अब आम आदमी को पकौड़ों का स्वाद भूलना होगा!
हाल ही में खाद्य तेलों और तिलहनों पर आयात शुल्क बढ़ोतरी के गंभीर परिणाम सामने आए हैं। पाम आयल पर आयात शुल्क अब 32.5% (परिष्कृत तेल) और 27.5% (कच्चा तेल) हो गया है।

हाल ही में खाद्य तेलों और तिलहनों पर आयात शुल्क बढ़ोतरी के गंभीर परिणाम सामने आए हैं। पाम आयल पर आयात शुल्क अब 32.5% (परिष्कृत तेल) और 27.5% (कच्चा तेल) हो गया है। भारत अपनी खाद्य तेल ज़रूरतों का केवल 43% उत्पादन करता है, जबकि 57% आयात पर निर्भर है। इस आयात में पाम आयल का हिस्सा 59% है। ऐसे में आयात शुल्क बढ़ने से घरेलू बजट पर बड़ा असर पड़ा है।
अंतरराष्ट्रीय बाजार में पाम आयल के बढ़ते दाम और आयात शुल्क में वृद्धि के कारण घरेलू तेल की कीमतों में लगभग 65% का इज़ाफा हुआ है, जिससे आम आदमी के लिए रोज़ाना का खाना और भी महंगा हो गया है। खासकर निम्न आय वर्ग के परिवारों के लिए यह स्थिति और चिंताजनक है, जहां रसोई के छोटे खर्च भी बड़े बोझ बन जाते हैं।
अब पकौड़ों का सपना छोड़ दें!
चाहे थाली हो या पकौड़े, बाहर खाना अब महंगा सौदा बन गया है। घर पर पकाने की कोशिश करेंगे, तो वह भी भारी पड़ेगा। एयर-फ्रायर में बिना तेल के पकाना एक स्वस्थ विकल्प हो सकता है, लेकिन यह विकल्प केवल उन शहरी भारतीयों के लिए है जिनके पास महंगे तेल के दाम झेलने की क्षमता है। ग्रामीण भारत के कई घरों के लिए तो पकौड़े या एक पौष्टिक भोजन भी एक सपना बन चुका है। पाम आयल के आयात शुल्क में बढ़ोतरी ने ग्रामीण और शहरी दोनों वर्गों के रसोई बजट को संकट में डाल दिया है।
तिलहन उत्पादन में भारत का योगदान
भारत तिलहन उत्पादन में दुनिया के बड़े देशों में से एक है और देश के कृषि क्षेत्र में इसका महत्वपूर्ण स्थान है। 2023-24 में भारत ने नौ प्रमुख तिलहनों का लगभग 39.59 मिलियन टन उत्पादन किया। इसके बावजूद भारत अपनी 57% खाद्य तेल ज़रूरतों के लिए आयात पर निर्भर है। सितंबर 2024 में सरकार ने पाम, सूरजमुखी और सोया तेल पर आयात शुल्क बढ़ा दिया, जिससे प्रभावी आयात शुल्क 13.75% से बढ़कर 33.75% हो गया। नतीजतन, जनवरी से नवंबर के बीच खुदरा बाजार में खाद्य तेल के दाम 30% तक बढ़ गए।
ग्रामीण परिवारों पर असर
खाद्य तेल की बढ़ती कीमतें ग्रामीण परिवारों के लिए गंभीर चिंता का विषय हैं। दशकों से सीमित आय में अपने बजट को संतुलित करते हुए इन परिवारों ने अनाज, सब्ज़ियों और तेल जैसे जरूरी सामान पर ध्यान दिया है। लेकिन अब कई परिवारों को तेल के साथ-साथ अन्य खाद्य उत्पादों को भी अपने बजट से बाहर करना पड़ सकता है। बढ़ती महंगाई का सबसे बड़ा असर निम्न आय वर्ग पर पड़ेगा, जो अपने रोज़मर्रा के भोजन के लिए बुनियादी सामग्री पर निर्भर हैं।
वैश्विक कीमतों से भारतीय कीमतों का विरोधाभास दुनिया भर में खाद्य तेल की कीमतें घट रही हैं। FAO का वेजिटेबल ऑयल प्राइस इंडेक्स नवंबर 2020 के स्तर पर लौट आया है, जबकि मार्च 2022 में रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण इसमें जबरदस्त वृद्धि हुई थी। लेकिन इसके विपरीत, भारतीय उपभोक्ताओं को अभी भी अन्य देशों के मुकाबले अधिक कीमत चुकानी पड़ रही है।
सरकार की नीतियों की समीक्षा आवश्यक
सरकार ने यह कदम स्थानीय कृषि को बढ़ावा देने और तिलहन उत्पादन को प्रोत्साहन देने के लिए उठाया है। लेकिन यह वृद्धि उन आम लोगों को प्रभावित कर रही है, जिनके लिए खाद्य तेल एक बुनियादी आवश्यकता है। सरकार को ऐसी नीतियां लागू करनी चाहिए जो निम्न आय वर्ग को राहत प्रदान करें और आम आदमी के बजट को स्थिर रखें। खाद्य तेल की बढ़ती कीमतें केवल एक उत्पाद महंगा होने का मामला नहीं हैं; यह हर घर की रसोई पर गहरा असर डालता है। यह स्थिति छोटे व्यवसायों और फूड एंटरप्राइजेज को भी प्रभावित कर सकती है, जो समोसे और पकौड़े जैसे उत्पाद बनाने में विभिन्न प्रकार के तेल का उपयोग करते हैं। इस संकट को तुरंत सुलझाने की आवश्यकता है, ताकि आम आदमी की थाली और पकौड़े सिर्फ सपना बनकर न रह जाएं।