देश में एक साथ कैसे हो सकते हैं लोकसभा और विधानसभा चुनाव? समझिए
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बताया था कि साथ में चुनाव कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा। लेकिन सबसे पहले समझिए कि ये संशोधन क्यों आवश्यक है।

क्या देश में लोकसभा और विधानसभा चुनाव एकसाथ होने वाले हैं? ये सवाल इसलिए क्योंकि सरकार ने शायद एक-साथ चुनाव कराने का मूड बना लिया है। दरअसल, मोदी सरकार ने संसद का विशेष सत्र बुलाया है। ये सत्र 18 से 22 सितंबर तक चलेगा. बताया जा रहा है कि इस सत्र में 'एक देश-एक चुनाव' यानी 'वन नेशन-वन इलेक्शन' पर बिल आ सकता है। लेकिन ये काम उतना आसान नहीं है जितना समझा जा रहा है।
केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने संसद में बताया था कि साथ में चुनाव कराने के लिए संविधान के अनुच्छेद- 83, 85, 172, 174 और 356 में संशोधन करना होगा। लेकिन सबसे पहले समझिए कि ये संशोधन क्यों आवश्यक है।
अगस्त 2018 में एक देश-एक चुनाव पर लॉ कमीशन की रिपोर्ट आई थी। इस रिपोर्ट में सुझाव दिया गया था कि देश में दो फेज में चुनाव कराए जा सकते हैं।
पहले फेज में लोकसभा के साथ ही कुछ राज्यों के विधानसभा चुनाव। और दूसरे फेज में बाकी राज्यों के विधानसभा चुनाव. लेकिन इसके लिए कुछ विधानसभाओं का कार्यकाल बढ़ाना होगा तो किसी को समय से पहले भंग करना होगा. और ये सब बगैर संविधान संशोधन के मुमकिन नहीं है।
ये पांच अनुच्छेद क्या कहते हैं?
- अनुच्छेद-83: इसके मुताबिक, लोकसभा का कार्यकाल पांच साल तक रहेगा. अनुच्छेद- 83(2) में प्रावधान है कि इस कार्यकाल को एक बार में सिर्फ एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।
- अनुच्छेद-85: राष्ट्रपति को समय से पहले लोकसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद-172: इस अनुच्छेद में विधानसभा का कार्यकाल पांच साल का तय किया गया है. हालांकि, अनुच्छेद-83(2) के तहत, विधानसभा का कार्यकाल भी एक साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।
- अनुच्छेद-174: जिस तरह से राष्ट्रपति के पास लोकसभा भंग करने का अधिकार है, उसी तरह से अनुच्छेद-174 में राज्यपाल को विधानसभा भंग करने का अधिकार दिया गया है।
- अनुच्छेद-356: ये किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने का प्रावधान करता है. राज्यपाल की सिफारिश पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू किया जा सकता है।
साथ चुनाव कराने पर भी दो तरह की संवैधानिक दिक्कतें आ सकतीं हैं. पहली तो ये कि चुनाव में किसी एक पार्टी या गठबंधन को बहुमत नहीं मिला तो फिर क्या होगा? और दूसरी समस्या ये कि कार्यकाल पूरा किए बगैर ही सरकार समय से पहले गिर गई, तो फिर से एक साथ-एक चुनाव वाली स्थिति बिगड़ जाएगी?
लेकिन लॉ कमीशन ने इन दोनों समस्याओं को लेकर भी सुझाव दिए हैं. पहली वाली दिक्कत यानी बहुमत न मिलने की स्थिति पर ये सुझाव है कि चुनाव के बाद राष्ट्रपति या राज्यपाल सबसे बड़ी पार्टी या गठबंधन को सरकार बनाने का न्योता दें. अगर फिर भी सरकार नहीं बन पाती है तो मध्यावधि चुनाव कराए जाएं. लेकिन चुनाव के बाद वो सरकार तब तक के लिए ही बनेगी, जितना कार्यकाल बचा होगा. ऐसी सरकार का कार्यकाल पांच साल नहीं होगा.
दूसरी दिक्कत यानी सरकार गिरने की स्थिति में लॉ कमीशन का सुझाव था कि अविश्वास प्रस्ताव के जरिए मौजूदा सरकार को तभी हटाया जाना चाहिए, जब दूसरी सरकार पर विश्वास हो. ताकि, समय से पहले लोकसभा या विधानसभा भंग न हो।
उदाहरण के लिए, महाराष्ट्र में लोकसभा चुनाव के वक्त 487 करोड़ रुपये खर्च हुए थे, जबकि विधानसभा चुनाव में 462 करोड़ रुपये का खर्चा आया था। लॉ कमीशन का कहना था कि अगर साथ चुनाव होते तो इस खर्च को कम किया जा सकता था।