नहीं करता। इस बार मैंने क्लेम नहीं किया था। लोग बोल रहे थे 400 पार। हां मैं तैयारी करता हूं सौ दिन में क्या करूंगा, पांच साल में क्या करूंगा। 2047 का क्या प्रोग्राम है। क्योंकि मुझे मालूम है कि ये जिम्मा मुझे निभाना है।

अंजना ओम कश्यपः आपके आत्मविश्वास को जोड़ दिया जाता है बहुत सारी और चीजों से भी... संस्थाओं पर सवाल उठाए जाते हैं और विपक्षी दल जो आपके ऊपर, सरकार पर एक बहुत संगीन आरोप लगाते हैं, वो ये कि संस्थाओं को प्रभावित किया जाता है और उसमें इलेक्शन कमीशन का नाम भी है। इस संस्था पर जनता का भरोसा है और इसलिए मैं इस आरोप पर आपका जवाब चाहती हूं। वो कहते हैं पहले चरण का जब चुनाव हुआ तो मतदान के आंकड़े आने में 11 दिन क्यों लग गए? क्यों उन आंकड़ों को छिपाया जा रहा है? इस आरोप पर क्या कहेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः बहुत अच्छा सवाल पूछा आपने. इलेक्शन कमीशन ने एक चिट्ठी लिखी है। मैं आजतक से अपेक्षा करता हूं और इंडिया टुडे दोनों से, चिट्ठी पर ही विद्वानों की डिबेट हो, नेताओं की नहीं. जो एक्सपर्ट हैं, जो इस विषय को जानते हैं, उनकी डिबेट हो और उन्होंने सही किया, गलत किया क्योंकि मैं चुनाव आयोग के लिए कोई कमेंट करूं, ये ठीक नहीं है और दूसरा चुनाव आयुक्त करीब-करीब 50-60 साल तक सिंगल मेंबर रहते थे और मजा यह है कि इलेक्शन कमीशन से जो लोग निकले, वो कभी गवर्नर बने तो कभी MP बने और कभी पार्लियामेंट का चुनाव लड़ने गए आडवाणी जी के सामने। मतलब उन्होंने कैसे लोगों को बैठाया था, इसका उदाहरण है। उस जमाने के जो इलेक्शन कमिशनर हैं, वो रिटायर होकर आज भी उसी फिलॉस्फी को प्रमोट करने वाले ट्वीट करते हैं, अपने ओपिनियन देते हैं, आर्टिकल लिखते हैं, इसका मतलब अब जाकर इलेक्शन कमीशन पूर्ण रूप से स्वतंत्र बना है। मैं चाहूंगा आज तक से, और मुझे पक्का विश्वास है कि आप करेंगे कि भारत की इलेक्शन कमीशन की जो यात्रा है, उस पर एनालिसिस हो। दूसरा, मेरा कहना ये है कि दुनिया में भारत की ब्रांडिंग के लिए हमारे पास जो चीजें हैं, जैसे मैं जब दुनिया को कहता हूं, कि हमारे यहां 900 टीवी चैनल हैं। वो टीवी चैनल मेरे साथ दिन-रात क्या करते हैं, ये मेरा मुद्दा नहीं है। मैं दुनिया को बताता हूं, ये मेरा देश है, 900 टीवी चैनल हैं तो सुन करके वो चौंक जाते हैं। भारत का इलेक्शन कमीशन, भारत की इलेक्शन प्रॉसेस विश्व के लिए बहुत बड़ा अजूबा है। हम सबका कर्तव्य है कि हमारे देश की ब्रांडिंग करें। मैं तो चाहता हूं कि आप लोगों ने विश्व भर से अलग-अलग मीडिया हाउसेस को यहां इनवाइट करना चाहिए चुनाव में दो हेलिकॉप्टर उनके लिए ले लेते। कुछ गलत नहीं है. इससे आपकी भी एक ग्लोबल इमेज बनेगी। जैसे इस बार हमारे यहां कई पॉलिटिकल पार्टी के लोग आए दुनिया भर से। कुछ ऑब्जर्वर के रूप में लोग आते हैं, देखने के लिए आते हैं। सच में भारत का लोकतंत्र का उत्सव और भारत के सामान्य मानविकी की लोकतंत्र को लेकर समझ और कितना बड़ा मैनेजमेंट है। लाखों लोग लगते हैं. यह अद्भुत काम है जी, यह बहुत महत्वपूर्ण विषय है दुनिया की यूनिवर्सिटी में स्टडी के लिए. आपके अरुण पुरी जी पढ़ने के लिए गए, उनको कहिए कि भारत की इलेक्शन पर वहां की यूनिवर्सिटी में स्टडी करें यह एक बहुत बड़ा एचीवमेंट है हिंदुस्तान का हमें गर्व करना चाहिए।

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अंजना ओम कश्यपः आपने आजतक हेलिकॉप्टर शॉट देखा कि नहीं देखा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः समय नहीं मिला मुझे, देखा नहीं लेकिन मुझे चिंता जरूर लगी रहती थी। क्योंकि इतनी आपाधापी में अच्छे हेलिकॉप्टर मिलेंगे, नहीं मिलेंगे। आपको लैंडिंग करने के लिए मिलेगा, नहीं मिलेगा और कोई वीआईपी मूवमेंट होगी तो आपको उड़ने की रुकावट हो जाएगी। वेदर प्रॉब्लम होगी यानी सरल नहीं है जी, बड़ा कठिन है।

सुधीर चौधरीः हम नैरेटिव की बात कर रहे थे. जैसे जब भी आप चुनाव लड़ते हैं चाहे गुजरात में या यहां, हर बार लोग यही कहते हैं अब आप हार रहे हैं और फिर आप जीत कर आते हैं। ज्यादा सीट-जीत कर आते हैं। जब आपने यूनिफॉर्म सिविल कोड के बारे में लोगों को बताया और इसका वादा किया तो अब उस पर भी एक दूसरा नैरेटिव है। अब लोग कहते हैं कि यह वन नेशन-वन ड्रेस हो जाएगी, वन नेशन-वन फूड हो जाएगा वन नेशन-वन लैंग्वेज हो जाएगा और उसका एक आगे यह है कि अब वन नेशन-वन लीडर हो जाएगा और हम उसी तरफ बढ़ रहे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः क्या कभी आपको अवसर मिला है कि ऐसा जो बोलते हैं, उनको जरा काउंटर सवाल कर दो। एक-आध बार तो पूछ लीजिए कि आप यह नैरेटिव लाए कहां से। गंभीर बात बता रहे हैं, उनको बताइए कि आपने यूसीसी पढ़ा है? यूसीसी होता क्या है? कुछ तो आपकी भी जिम्मेवारी बनती है ना कि मुझे ही जवाब देकर देश को बताना है। इस देश के पास उदाहरण है। गोवा में यूसीसी है।आप मुझे बताइए कि गोवा के लोग एक ही प्रकार के कपड़े पहनते हैं? क्या गोवा के लोग एक ही प्रकार का खाना खाते है? क्या मजाक बनाकर रखा है यूनिफॉर्म सिविल कोड का. इसका तो कोई लेना देना ही नहीं। भारत की सुप्रीम कोर्ट ने कम से कम दो दर्जन बार कहा है कि इस देश में यूसीसी लाओ। मुझे याद है कि मैं शायद एकता यात्रा में चला था कन्या कुमारी से कश्मीर जा रहा था और महाराष्ट्र में शायद औरंगाबाद में हमारा जो रथ का शाम का जो कार्यक्रम था उसपर चिली का कोई बाजार है, वहां से गुजरा। डॉक्टर जोशी को उसकी अलर्जी है तो वह बीमार हो गए. हालत बड़ी खराब हो गई. मोर्चा मुझे संभालना पड़ा. मैं तो बहुत जूनियर सा था तो फिर वहां मैं जा रहा था. हमारा रथ एक स्कूल के सामने से गुजर रहा था जहां बच्चे पढ़ते हैं. मैंने रथ रोकने को कहा और बच्चों से बात करने नीचे गया. उसका वीडियो कहीं उपलब्ध होगा. उस जमाने में बच्चों से उस समय मैंने पूछा कि बताओ भाई आपके परिवार में पांच लोग हैं. बड़े भाई के लिए आपके माता-पिता एक नियम कानून रखते हैं, दूसरे भाई के लिए दूसरा नियम कानून रखते हैं, तीसरे के लिए अलग तो आपका परिवार चलेगा क्या. सब बच्चे बोले- नहीं-नहीं, ऐसा कैसे चल सकता है. मैंने करीब दस सवाल पूछे और जो उन बच्चों ने कहा वो यही कि सबके लिए समान कानून होने चाहिए और ये आठवीं नवमी के बच्चे थे. जो बात मेरे देश के महाराष्ट्र के टीयर टू टीयर थ्री के बच्चे समझते हैं, वह देश के नेता नहीं समझते हैं. तब मेरे मन में सवाल उठता है कि ये झूठे नैरेटिव हैं. मीडिया का गैर जिम्मेवार व्यवहार है जो ऐसे गलत नैरेटिव को बल देता है. एक आदमी की क्या ताकत है जी, बोलता रहेगा. कौन-कौन पूछेगा. यह देश के लिए है, यह किसी पॉलिटिकल पार्टी का विषय नहीं है. ये देश के संविधान में लिखा है कि भारत को उस दिशा में जाना चाहिए.

सुधीर चौधरीः नैरेटिव में अब देखिए जैसे यह नया चल पड़ा कि संविधान बदलने वाले हैं और यह अचानक से उन्होंने कहा और पिक कर गया.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः पिक कर गया तो मैं नहीं मानता हूं, लेकिन इस देश में ऐसा भी झूठ चल सकता है जिसका सिर-पैर नहीं है. इस देश में सबसे पहले संविधान के साथ खिलवाड़ किसने किया. पंडित नेहरू ने किया. पहला संविधान संशोधन उन्होंने किया. वो जो अमेंडमेंट लाए वह फ्रीडम ऑफ स्पीच को रेस्ट्रिक्ट करने वाला लाए. यह लोकतंत्र के भी खिलाफ था, संविधान के भी खिलाफ था. दूसरा उनकी बेटी लाई. प्रधानमंत्री थी वह. बेटी ने क्या किया. कोर्ट ने जजमेंट दिया कि आप पार्लियामेंट में नहीं रह सकतीं तो कोर्ट के जजमेंट को बदल दिया. देश में आंदोलन चला तो उन्होंने इमरजेंसी लगा कर सारे अखबारों को बंद कर दिया. इमरजेंसी का एक फायदा हुआ अरुण पुरी को.  इंडिया टुडे का जन्म हुआ. उसके बाद उनके बेटे आए. शाहबानो के जजमेंट को उलट दिया. फिर वो एक कानून लाए जो कानून था मीडिया पर अंकुश का. देश भर में विपक्ष थोड़ा मजबूत हुआ था, मीडिया भी वाइब्रेंट होने लगा था. सब टूट पड़े कि हम फिर से इमरजेंसी नहीं आने देंगे. उनको कानून वापस लेना पड़ा. फिर उनके बेटे आए तो रिमोट कंट्रोल से सरकार चल रही थी. संविधान की शपथ से सरकार बनी थी. संविधान की शपथ से कैबिनेट बनी. उस कैबिनेट ने एक बिल पास किया और एक शाहजादा प्रेसवार्ता बुला कर कैबिनेट के निर्णय की धज्जियां उड़ा देता है. उतना ही नहीं कैबिनेट फिर अपने मुद्दे को रिवर्स कर देती है. इसका मतलब यह हुआ कि एक ही परिवार के चार लोगों ने अलग-अलग समय पर संविधान की धज्जियां उड़ा दीं. उन लोगों के लिए संविधान को लेकर के इस प्रकार की गंदी हरकतें करने का जमाना चला गया और इसलिए मैं आज डंके की चोट पर कहता हूं कि मोदी जिंदा है तब तक जो संविधान सभा की मूल भावना है कि धर्म के आधार पर आरक्षण नहीं होगा. मैं इसके लिए लड़ाई लड़ूंगा, जान खपा दूंगा. धर्म के आधार पर देश को बांट दिया आपने, अब धर्म के आधार पर आप यह करोगे? क्या सिर्फ अपना पद बना रहे चेयर मिलती रहे, इसलिए यह खेल खेलते रहेंगे? देश इसे स्वीकार नहीं करेगा और मैं देश को एजुकेट करूंगा. उसके लिए मैं अपना जीवन खपाऊंगा.

राहुल कंवलः मोदी जी इस चुनाव के दौरान और उससे पहले भी विपक्षी पार्टियां यह आरोप लगाती हैं कि लोकतंत्र हिंदुस्तान में खतरे में है. वो कहते हैं कि जो डेमोक्रेटिक इंस्टीट्यूशंस हैं, वो पहले से कमजोर हो गए हैं. यहां तक कि आप पर तानाशाह होने का आरोप लगाते हैं. इसको आप कैसे देखते हैं? कहा जाता है कि लोग आपसे बहुत डरते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः जरा उन इंस्टीट्यूशंस का नाम बताइए?

राहुल कंवलः जैसे सुप्रीम कोर्ट से हो रहा है या फिर संसद में भी बहस होनी चाहिए पहले होती भी थी लेकिन अब फटा-फट बिल पास हो जाते हैं इतने. कमेटीज में नहीं जाते. इस तरह उनको लग रहा है कि डेमोक्रेटिक बैक स्लाइडिंग हो रही है. इसको आप कैसे देखते हैं? 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः पार्लियामेंट के अंदर डिबेट करने के लिए बार-बार हम कह रहे हैं कि आइए. इनको लगता है कि हमारे पास कहने को कुछ नहीं और कहने वाले भी नहीं हैं. इनके जितने नए MP आए हैं ना, मुझे आकर कहते हैं कि साहब हमारे तो पांच साल बर्बाद हो गए. हम एक शब्द बोल नहीं पाए हाउस में. मैं अपोजिशन की बात कर रहा हूं. मैंने उनके नेताओं को भी कहा कि आपको डिस्टर्ब करना है. ऐसा करो एक घंटा आपके यंग जो फर्स्ट टाइम MP हैं, उनको मौका दो, फिर डिस्टर्ब करो. बाद में करो डिस्टर्ब. यह सब मैं कह चुका हूं. मेरी कोशिश रही है कि लोग कुछ करें लेकिन दुर्भाग्य है कांग्रेस का, इस परिवार के लिए लोकतंत्र मतलब उनका सत्ता में होना है. आज भी यह स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं कि दस साल पहले 2014 में देश ने कोई दूसरी सरकार चुनी है कि कोई दूसरा प्रधानमंत्री है जो देश ने बनाया है. मन से स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं और इसलिए वह हर जगह पर, अगर आप उनके मेनिफेस्टो के मुद्दे इंप्लीमेंट कर रहे हैं तो भी उनको बुरा लग रहा है. उनको तो खुश होना चाहिए भाई कि हम कहते थे और आप कर रहे हैं, अच्छी बात है. हमें मौका नहीं मिला. प्रणब मुखर्जी कहते थे. आपने उनकी किताब में देखा होगा कि मेरे साथ जो उन्होंने काम किया, कितना डेमोक्रेटिक वे में काम किया. राष्ट्रपति की इंस्टीट्यूशन की कितनी प्रतिष्ठा उन्होंने बढ़ाई. सुप्रीम कोर्ट की बात करें तो ऊपर से लोग कहते हैं कि सरकार की तो सुप्रीम कोर्ट में कुछ चलती ही नहीं है. हम पर तो आरोप यह है. हमारी क्षमताओं पर सवाल उठाए जा रहे हैं. इसका मतलब ये है कि पहले कुछ क्षमता वाले लोग थे जो ज्यूडिशियरी को मैनेज करते थे और वह इंस्टीट्यूशन ठीक थी. मैं मानता हूं मुझे क्यों मैनेज करना चाहिए? कानून, कानून का काम करेगा.

अंजना ओम कश्यपः प्रधानमंत्री जी, एक आरोप जांच एजेंसियों को लेकर आपकी सरकार पर लगता है. विपक्ष चिल्लाता है कि ईडी, सीबीआई इनकम टैक्स यह सारे विभाग विपक्षी नेता उन पर तो बहुत अग्रेसिव होकर आक्रामक तरीके से कार्रवाई करते हैं. जेल भी भेजते हैं लेकिन जो विपक्षी नेता एनडीए में शामिल हो जाते हैं, उन पर सॉफ्ट हो जाते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः ऐसा कर-करके मुद्दे को टालिए मत. यह तरीका है. जैसे मैं कहता हूं कि परिवारवादी पार्टी तो हमारे मीडिया के लोग मुझे सवाल क्या पूछते हैं कि राजनाथ जी का बेटा भी है. दोनों में फर्क है. मुद्दों को इस प्रकार से डायवर्ट करने की मदद मीडिया कम से कम इन लोगों की ना करे. मेरा आग्रह रहेगा. मैं जो परिवारवादी पार्टी कहता हूं इसका मतलब है कि पार्टी ऑफ द फैमिली, बाइ द फैमिली, फॉर दी फैमिली. किसी परिवार के दस लोग अगर पब्लिक लाइफ में आते हैं तो बुरा है, ऐसा मैं नहीं मानता. चार लोग अगर बढ़-चढ़ करके आगे जाते हैं तो बुरा नहीं मानता. लेकिन वो पार्टी नहीं चलाते. पार्टी उनका निर्णय करती है. वैसे ही ईड़ी जो कदम उठाती है वो कदम... आप मुझे बताएं कि आज से 20 साल पहले खबरें क्या रहती थीं ब्लैक मार्केट पर सर्च हुई, रेड हुई इतनी चीज पकड़ी गई, इतनी चीनी पकड़ी गई. अब वो खबरें आती हैं क्या? नहीं आती हैं. क्यों, क्योंकि उस समय उस इंस्टीट्यूशन ने जो भी काम किया, जो कानूनों में बदलाव आया, टैक्सेशन परिवर्तन आया तो ब्लैक मार्केट की दुनिया हिंदुस्तान की पब्लिक लाइफ में नहीं रही. थिएटर में भी ब्लैक मार्केट वाला सुनने को मिलता नहीं है. वैसे ही भ्रष्टाचार भी जा सकता है अगर जिसकी जिम्मेदारी है, वो काम करें तो. पूछना चाहिए कि दस साल तक ईडी को इतना पगार दिया, उतना काम किया या नहीं. 2004 से 2014 तक काम क्यों नहीं किया. उनकी ड्यूटी है, मुझे बताइए, रेलवे का टिकट चेकर है तो टिकट चेक नहीं करेगा तो रखने की क्या जरूरत है भाई. आप अगर मीडिया में है आप अगर मोदी का झंडा लेकर भक्ति पूर्वक घूमते रहेंगे तो आपको कौन आजतक में रखेगा, कल निकाल देगा. वह आपका काम है, दस चीजें खोजकर लाइए. जो ठीक लगे उसको दुनिया के सामने ले जाइए. आपका काम है और करते हैं आप लोग. वैसे ही ईडी का जो काम है, वह करे. आंकड़े क्या कह रहे हैं कि 2004 से 14 तक, व्यवस्था तो यही थी. कानून वही था मैंने कानून नहीं बदला है. मैंने ईडी बनाई भी नहीं है. उन्होंने बिलकुल निकम्मापन किया. कोई काम किया नहीं. सिर्फ 34-35 लाख रुपये जब्त किए. 10 साल में हम तो विपक्ष में थे. किसने रोका था. मेरी सरकार ने 2200 करोड़ रुपया पकड़ा है. नोटों के ढेर आपके टीवी वालों ने दिखाए हैं. उस ईडी को आप कैसे बदनाम कर सकते हैं? एमपी के घर से मिले हैं पैसे, आप कैसे इनकार कर सकते हो? मुझे बताइए, कहीं ड्रग्स है अगर. ड्रग्स की बहुत बड़ी खेप मैं पकड़ लेता हूं तो आप तारीफ करेंगे कि नहीं करेंगे? ईडी अगर पकड़ लेती है तो उसकी तारीफ भी नहीं और उसको गुनहगार भी बना दो, यह क्या तरीका है? क्यों, क्योंकि वह राजनेता के यहां से पकड़ा गया है?

अंजना ओम कश्यपः पर आप चाहते हैं कि सब पर बराबरी से हो?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः कोई भी हो. इरिस्पेक्टिव ऑफ एनी बैकग्राउंड. यही होना चाहिए. मेरी लड़ाई भ्रष्टाचार के खिलाफ है. देश में भ्रष्टाचार खत्म होना चाहिए. यह देश का बहुत विनाश कर रहा है.

श्वेता सिंहः मोदी जी, कुछ ऐसी पार्टियां भी आजकल दिखती हैं जैसे ओडिशा, आंध्र प्रदेश में. हम देखें तो बहुत शिद्दत से चुनाव लड़ते हैं आप लोग, विधानसभा चुनाव हो, लोकसभा चुनाव हो. बीजेडी, वाईएसआर कांग्रेस, सब भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ लड़ेंगे लेकिन जब संसद में कोई ऐसा काम होता है जहां पर आप लोगों को जरूरत होती है, कोई ऐसा विधेयक रहता है तो आप लोगों के साथ खड़े रहते हैं वो. यह मित्र और दुश्मन वाला कैसा रिश्ता है? क्या वोटर कन्फ्यूज नहीं होगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः मैं हमेशा कहता हूं कि चुनाव तीन या चार महीने के लिए होना चाहिए. पांच साल राजनीति नहीं होनी चाहिए. हमें चार-साढ़े चार साल मिल-बैठ करके देश चलाना चाहिए. छह महीने चुनाव हैं, लड़ लो, पूरी ताकत से लड़ लो. आपने देखा होगा फ्रेंडली मैच होते हैं खेलकूद में. लेकिन जब असली मैच होता है तब आमने-सामने हार-जीत की लड़ाई होती है. पहले टेस्ट मैच होता था. उसके पहले तीन दिन का एक फ्रेंडली मैच होता था. तब खिलाड़ी एक-दूसरे को जानते-पहचानते हैं. राजनीति में भी मेरा मत है, चार-साढ़े चार साल मुद्दों के आधार पर देश हित में हम लोगों को चलना चाहिए.

अंजना ओम कश्यपः तो आप थर्ड टर्म में कमिट कर रहे हैं वन नेशन-वन इलेक्शन?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः वन नेशन-वन इलेक्शन पहले से मेरी पार्टी का मत रहा है. यह कोई नया नहीं है. मैं हैरान हूं, इस समय बोलूं या ना बोलूं टीवी के सामने. लेकिन मुझे बड़ा दर्द होता है जब एक राज्य का चुनाव हो रहा है और देश का प्रधानमंत्री उस राज्य में जाकर किसी भी दल का उस राज्य के मुख्यमंत्री के खिलाफ भाषण कर रहा है. देश कैसे चलेगा. अब मेरी मजबूरी है कि मुझे उस राज्य में जाकर बोलना पड़ रहा है. पॉलिटिकल मजबूरी है. अच्छा होगा एक साथ चुनाव हों तो जो भी बोलना है, सब लोग बोल लेंगे. उसमें से भी जो अमृत निकलेगा, निकाल करके आगे बढ़ेंगे. फिर लॉजिस्टिक खर्चा कितना होता है. मैं जब गुजरात में था तो मनमोहन सिंह जी की सरकार के समय इलेक्शन कमीशन सबसे ज्यादा अफसर मेरे यहां से उठाकर ले जाता था ऑब्जर्वर के रूप में. 70-80 मेरे अफसर चले जाते थे और साल में करीब-करीब 100 दिन किसी न किसी चुनाव में लगे रहते थे. मैं कहता हूं मेरा राज्य इतना एक्टिव राज्य है, 80 लोग चले जाएंगे, मैं काम करूंगा कैसे. यह बंद करो आप. मैं ऑब्जर्वर नहीं दूंगा तो उनके कानून ऐसे हैं कि मुझे देना पड़ता था. ये हर राज्य की मुसीबत होती थी. इतने ऑब्जर्वर जाते हैं. अच्छा फिर आचार संहिता. 45 दिन तक सबको वेकेशन मिल जाता है, सब मौज करते हैं. इतना बड़ा देश रुक जाए, इतने बड़े देश में बहुत बड़ा संकट है ये. पहले यह एक इलेक्शन ही था, यह बाद में आया तो अभी कमीशन बैठाया है, उसकी रिपोर्ट आई है. रिपोर्ट की स्टडी कर रहे हैं. हमारा ये कमिटमेंट पॉलिटिकल कमिटमेंट नहीं है, यह देश के लिए बहुत जरूरी है.

अंजना ओम कश्यपः रोजगार बनाम लाभार्थी एक बहस यह भी देश में छिड़ी हुई है. विपक्ष का यह कहना है कांग्रेस पार्टी जो अपना न्याय पत्र लेकर आई है, 30 लाख नौकरियां देने का वादा है. आपका फोकस लाभार्थियों पर रहता है. अब वह कह रहे हैं कि हम ज्यादा अग्रेसिव तरीके से बेरोजगारी के मुद्दे को डील कर रहे हैं. इस पर आपका क्या कहना है?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः अगर वह इतने ईमानदार हैं जहां उनकी सरकार है. वहां उनके मुंह पर ताला क्यों लग जाता है. वहां क्यों नहीं बोलते हैं. दूसरा अगर सरकार का रोजगार का जिम्मा है तो जैसे भारत सरकार का है वैसे राज्य सरकार का है. वैसा स्थानीय स्वराज का हो सकता है, सबका जिम्मा है तो मेरे हिस्से में तो बहुत कम जिम्मेदारी आएगी और फिर भी अगर वादा पूरे करने की बात आएगी,  अभी-अभी मेरे हिसाब से रोजगार के जो रिकॉर्ड अब आए हैं कल ही शायद. दस साल में जो माइक्रो फाइनेंस हुआ है, इस माइक्रो फाइनेंस के कारण जो रोजगार उपलब्ध हुआ है तो उसको आप रोजगार नहीं मानेंगे? केंद्र की 10-12 योजनाएं ऐसी हैं जिनके आधार पर उन्होंने एनालिसिस किया कि एक घर बनता है तो कितने पर्सन ऑवर्स रोजगार मिलता होगा. पहले मैन ऑवर्स कहते थे अब जेंडर न्यूट्रल दुनिया हो गई तो पर्सन ऑवर्स बोलते हैं. पांच करोड़ पर्सन ऑवर्स वार्षिक नौकरी जेनरेट हुई हैं. अब ये आंकड़ा बहुत बड़ा है. इसके हिसाब से देखें तो पहले अगर सौ किलोमीटर रोड बनता था, आज अगर 200 किलोमीटर बनता है तो मैनपावर लगा होगा या नहीं लगा होगा. पहले इतना इलेक्ट्रिफिकेशन था, आज इतना होता है. पहले इतने एयरपोर्ट थे आज इतने हैं. चार करोड़ गरीबों के घर बने, 11 करोड़ टॉयलेट बने. 5G दुनिया में सबसे तेज गति से रोलआउट हुआ, इसके लिए इन्फास्ट्रक्चर लगता है. ऐसे ही नहीं बन जाता है. टावर लगते हैं उसके लिए. छोटी-छोटी चीजें बनाने वाले लगते हैं. इसका मतलब कि इन सारी चीजों को जोड़ा गया. पीएलएफएस की रिपोर्ट के मुताबिक 6-7 साल में 6 करोड़ नए जॉब तो आपको ऑन रिकॉर्ड मिल रहे हैं. 10 साल में ईपीएफओ से कवर होने वाले लोगों में 167 परसेंट बढ़ोतरी हुई है. इसको मानेंगे या नहीं मानेंगे? मुद्रा लोन, करीब 43 करोड़ लोन्स अलग-अलग, कुछ लोग रिपीट भी हो गए लेकिन उसमें से 70 परसेंट पहली बार रोजगार कर रहे हैं. अब एक आदमी किसी एक को तो रोजगार देता होगा. कुछ कारोबार चला तो एक को तो देता ही होगा. यह सब ऐसे ही हवाबाजी थोड़ी होती है. हमारे देश में तो मुसीबत यह है कि रिक्रूटमेंट की प्रॉसेस इतनी कठिन है कि विज्ञापन निकलेगा, डिपार्टमेंट मांगेगा, फाइनेंस वगैरह...किसी व्यक्ति को पता चले कि नौकरी आने वाली है, उसके पहले एक साल लग जाता था. मैंने इसको इतना छोटा कर दिया है कि आज ढाई-तीन महीने में फाइनल हो जाता है कि भर्ती करनी है तो ढाई-तीन महीने में पूरा करो प्रक्रिया. इतना सारा रिफॉर्म किया है. रोजगार एक ऐसा विषय है जिसमें हाथ-पैर हैं ही नहीं, लोग कुछ भी बोल सकते हैं. अब जैसे आप हैं, आपके पास यहां काम है लेकिन मन में रखा है कि नहीं मुझे तो चीफ एडिटर होना चाहिए तो उसके हिसाब से बेरोजगार हैं क्योंकि चीफ एडिटर नहीं हैं.

राहुल कंवलः प्रधानमंत्री जी, हाल ही में अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट आई जिसमें उन्होंने कहा कि भारत में इनकम इनइक्वालिटी बढ़ रही है यानि कि जो लोग अमीर हैं वह और अमीर होते जा रहे हैं, जो गरीब हैं वह और गरीब होते जा रहे हैं. आप इसको कैसे देखते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः तो क्या सबके सब गरीब होने चाहिए. एक उपाय तो ये है कि कोई अंतर ही नहीं रहेगा, सबके सब गरीब हों. इस देश में पहले ऐसा ही था. अब आप कहते हैं कि सब अमीर होने चाहिए तो धीरे-धीरे ही होगा ये. रातोरात तो नहीं होगा. थोड़े लोग ऊपर आएंगे वो नीचे वालों को ऊपर लाएंगे. वो और ऊपर जाएंगे तो नीचे के लोग और ऊपर जाएंगे. एक प्रॉसेस होती है. या तो हम तय करें कि हम सब गरीब रहना चाहते हैं. हमें कोई जरूरत नहीं है. गुजारा करना है. एक तो ये रास्ता है. दूसरा रास्ता है हम कोशिश करें, आगे बढ़ें. आज 10 आगे बढ़ेंगे कल सौ बढ़ेंगे और फिर 500 बढ़ेंगे. आज ये हो रहा है. पहले स्टार्ट अप हमारे देश में कुछ सौ थे और अब सवा लाख हैं. तो प्रगति हो रही है. पहले हवाई जहाज में बैठने वाले लोगों की संख्या कम थी. आज एक हजार नए हवाई जहाज का ऑर्डर बुक करना पड़ा है. आज बद्रीनाथ, केदारनाथ वगैराह की यात्रा पर जो लोग जा रहे हैं, वह पैसे कहां से लाते हैं? वो संख्या करोड़ों में पहुंच गई है. लोग शादी के लिए विदेश में जा रहे हैं. अगर पांच ही अमीर लोग होते तो इतनी शादी विदेश में कैसे करवाते भारत के लोग? और मैंने तो कहा भी कि वेड इन इंडिया. प्रॉस्पेरिटी आ रही है तो लोगों को लगता है यहां जाएंगे, वहां जाएंगे. उसने चेन्नई देखा नहीं और कहता है कि मुझे सिंगापुर देखना है तो हमें स्थितियां सही तरीके से देखनी चाहिए.

राहुल कंवलः डर के बहुत लोग इंडिया में शादी कर रहे हैं कि मोदी जी को रिपोर्ट चली गई कि शादी विदेश में हुई तो...

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः डर के कारण कर रहे हैं, यह मीडिया का वर्जन स्वाभाविक है लेकिन रियलिटी है कि मुझे कई लोग चिट्ठी लिखकर कह रहे हैं कि मैंने बुक किया था, मेरा खर्चा हुआ है लेकिन कभी यह सोचा नहीं था कि इसका यह भी मीनिंग होता है. आज डेस्टिनेशन वेडिंग कश्मीर में हो रही है. बद्रीनाथ, केदारनाथ में उनकी बड़ी इनकम हो गई. पहले रिलीजियस टूरिज्म था, इंफास्ट्रक्चर हुआ और अब उन्होंने वेडिंग के लिए थोड़ी फैसिलिटी बढ़ा दी तो ऑफ सीजन में उनको फायदा हुआ.

सुधीर चौधरीः सर आपकी जो छवि है वह गरीबों के मसीहा की छवि है. हमने देखा महिलाएं कैसे रोने लगती हैं जब आप जाते हैं. 25 करोड़ लोगों को आपने गरीबी रेखा से बाहर निकाला है लेकिन जो आरोप राहुल गांधी लगा रहे हैं आपके ऊपर, वो ये है कि आपकी बड़े-बड़े उद्योगपतियों से दोस्ती है. पांच साल से यह स्टिकर आपकी छवि के ऊपर चिपकाने की कोशिश हो रही है कि आपकी अडानी और अंबानी से दोस्ती है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः इस परिवार की समस्या ये है कि ये बोझ में दबा हुआ परिवार है. नेहरू जी को गालियां पड़ती थीं, टाटा-बिड़ला की सरकार, टाटा-बिड़ला की सरकार. नेहरू जी लगातार संसद में सुनते आए थे. अब इस परिवार की प्रॉब्लम ये है कि जो गाली मेरे नाना को पड़ी वो मोदी को पड़नी चाहिए. प्रॉब्लम राफेल नहीं था. उनको लगता था राफेल करूंगा तो बोफोर्स का पाप धुल जाएगा तो इसलिए वो लाए. साइकोलॉजिकल प्रॉब्लम है. इस चुनाव में इतना जोर, इतनी मेहनत पहले कभी नहीं की. क्यों कर रहे हैं वो, क्योंकि उनको लगता है कि मोदी तीसरी बार आ गया तो मेरे पिताजी की कोई इज्जत नहीं रहेगी. मेरी दादी की इज्जत नहीं रहेगी. ये तो नेहरू के बराबर हो जाएगा. इसलिए ये सब कहीं से उधार ली हुई गालियां हैं. मैं लाल किले पर से बोलता हूं जी. मैं शर्माता नहीं हूं. मैं लाल किले से बोलता हूं कि इस देश में वेल्थ क्रिएटर्स की इज्जत होनी चाहिए. मेरे देश में जो सक्षम लोग हैं, जो सामर्थ्यवान लोग हैं, इनकी प्रतिष्ठा बढ़नी चाहिए. 15 आगस्त का जो गेस्ट लिस्ट होता है, उसमें मैं खिलाड़ी, जो अचीवर्स हैं उनको बिठाता हूं. अगर देश अचीवर्स की पूजा नहीं करेगा, देश उनके महात्म्य को स्वीकार ही नहीं करेगा तो मेरे देश में पीएचडी करने वाले लोग कहां से निकलेंगे? साइंटिस्ट कहां से निकलेंगे? जीवन के हर क्षेत्र में अचीवर्स की इज्जत होनी चाहिए. अगर कल आजतक ग्लोबल चैनल बनता है, मैं सबसे पहले ताली बजाऊंगा. मुझे मालूम है कि आज तक मेरे साथ क्या जुल्म करता है, लेकिन मैं उसके लिए ताली बजाऊंगा. क्योंकि मेरे देश का आज तक ग्लोबल हुआ. मुझे तो दुख है जी कि CNN, BBC, आजादी के 75 वर्ष हो गए कोई ग्लोबल चैनल नहीं बना यहां. अल जजीरा रातोरात आया और ग्लोबल चैनल बन गया. अब कोई कहेगा कि तुम तो धनपति की मदद कर रहे हो, मैं नहीं कर रहा हूं. मेरे देश का गर्व है, मेरे देश की मल्टी नेशनल कंपनियां क्यों नहीं होनी चाहिए?  दुनिया में मेरे देश की कंपनियों की दुकानें क्यों नहीं होनी चाहिए? दुनिया के लोग नौकरी-रोजगार के लिए मेरे देश की तरफ देखें... शर्माते क्यों हो. हां बेईमानी की हो तो फांसी पर लटका दो. गलत तरीके से हो तो फांसी पर लटका दो लेकिन मैं मेरे देश में वेल्थ क्रिएटर्स की इज्जत करूंगा. मेरे देश के उज्जवल भविष्य के लिए मैं जितने पूज्य भाव से श्रमिक के पसीने की चिंता करता हूं, उतने ही भाव से पूंजीपति के पैसों का भी महत्व समझता हूं. पूंजीपति का पैसा हो, मैनेजमेंट करने वालों का दिमाग हो, परिश्रम करने वालों का पसीना हो, तीनों को एक परिवार के रूप में देखता हूं.

श्वेता सिंहः ये पैसों की बात आपने की है तो मुझे आपकी रैली की एक बात याद आती है...क्योंकि जब ईडी इस तरह नोटों का अंबार बरामद करती जाती है तो मैंने श्वेतपत्र किया है इस मुद्दे पर, ये ईडी जो जब्त करता है पैसा, वो पैसे जाते कहां हैं? बड़ा दुख हुआ ये जानकर कि जब तक यह मामला चलेगा, वो जब्त रहेगा. आपने कहा कि ये जो पैसे भ्रष्टाचारियों से लिए जाएंगे, वो आम लोगों तक पहुंचाए जाएंगे. वापस लौटाए जाएंगे. ये कैसे संभव होगा?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः आपने बहुत मार्मिक चीज पूछी है और मैं मानता हूं कि अच्छा होगा कि आजतक के लोगों के बहाने, दर्शकों को बेहद मदद मिलेगी. मैं मानता हूं कि दो प्रकार के भ्रष्टाचार हैं. एक जो बड़े बड़े कारोबार में करते हैं जिनमें लेने वाला भी कुछ बताता नहीं, देने वाला भी नहीं बताता, ये मुसीबत है. लेकिन ज्यादातर निर्दोष लोग हैं. जैसे बंगाल में, शिक्षकों की भर्ती में पैसे गए. तो पता है भाई कि इस आदमी को नौकरी मिली, उसके पास सर्टिफिकेट वगैरह कुछ नहीं हैं. और उस बेचारे ने यहां से कर्ज लिया, उसने जमीन गिरवी रखी, घर गिरवी रखा यानी ट्रेल है। अभी हमने काफी पैसे जब्त किए हैं. हमने सवा लाख करोड़ की संपत्ति जब्त की है. अब जैसे केरल में था कम्युनिस्ट पार्टी एक ऐसा रैकेट चलाती है, ये बड़े ईमानदारी का ठेका लेकर घूम रहे हैं. कोऑपरेटिव में गरीबों के पैसे हैं, ज्यादातर नौकरी पेशा वालों के पैसे और आदमी फिक्स डिपॉजिट में पैसे रखता है कि बेटी बड़ी होगी तो शादी के लिए काम आएंगे. बेटा बड़ा होगा तो एक कमरा बड़ा होगा. इन लोगों ने पैसों को अपने निजी बिजनेस पार्टनरशिप के लिए बांट दिए. हजारों करोड़ का घपला उन्होंने किया है. केरल फाइल को लेकर तो आप डरते हैं लेकिन इसमें काम कर सकते हैं. अब उसमें ट्रेल है कि पैसा इसने रखा और इसका डूबा. अब हमने प्रॉपर्टी जब्त की है. मैं चाहता हूं उस प्रॉपर्टी को ऑक्शन करके वो पैसे मैं कैसे लौटा दूं. अब तक 17 हजार करोड़ रुपये लौटा चुका हूं, जिसका ट्रेल मिला है. अब लालू जी जब रेल मिनिस्टर थे, साहब ने गरीब लोगों को जॉब देने के बहाने जमीन लिखवा ली है और इसका ट्रेल मिला है. अब वह बेचारा डर के मारे एफिडेविट देने को तैयार नहीं है लेकिन देखिए ट्रेल मिल रहा है कि इसकी जमीन गई, इस तारीख को गई और इस तारीख को नौकरी मिली. अब हमने जब्त किया है तो हम उसका ऑक्शन करके उस गरीब को जमीन वापस करने के लिए सोच रहे हैं. मैं दिमाग काफी लगा रहा हूं इसमें क्योंकि ये मेरे मन से हो रहा है कि यह गरीबों का पैसा है. लोगों ने इसे अपने पद का दुरुपयोग करके लूटा है, इनको वापस मिलना चाहिए. अभी मैं लीगल टीम की मदद ले रहा हूं. मैंने लोगों से कहा है कि कुछ रास्ता बताओ. मुझे रुपये पड़े रहने से क्या मतलब है। वैसे हमने जो न्याय संहिता नई लाई है, उसमें कुछ सुविधाएं हम लाए हैं और वो कानून ऐसा बना… मेरे यहां भावनगर में, जब मैं मुख्यमंत्री था तो वो जो काला गुड़ होता है न, वो पकड़ा गया बहुत बड़ी मात्रा में. मतलब काला गुड़ गैरकानूनी शराब बनाने में उपयोग होता है. अब पुलिस थाने में रखा है, बारिश आई तो भीग गया तो मच्छर-मक्खी, इतना ढेर हो गया कि उस रास्ते से गुजरना मुश्किल हो गया. अब कानून यह कहता है इसको आप डिस्पोज़ नहीं कर सकते. तब से मेरे मन में था कि कानून बदलना चाहिए. यह जो नई न्याय संहिता आई है, उसमें सारे सॉल्यूशन लाए हैं.

अंजना ओम कश्यपः सर आपके दस साल का ट्रैक रिकॉर्ड यह कहता है कि लाभार्थियों के लिए आपकी एक बहुत लंबी चौड़ी स्कीम चल रही है. लाभार्थियों को जब मिलता है तो फायदा हिंदू का है, मुस्लिम समुदाय का है, कोई नहीं देखता है. यानी एक सेक्यूलर एडमिनिस्ट्रेशन, धर्मनिरपेक्ष शासन देश में है. लेकिन अगर ऐसा है तो फिर चुनावी रैलियों में मंगलसूत्र, घुसपैठिया, ज्यादा बच्चे, इन शब्दों को लाने की क्या जरूरत है? यह विपक्ष बार-बार आपको इसी मुद्दे पर घेरता है. विपक्ष का कहना है कि आप जो चुनावी कैंपेन करते हैं, उसमें आप हिंदू-मुस्लिम करते हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः यह बहुत ही अच्छा सवाल पूछा आपने. मैं ठीक से बताना चाहता हूं दर्शकों को. होता क्या है कि आप पूरी तरह सांप्रदायिक एजेंडा पर चले और मैंने उसको एक्सपोज किया. मैंने उसकी धज्जियां उड़ाईं तो जो मूल बात थी, उसको उनका इकोसिस्टम हटा देता है और आप लोग भी उस इकोसिस्टम के इतने प्रेशर में जीते हैं कि आप भी उसको हाथ नहीं लगाते. फिर आप मेरी बात को ही लेकर चलाते हैं तो आपको लगता है कि मैं मुसलमान-मुसलमान कर रहा हूं. मुद्दा यह नहीं है. मुद्दा यह है कि उन्होंने अपने मेनिफेस्टो में लिखा है कि अब वह कांट्रैक्ट सिस्टम में भी माइनॉरिटी को लाएंगे. ठेका माइनॉरिटी को दिया जाएगा. अगर मैं उस ठेके का विरोध करता हूं तो उस पद्धति का विरोध करता हूं. वह मैं सेक्युलरिज्म कर रहा हूं. लेकिन चूंकि मुझे उसमें माइनॉरिटी शब्द बोलना पड़ता है चूंकि मुझे उसमें मुसलमान शब्द बोलना पड़ता है, चूंकि मुझे उसमें अल्पसंख्यक बोलना पड़ता है तो आप मीनिंग निकालते हैं कि मैं कुछ हमला उनपर कर रहा हूं. मैं उन पर हमला नहीं कर रहा हूं. मैं उन पर कर रहा हूं जो पॉलिटिकल पार्टियां हैं, जो भारत के सेक्युलरिज्म की धज्जियां उड़ा रही हैं. जो अपीजमेंट की पॉलिटिक्स कर रही हैं. देश के संविधान की भावनाओं को नष्ट कर रही हैं और मेरे पास सबूत है कि मैं नहीं करता हूं। मान लीजिए एक गांव में 700 लोग रहते हैं और फलानी स्कीम के सौ लाभार्थी हैं यानी हकदार हैं. तो मेरा होता है कि इन लोगों को हक मिलना चाहिए. फिर इस जाति का नहीं, उस जाति का नहीं. हां हो सकता है कि किसी को सोमवार को मिलेगा, किसी को बुधवार को मिलेगा. किसी को जनवरी में मिलेगा तो किसी को जुलाई में मिलेगा. लेकिन हकदार जितने हैं, सबको मिलना चाहिए तो गवर्नेंस में डिस्क्रिमिनेशन नहीं होना चाहिए. आज पूरी डिबेट देखिए हमारी तरफ से, हमने कहीं हिंदू-मुसलमान नहीं किया है. उनके मैनिफेस्टो को हम समझा रहे थे. अब उसमें हम संकोच नहीं करते हैं. यह संकोच करके कि हम मुसलमान बोलेंगे तो पता नहीं हम पर ठप्पा लग जाएगा. मैं मुसलमानों को समझा रहा हूं कि तुम्हें मूर्ख बना रहे हैं भाई, 75 साल से मूर्ख बना रहे, तुम क्यों मूर्ख बन रहे हो? और मैं बुद्धिमान मुसलमानों को कहता हूं, जरा समझो भाई क्या मिला तुम्हें? अच्छा धर्म के आधार पर उन्हेंने देश तो ले लिया लेकिन क्या वो देश मदरसों से चल जाएगा क्या? क्या उनको एडिमिनिस्ट्रेटर नहीं चाहिए? क्या उनको डॉक्टर नहीं चाहिए? उनको इंजीनियर नहीं चाहिए. डॉक्टर हैं तो आपने स्टेथोस्कोप उठाना होगा. आप इंजीनियर हैं तो आपको हाथ में कुछ कागज पेन लेनी पड़ेगी। मैं जो करूंगा वह देश के लिए करूंगा, वोट तो बाई प्रोडक्ट होता है वोट के लिए देश को डुबो नहीं सकते हैं. मुझे ऐसी सत्ता नहीं चाहिए जो मेरे देश को बर्बाद करे. ऐसी सत्ता मुझे मंजूर नहीं है. मैंने हिंदू-मुस्लिम न कभी किया है और ना करता हूं. लेकिन अगर तीन तलाक गलत है तो वो मैं कहता हूं. मैं मुसलमान विरोधी हूं, ऐसा कहकर ऐसा लेबल आप लगा देते हैं तो वह आपकी मजबूरी है, मेरी मजबूरी नहीं है.

श्वेता सिंहः कुछ ऐसा लेबल लगाने की कोशिश कश्मीर को लेकर भी की गई थी, जब 370 हटाया गया था. 2014 से पहले भी मैंने कश्मीर कवर किया है, उसके बाद भी किया है और केवल एक शहर और डाउनटाउन नहीं बल्कि बॉडर्स तक, जहां पर लोगों को लगा है कि वे इंक्लूसिव हो रहे हैं, जुड़ रहे हैं मुख्यधारा के साथ. फिर 370 आया, उसके बाद से पत्थरबाजी नहीं हुई, हड़ताल नहीं हुई. श्रीनगर में क्या कमाल की वोटिंग इस बार हो गई. पर एक बहुत बड़ा धड़ा है, जो कहता है कि बताइए हमसे राज्य का दर्जा ले लिया है. आप जम्मू-कश्मीर की जनता को कुछ कहना चाहेंगे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः इस पूरे चुनाव में मेरे लिए संतोष के पल हैं श्रीनगर की वोटिंग. इसने इस बात पर ठप्पा लगा दिया कि मेरी नीतियां सही हैं. मैं कोई डिस्क्रिमिनेशन नहीं करता हूं. मेरी सरकार धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं करती है. जहां तक राज्य के दर्जे की बात है, हमने पार्लियामेंट में प्रॉमिस किया हुआ है और हम उस पर कमिटेड हैं. हम सफल होना चाहते हैं, पॉलिटिकल पावर में नहीं, स्थितियों में. पहले हम पर क्या गालियां पड़ती थीं कि आपने इंटरनेट बंद कर दिया, चारों तरफ पूरे इंडिया में हम जाते थे मीटिंग में तो आप लोग मिलते थे और कहते थे कि इंटरनेट बैन हो गया. यह कौन सा लोकतंत्र है? गालियां खाई हैं लेकिन मैंने कश्मीर का भला किया है. मैं दूर का देख सकता था, आप 24 घंटे चैनल के लिए देखते थे, मैं देश के लिए देखता था और इसलिए मैं इंटरनेट की गालियां खाने के बाद भी, इंटरनेट बंद करके भी मैं नौजवानों को गलत रास्ते से बचाने में सफल हुआ। दूसरा मेरा संतोष है, अब दस साल का समय लगा लीजिए 2004 से 2014. कितनी माताओं ने अपने बच्चे खोये? 2014 से 2024  कितनी माताओं के लाल बच गए? जीवन में इससे बड़ा संतोष क्या होता है. इसलिए राज्य भी हमारा कमिटमेंट है. हम सफलता के लिए जो भी रास्ता है, वो करेंगे.

राहुल कंवलः प्रधानमंत्री जी, मेरे पिता फौज में थे, बचपन से ही हम कश्मीर जाते रहे हैं. इस बार जब चुनाव कवर करने गया तो मैंने देखा कि बारामूला, अनंतनाग, ऐसी जगहों पर प्रचार चल रहा था, लोग जुड़ रहे थे लोकतंत्र के उत्सव में. ये ऐसी जगह थीं जहां सेना की गाड़ी निकलती थी तो लोग ऊपर देखते थे कि कहीं गोली न चले, अब खुले में प्रचार कर रहे हैं. रात 9, 10 बजे तक लालचौक खुला है. इसके बाद, अब आप कश्मीर में क्या देखते हैं, वॉट्स नेक्स्ट इन कश्मीर?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः मेरा कुछ दिन पहले कश्मीर में कार्यक्रम था. शायद 40 साल के बाद इतनी बड़ी रैली हुई थी. कमेंट क्या होता था कि सरकारी लोग लाकर बिठा दिए. आप देश का भला करना चाहते हैं कि नहीं चाहते हैं? अब उनके मुंह पर ताले लग जाएंगे, जब कल 40 परसेंट वोटिंग देखेंगे. मेरी इच्छा है कि चुनाव फेस्टिवल होना चाहिए. मैं देख रहा था कि श्रीनगर में फेस्टिवल का मूड है. लोग चाय पिला रहे थे, लोग गाने गा रहे थे. मेरे लिए बड़ा खुशी का दिन था.

राहुल कंवलः प्रधानमंत्री जी, आप हमेशा कहते हैं कि आप सिख समुदाय के बेहद नजदीक हैं. स्वर्ण मंदिर की तस्वीर भी लगी है, जहां हम बैठे हैं. लेकिन पंजाब में आपकी लोकप्रियता बाकी देश के मुकाबले थोड़ी कम है. सिख समुदाय में कई लोग आपको शक की नजर से देखते हैं. आपको लगता है कि क्या आप इस दूरी को कम करने में कामयाब हो पाएंगे?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः अच्छा होगा कि अगर आप एनालिसिस करें कि इस समाज के, सिख समाज के मुख्य मुद्दे क्या रहे हैं और किस सरकार ने उन मुद्दों को कैसे अटेंड किया है. निकालिए बाहर, फिर आप 100 में से 100 मार्क्स मुझे दे देंगे. हो सकता है कि मैं उन तक नहीं पहुंच पाया, लेकिन पंजाब में तो मैं काम कर चुका हूं. मैं वर्षों तक पंजाब में रहा हूं और इमरजेंसी में मैं सिख वेश में ही रहता था. मैं सहज रूप से दिल्ली में रहने के दौरान कभी-कभी लंगर खाने जाता था. इसलिए नहीं कि मुफ्त का मिलता है, एक श्रद्धा थी. मैं आज भी मानता हूं कि इस समाज ने बहुत बड़ा योगदान किया है देश के लिए. यह दुर्भाग्य है कि पंजाब में ड्रग्स बहुत फैल गया है, वर्ना ये अनुशासित समाज है. हम गर्व करें ऐसा समाज है. मुझे वे स्वीकारते हैं या नहीं स्वीकारते, इसके लिए मैं क्या कह सकता हूं?

श्वेता सिंहः मोदीजी, महिलाओं की बात पर मैं आना चाहती हूं. 33 परसेंट आरक्षण जो आपने दिया है, जिसका असर कुछ दिन बाद दिखना शुरू होगा. एक पुरुष प्रधान राजनीतिक सिस्टम है, संसद भी है. आप इसे कैसे बदलता हुए देखते हैं कि महिलाएं भी वहां बड़े पैमाने पर आएंगी?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः एक तो जी20 में आपने मेरा एक काम देखा होगा. जब मैं कहता हूं कि मेरे यहां प्रेग्नेंट महिलाओं के लिए 26 हफ्ते की छुट्टी है तो वे (विकसित पश्चिमी देशों के प्रतिनिधि) मुझे ऐसे (अचंभे से) देखते थे. उनके गले नहीं उतरता. हमारे यहां एक परसेप्शन बना दिया गया है कि भारत में महिलाएं घरेलू हैं. रियलिटी यह नहीं है. एग्रीकल्चर सेक्टर देख लीजिए. मैं आज भी कहता हूं कि एग्रीकल्चर सेक्टर में 60 परसेंट कंट्रीब्यूशन महिलाओं का है. लेकिन हमारे देश की छवि नहीं बनी, सही बात पहुंची नहीं. आज भी दुनिया में जो कमर्शियल पायलट हैं, 15 प्रतिशत महिला पायलट भारत की हैं. यह कोई एक रात में तो पायलट नहीं बनी होंगी. एक विचित्र किस्म की फेमिनिस्ट किस्म की सोच बनी है, उसके हम शिकार हो चुके हैं. लेकिन मैं मानता हूं कि हमें दो स्टेप आगे जाना चाहिए. एक तो हमें साइकोलॉजिकल बैरियर तोड़ना होगा. मेरे साथ 26 जनवरी को इजिप्ट के राष्ट्रपति बैठे थे. वे बोले कि मैं तो यहां वूमन एम्पावरमेंट ही देख रहा हूं. वो तो मुस्लिम देश के हैं, वे मुझे वूमन एम्पावरमेंट दिखा रहे थे। दूसरी बात है कि मैं जी20 में विषय लाया कि वूमन लेड डेवलपमेंट. एक बहुत बड़ा साइकोलॉजिकल परिवर्तन है ये. आपने ध्यान दिया हो कि मेरी पार्टी की सभी पब्लिक रैली महिलाएं मैनेज कर रही हैं. उसको स्टेज पर कंडक्ट महिलाएं कर रही हैं. यह योजना का हिस्सा है, अचानक नहीं है ये. वर्ना उनका काम क्या रहता था? एक डिश लेकर आना, उसमें गुलदस्ता होता था. कोई पुरुष आएगा, गुलदस्ता उठाएगा और उसको देगा. ये मुझे पसंद नहीं है जी. आज मेरी सभाओं को कंडक्ट करती महिला कार्यकर्ता हैं. यह मेरा निर्णय है, मेरी पार्टी का निर्णय है. वुमन लेड डेवलपमेंट की दिशा में। दूसरी बात, गांव की महिलाओं के सेल्फ ग्रुप का पहले क्या मतलब होता था? पापड़ बना लो, थोड़ा साबुन बना दो, बेच दो, अगरबत्ती बना दो. मैंने उनको ड्रोन पायलट बनाया है. मेरी उन महिलाओं से बात हुई है. उन्होंने बताया कि उन्होंने कभी साइकिल भी नहीं चलाई थी. लेकिन आज पूरा गांव उन्हें ड्रोन पायलट के रूप में जानता है. मैं गुजरात में था तो मैंने तय किया था. पहले क्या था कि पुलिसवाला आया तो इंप्रेशन था कि सरकार आई. मैं इस साइकोलॉजी को बदलना चाहता था. मैंने कहा कि आंगनबाड़ी और आशा कार्यकर्ताओं को सरकार यूनिफॉर्म भी देगी. इसलिए नहीं कि मुझे वोट चाहिए था. मैंने फैशन डिजाइनर बुलवाया और कहा कि मुझे एयरहोस्टेस से अच्छे कपड़े चाहिए. मैंने ये किया. फिर मैंने ये भी किया कि जब भी मुख्यमंत्री या कोई मिनिस्टर जाएगा तो रिसीव करने वालों में आंगनबाड़ी और आशा वर्कर चाहिए. मैंने डेयरी में तय किया कि मिल्क का पैसा पुरुष को नहीं जाएगा. महिलाओं का अकाउंट खुलेगा. डेली 2-2 हजार करोड़ रुपये की डिलीवरी होती है और यह महिलाओं के खाते में जाता है. अभी काशी में मैंने एक डेयरी शुरू की है. मैंने कहा कि डेयरी तब शुरू होगी, जब पैसे महिलाओं के खाते में जाएंगे. पशु वो पालन करें, दूध की चिंता वो करें, पैसे कोई और ले जाए. मैंने जब भूकंप के घर बनवाए गुजरात में, सरकार ने जो बनवाए, मैंने कहा कि वो महिला के नाम पर मिलेंगे, पुरुष के नाम पर नहीं मिलेंगे. और यहां जब मैं आया और 4 करोड़ घर बनवाए, मैंने कहा कि पहला हक महिला का है. फिर मैंने एक नियम किया कि स्कूल में जो बच्चा दाखिल होता है तो पिता का नाम लिखा जाता है. मैंने कहा, नहीं. मां का नाम भी लिखा जाएगा. ये बदलाव किए हैं. आज माता का नाम भी होता है स्कूल में, सिर्फ पिता का नाम नहीं होता है…ये ताकत नीचे से लानी पड़ती है। मैंने एक काम किया. ये बड़ा इंट्रेस्टिंग है, सुन लीजिए. मैं गुजरात में नया-नया मुख्यमंत्री बनकर गया. पंचायतों के चुनाव हुए थे. मेरा ज्यादा ध्यान भी नहीं था, क्योंकि मैं भूकंप के काम में लगा हुआ था. फिर मुझे एक दिन मैसेज आया कि खेड़ा डिस्ट्रिक्ट के गांव की पंचायत के मेंबर मुझसे मिलना चाहते हैं. उस गांव की सभी पंचायत सदस्य महिलाएं थीं. गांव ने तय किया था कि प्रधान महिला है तो सभी सदस्य भी महिलाएं ही होंगी. डाकोर के पास कोई गांव है. वो कोई 11 मेंबर का दल था. जो प्रधान थीं, वो शायद आठवीं तक पढ़ी होंगी. बाकी एक भी पढ़ी लिखी नहीं थी. मैंने पूछा कि क्या काम था? तो उन्होंने कहा कि हम सब महिलाएं चुनकर आईं तो बस आपको नमस्ते करना था. मैंने पूछा कि 5 साल मिले हैं आपको, आप क्या करोगे? प्रधान ने जो मुझे कहा, दुनिया का कोई इकॉनमिस्ट नहीं बता सकता. उस प्रधान ने मुझे कहा कि मेरा गांव छोटा है, लेकिन मेरी इच्छा है कि पांच साल में मेरे गांव में एक भी गरीब न रहे. साहब, एक प्रधान, उसको इकोनॉमी की समझ थी. मुझे उससे आइडिया क्या आया? चुनाव आया तो मैंने कहा कि हम समृद्ध गांव करेंगे. फिलॉसिफकली मैं इससे परिचित था क्योंकि विनोबा भावे के एक साथी थे डॉक्टर द्वारका दास जोशी. मेरे गांव के थे. उनकी पत्नी रतन बहन, बहुत सेवावती थीं और विनोबा जी के साथ जीवन खपाया था. मैंने उनका भाषण बचपन में सुना था. मुझे याद नहीं कि मैंने विनोबा जी को सुना था या द्वारका दास जोशी को सुना था… मैंने बचपन में सुना था कि गांव में सहमति का चुनाव होना चाहिए. तो ये एक बात और जब महिला मिली तो मेरा ब्रेन काम करने लगा. तो मैंने एक स्कीम बनाई, समृद्ध गांव. जो गांव सर्वसम्मति से चुनाव करेगा, उस गांव को मैं विकास के लिए 5 लाख रुपये एक्स्ट्रा दूंगा. फिर मुझे विचार आया कि जो गांव सब के सब महिला करेगा, उसको मैं 7 लाख रुपये दूंगा. फिर मैंने कहा कि जिस गांव में सब की सब महिलाएं होंगी, तो वहां का गवर्नमेंट अफसर भी महिला होगी. हो सके तो मैं पुलिस भी वहां महिला रखूंगा. और मैं इनको पैसे भी दूंगा. 45 प्रतिशत गांवों में सहमति से चीजें होने लगीं। मुझे याद आया कि जिस दिन ओबामा आए, उस दिन राष्ट्रपति भवन में परेड में सब महिलाएं खड़ी थीं. उनको लीड करने वाली भी महिला थी. ओबामा ने कहा सब महिलाएं. मैंने कहा, यस. मुझे मालूम है कि मुझे मेरे देश को कहां कैसे प्रस्तुत करना है। विकसित भारत के मैं 2 मूलभूत आधार देखता हूं. एक ईस्टर्न इंडिया जहां संपत्ति बहुत ज्यादा है, लेकिन गरीबी बहुत ज्यादा है. मेरा पूर्वी उत्तर प्रदेश, मेरा बिहार, मेरा झारखंड, मेरा बंगाल, ओड़िशा...इकॉनिमिकली अगर मैं इनको ताकतवर बना लूं और इनको अगर मैं बराबर भी ले आऊं न…दूसरा महिलाओं की शक्ति. ये दो ऐसे एरिया हैं, जिनमें मैं भरपूर पोटेंशियल देखता हूं और वो मेरे 2047 की सबसे बड़ी सफलता के लिए कन्वींस हूं कि ये परिणाम देंगे.

अंजना ओम कश्यपः अब महिलाएं अपने दिमाग से वोट कर रही हैं. मैं भी हेलिकॉप्टर से 100 सीटों पर गई. मैं बशीरहाट गई जहां आपने रेखा पात्रा को टिकट दिया है बीजेपी से. बांका, बहराइच, बारामती, कहीं जाइए, आपने कई घरों में झगड़ा भी करा दिया है क्योंकि पति कहीं और वोटिंग कर रहा है और पत्नी कहीं और. महिलाएं आपकी साइलेंट वोटर भी हैं. लेकिन तमाम राजनीतिक पार्टियां तमाम फ्रीबीज का ऐलान कर रही हैं और जहां पर उनका वोट जा रहा है, सरकार उनकी बन रही है. इसे आप कैसे देखते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः चुनाव जीतने के लिए खजाना खाली करना चाहिए क्या? सैद्धांतिक मुद्दा ये है. क्या मुझे खजाना लुटाने का अधिकार है क्या? ये सोचने का विषय है और दुनिया में जिन-जिन देशों की ऐसी हालत हुई है, हमारे पास उदाहरण हैं. अब देखिए क्या होता है, आप शहर में एक मेट्रो बनाते हैं और उसी शहर में चुनाव जीतने के लिए आप कहते हैं कि महिलाओं को बस में फ्री ले जाएंगे. मतलब आपने मेट्रो के 50 फीसदी पैसेंजर ले लिए. तो मेट्रो वायबल नहीं होगी. भविष्य में मेट्रो बनेगी कि नहीं बनेगी? मुद्दा ये है. इस रूप में कोई चिंता, चर्चा नहीं करता है. अब हम पॉलिटिकल तू-तू-मैं-मैं पर चले जाते हैं. मुझे वो नहीं करना है. मैं बिलकुल कॉन्क्रीट बात करता हूं. इस कारण क्या हुआ? एक तो ट्रैफिक को प्रॉब्लम किया, एनवायरमेंट को प्रॉब्लम किया. आपने बस मुफ्त का कर दिया और इधर मेट्रो खाली कर दी. अब मेट्रो कैसे आगे बढ़ेगी?

राहुल कंवलः देश की राजनीति से अगर एक मिनट के लिए बाहर निकलकर ग्लोबल ऑर्डर की बात करें तो इस वक्त दुनिया की निगाहें भारत और भारत के चुनाव पर हैं. इस वक्त रूस और यूक्रेन की लड़ाई चलती जा रही है, जो खत्म नहीं हो रही. इजराइल और हमास की लड़ाई चल रही है. पिछले 5 साल में भारत की कॉम्प्रीहेंसिव नेशनल पावर जो है, वो बढ़ी है. भारत पांचवें नंबर की अर्थव्यवस्था बन गया है. अगले 5 साल में आप ग्लोबल हाई टेबल पर भारत का क्या रोल देखते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः अब तक हम क्या सोचते थे कि इससे हम इतने दूर हैं. हम उससे उतने दूर हैं. अरे यार, हम इक्वल डिस्टेंस मेंटेन करते हैं. डिप्लोमेटिक भाषा में ऐसा चलता था. मेरी भाषा थी कि हम कितने निकट हैं. तो दुनिया में कॉम्पटीशन शुरू हुई. सब लोगों में निकट आने की प्रतिस्पर्धा चल रही है. अब कल ईरान में बहुत बड़ा निर्णय हुआ है. यह हिंदुस्तान के अखबारों की हेडलाइन न्यूज है. मेरे मिनिस्टर चाबहार ईरान में थे. चाबहार पोर्ट का फाइनल अग्रीमेंट हुआ है, सेंट्रल एशिया से जुड़ा हुआ यह बहुत बड़ा काम हुआ है. हाई टेबल क्या होता है जी? इन सारी लड़ाइयों के बीच में हमारा अग्रीमेंट हो जाता है। दूसरी बात ये है कि किसी तीसरे के आधार पर अपना निर्णय हम नहीं करेंगे. हम निर्णय हमारे लिए करेंगे. फलाने को बुरा लगेगा तो? इससे बात करेंगे तो? जी नहीं. मैं सबसे बात करूंगा. राष्ट्रपति पुतिन अगर मेरी भरपूर तारीफ करते हैं, इसका मतलब ये नहीं कि मैं राष्ट्रपति पुतिन को मिलकर यह नहीं कह सकता कि दिस इज नॉट टाइम फॉर वॉर. वो भी सम्मान करेंगे कि चलिए कोई मित्र है जो यह बताता है कि क्या सही है, क्या गलत है. यूक्रेन को भी मुझ पर इतना ही भरोसा है. मुझ पर यानी भारत पर। अभी गाजा में, रमजान का महीना था. मैंने अपने स्पेशल इनवॉय को इजराइल भेजा. उनसे कहा कि इजराइल के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री सबसे मिलिए और समझाइए कि कम से कम रमजान में गाजा में बमबारी न करें और उन्होंने पालन करने का भरपूर प्रयास किया. यहां तो मुझे मुसलमानों को लेकर घेर लेते हैं, लेकिन मोदी गाजा में रमजान के महीने में बमबारी…लेकिन मैं इसकी पब्लिसिटी नहीं करता क्योंकि कइयों ने प्रयास किए होंगे. लेकिन मैंने भी प्रयास किया, भारत ने भी किया. मेरा आज भी फिलिस्तीन के साथ उतना ही नाता है, जितना इजराइल के साथ. हमारे यहां फैशन क्या था, इजराइल जाओ, फिलिस्तीन जाओ और वापस आओ. मैंने कहा कि इजराइल जाऊंगा, वापस आऊंगा, मुझे ये ढोंग करने की जरूरत नहीं है. इजराइल गया. मैं फिलिस्तीन जाऊंगा तो स्टैंडअलोन विजिट होगी. मजा देखिए कि जब मैं फिलिस्तीन गया तो विषय आया कि हेलिकॉप्टर ले जाएंगे कि नहीं. जॉर्डन के राष्ट्रपति को पता चला कि मैं जॉर्डन से होकर फिलिस्तीन जाने वाला हूं. अब वो जॉर्डन के प्राइम मिनिस्टर मोहम्मद साहब के सीधे वारिस हैं, उन्होंने कहा कि मोदीजी आप ऐसे नहीं जा सकते, आप मेरे गेस्ट हैं. मेरे ही हेलिकॉप्टर में आप जाएंगे. मेरे घर खाना खाकर जाएंगे. मैं घर गया, खाना वाना खाया. लेकिन हेलिकॉप्टर जॉर्डन का है, डेस्टिनेशन फिलिस्तीन और मुझे एस्कॉर्ट कर रहा था इजराइल का फ्लीट. तीनों की दुनिया अलग है. मोदी के लिए आसमान में सब साथ थे. मैं मानता हूं ये सब तब होता है जब आपके इरादे नेक हों, आपके प्रति विश्वास हो. चोरी-छुपे या पूछ करके मुझे नहीं करना होता. मैं अमेरिका को कह करके करूंगा. मेरे देश को रूस से सस्ते में पेट्रोल चाहिए तो मैं लूंगा. मेरे लिए जरूरी है तो मैं करूंगा. मैं छिपाता नहीं हूं और अपने टर्म्स पर देश चलाता हूं.

सुधीर चौधरीः सर आप भारत के तो सबसे लोकप्रिय नेता हैं ही, अब दुनिया के भी सबसे लोकप्रिय नेता हैं. और शीर्ष पर बने रहना जैसे कहते हैं अंग्रेजी में एट्स ऑलवेज वेरी लोनली एट द टॉप और इसका अपना एक दबाव भी होता है बहुत. आप कभी उस दबाव को महसूस करते हैं? आप जब परीक्षा पर चर्चा करते हैं तो बच्चों को बताते हैं कि कैसे स्ट्रेस को दूर रखना है. कभी आप अपने साथ भी ऐसा दबाव फील करते हैं?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः होता क्या है जी, लोगों का प्रॉब्लम यह है कि उस दुनिया में जिए हैं, पले बढ़े हैं तो हर चीज के उदाहरण वही हैं. मैं उस दुनिया का इंसान ही नहीं हूं. मुझे एक अलग केस समझिए. व्यावहारिक जीवन की जितनी चीजें आप देखते हैं, मैं उससे परे हूं. माफ कीजिए कि मुझे कहना पड़ रहा है और इसलिए मेरे जीवन में कोई चीज कि यह मोदी यहां बैठा है या मोदी लीडर बना है, नो.. नथिंग टू डू. भारत बना है, मैं शायद निमित्त हूं और इसलिए कृपा करके... और मैं इससे बहुत विरक्त, अलिप्त हूं जी.

राहुल कंवलः प्रधानमंत्री जी, इस वक्त जितने भी लोग इस इंटरव्यू को आज तक और इंडिया टुडे पर देख रहे हैं, मेरे साथी भी ये मानेंगे कि ये बहुत सॉलिड इंटरव्यू है. मतलब जितने भी मुश्किल सवाल हो सकते थे, आपसे पूछे गए.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः यही मेरी शिकायत है आप लोगों से. यह मुश्किल शब्द आपका नहीं है. एक इकोसिस्टम ने आप लोगों को डरा करके रखा हुआ है और आप लोग बुजदिल की तरह डरे हुए हो. उनके एजेंडा सेट के लिए सवाल लेकर घूम रहे हो. आपको बुरा लग रहा पर मैं सहज कहता हूं कि सब लोग दबाव में जी रहे हो. और मैं मानता हूं, मैं भी हाल तबीयत पूछ लेता हूं. सीरियस नेचर के सवाल जवाब नहीं करता हूं, बस पूछता हूं. मुझे लगता था कि उनके दिलों में कुछ और पड़ा हुआ है. उनके अनुभव कुछ और हैं, एक इकोसिस्टम ने ऐसे सवाल बना करके खड़े कर दिए कि आप तब तक पत्रकार नहीं हैं जब तक यह पूछें नहीं. इस मुसीबत से भी मुझे ही आपको निकालना है.

सुधीर चौधरीः सर, जब आप गुजरात के मुख्यमंत्री थे तो कई मर्तबा आपका इंटरव्यू करने का मौका हम लोग को दिया करते थे. अब जब आप पीएम बने हैं तो पीसी नहीं करते और इंटरव्यू करने का मौका भी कम ही मिलता है. तो लोग ये पूछते हैं कि मोदीजी जब हर तरह के सवालों के जवाब दे सकते हैं तो आखिर प्रेस कांफ्रेंस या इंटरव्यू क्यों नहीं करते?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः पहली बात यह है कि अगर इस चुनाव में मैक्सिमम मुझे देखेंगे तो आजतक पर देखेंगे. मैंने तो कभी मना नहीं किया. दूसरी बात यह है कि ज्यादातर हमारी मीडिया का उपयोग यह हुआ है, ज्यादातर यह कल्चर बन गया है कि कुछ भी मत करो यार, इनको बस संभाल लो और अपनी बात बता दो तो देश में चली जाएगी. मुझे उस रास्ते पर नहीं जाना है. मुझे महनत करनी है, मुझे गरीब के घर तक जाना है. मैं भी विज्ञान भवन में फीते काटकर फोटो निकलवा सकता हूं. मैं एक छोटी योजना के लिए झारखंड के एक छोटे से जिले में जाकर काम करता हूं. मैं एक नए वर्क कल्चर को लाया हूं. सही लगे तो मीडिया उस कल्चर को सही प्रस्तुत करे और न लगे, तो ना करे. दूसरी बात है कि मैं जवाबदेह हूं पार्लियामेंट को. तीसरी बात मैं यह कहता हूं कि मीडिया आज वो नहीं है जो पहले था. पहले मैं आजतक से बात करता था लेकिन अब दर्शकों को मालूम है, मैं राहुल से बात कर रहा हूं. कौन राहुल? वो जिसने परसों ये ट्वीट किया था, मतलब ये तो मोदी के फेवर में लिखता है, मतलब ये तो वही बात करेगा. तो आज मीडिया की सेपरेट आइडेंटिटी रही नहीं है. अनेक लोगों की तरह आपके व्यू लोग जान चुके हैं. तो वो स्थिति आपकी बनी नहीं है. पहले मिडिया फेसलेस था, उसका कोई चेहरा नहीं था. मीडिया में कौन लिखता है, लिखने वाले के विचार क्या हैं, कोई लेना देना नहीं था. आज वो स्थिति नहीं है। पहले कम्युनिकेशन का एक ही सोर्स था. मीडिया के बिना आप जा ही नहीं सकते थे. आज कम्युनिकेशन के टू वे हैं, आज जनता भी बिना मीडिया के अपनी आवाज बता सकती है. व्यक्ति भी जिसको जवाब देना है बिना मीडिया अपनी बात बता सकता है. तीसरा मैं जब गुजरात में था, पब्लिक मीटिंग में मैं पूछता था, क्यों भाई ऐसा कार्यक्रम बनाया है, कोई काले झंडे वाला नहीं दिखता है. अरे भाई, दो तीन काले झंडे वाले रखो तो कल अख़बार में छपेगा कि मोदी जी आए थे तो दस लोगों ने काले झंडे दिखाए. तो कम से कम लोगों तो पता चलेगा कि मोदी जी यहां आए थे. काले झंडे बिना मेरी सभा को कौन पूछेगा. तब मैंने दस साल ऐसे भाषण किए गुजरात में, डेली मेरा कार्यक्रम रहता था। एक दिन मेरे गांव के लोग मिलने आए. मेरा अभिनंदन करने आए तो बोले हमारे गांव में 24 घंटे बिजली हो गई है तो इसलिए हम आपका अभिनंदन करने आए हैं. मेरे यहां गुजरात में मंगल को किसी को भी एंट्री थी. मैंने कहा 24 घंटे बिजली है, झूठ है, नहीं हो सकता. बोले कि नहीं साहब, हो गई है. मैंने कहा कि तुम झूठ बोलते हो, 24 घंटे बिजली हो ही नहीं सकती है. मैंने कहा मैंने तो किसी अखबार में नहीं पढ़ा कि तुम्हारे यहां 24 घंटे बिजली हो गई. उन्होंने कहा कि नहीं साहब, रेडियो वाले अखबार वाले नहीं बताएंगे कि 24 घंटे बिजली हो गई है.
 
अंजना ओम कश्यपः प्रधानमंत्री जी, आप अपनी विरासत कैसी छोड़नी चाहेंगे?
 
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीः देखिए मुझे एक सवाल एक बार किसी ने पूछा था यूके में. मैं हैरान हूं कि जो इंसान देश के लिए जी रहा है, वो खुद के लिए क्यों सोचेगा. मुझे इतिहास में कोई याद करे, इसके लिए मैं काम करता ही नहीं हूं. कोई याद करे तो मेरे कश्मीर में 40% के करीब 40 साल के बाद मतदान हुआ, उसको याद करो. कोई माने कि G20 में हिंदुस्तान का डंका बज गया, उसको याद करो. कोई याद करे कि आज विश्व के अंदर मेरा भारत तीसरी इकानोमी बनने जा रहा है उसको याद करे. मेरे जैसे सैकड़ों लोग आएंगे चले जाएंगे।

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