Bikanerwala: Kedarnath Agarwal ने कैसे एक छोटी सी दुकान से बनाया साम्राज्य?

साल 1988 में ब्रांड को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए कंपनी ने एयर-टाइट पैकेजिंग में मिठाई और नमकीन बेचने के लिए बिकानो लॉन्च किया। अब ये एक तरह का फास्ट फूड सर्विस रेस्टोरेंट बन चुका है।

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बीकानेरवाला की फूड चेन आज दुनियाभर में लोगों की पसंद बन चुकी है
बीकानेरवाला की फूड चेन आज दुनियाभर में लोगों की पसंद बन चुकी है

By BT बाज़ार डेस्क:

जब भी आपका कुछ मीठा-तीखा खाने का मन करता है तो सबसे पहला नाम आपके दिमाग में किसका आता है? यकीनन आपके ऑप्शन्स में Bikanerwala का नाम तो जरूर आता होगा। सोचिए बाल्टियों से सड़कों पर भुजिया से लेकर रसगुल्ले बेचने से शुरुआत करने वाले Kedarnath Agarwal की कहानी है ये, जिन्होंने अपनी मेहनत के दम पर बीकानेरवाला जैसा ब्रैंड खड़ा कर दिया। हम बीकानेरवाला के फाउंडर और चेयरमैन केदारनाथ अग्रवाल का जिक्र इसलिए कर रहे हैं, क्योंकि उनका निधन हो गया है। इस मशहूर ब्रांड की शुरुआत एक छोटी सी दुकान से हुई थी और देखते ही देखते इतना बड़ा एम्पायर खड़ा हो गया। सबसे पहले जान लीजिए कि बीकानेरवाला का बिजनेस एम्पायर कितना बड़ा है। फिर नजर डालेंगे बीकानेरवाला के सफर पर... आज देश में इसके 1500 से भी ज्यादा स्टोर हैं और इसका टर्नओवर 1,300 करोड़ रुपये है। देश में ही नहीं बल्कि विदेशों में भी इसका कारोबार फैला है। यहां तक के खबरों के मुताबिक कंपनी अगले तीन साल में आईपीओ लाने की तैयारी में है। साथ ही उसकी योजना 2030 तक 10,000 करोड़ रुपये का रेवेन्यू हासिल करने और 600 स्टोर खोलने की है।

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बीकानेरवाला की फूड चेन आज दुनियाभर में लोगों की पसंद बन चुकी है। लेकिन इसके पीछे की कहानी बड़ी दिलचस्प है। इसे खास पहचान दिलाने का श्रेय काकाजी के नाम से मशहूर लाला केदारनाथ अग्रवाल को ही जाता है। केदारनाथ साल 1955 में राजस्थान के बीकानेर से बड़े भाई सत्यनारायण अग्रवाल के साथ दिल्ली आए थे और बस दिल्ली के होकर रह गए। मीडिया रिपोर्ट्स की मुताबिक शुरुआत में उनके पास रहने की कोई जगह नहीं थी। लिहाजा उन्होंने कई रातें एक धर्मशाला में गुजारी। गुजारे के लिए पैसे चाहिए थे इसलिए दोनों भाइयों ने बाल्टी में भरकर बीकानेरी रसगुल्ले और कागज की पुड़िया में बांध-बांधकर बीकानेरी भुजिया और नमकीन बेची। जल्द ही उन्होंने पराठे वाली गली में एक दुकान किराये पर ले ली। फिर कारीगर भी बीकानेर से बुला लिए। दिल्लीवालों को सबसे पहले मूंग की दाल का हलवा चखाने का श्रेय भी उन्हीं को जाता है। शुद्ध देसी घी से बने इस हलवे को लोगों ने खूब पसंद किया। इसके बाद अग्रवाल भाइयों ने चांदनी चौक के मोती बाजार एक दुकान किराए पर ले ली। यह दिवाली का समय था। देखते ही देखते उनका काम चल पड़ा। मिठाई और नमकीन की जमकर बिक्री हुई। कहते हैं कि एक बार में एक शख्स को 10 से ज्यादा रसगुल्ले नहीं बेचे जाते थे। ग्राहकों की लाइनें लग जाती थीं। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि उनके रसगुल्लों की कितनी मांग थी। आज भी बीकानेरवाला के रसगुल्लों की लोकप्रियता में कोई कमी नहीं आई है। 1972-73 में उन्होंने दिल्ली के करोलबाग में एक दुकान खरीद ली और इसके बाद उन्होंने पलटकर नहीं देखा।

Kedarnath Agarwal

शुरू में उनका ट्रेड मार्क बीकानेरी भुजिया भंडार थी। लेकिन कुछ ही दिनों बाद उनके सबसे बड़े भाई जुगल किशोर अग्रवाल दिल्ली आए तो उन्होंने नाम बदलने को कहा। इसके बाद नाम रखा गया 'बीकानेरवाला'। 1956 से आज तक 'बीकानेरवाला' ही ट्रेड मार्क बना हुआ है। 'बीकानेरवाला' का दिल्ली में सबसे पहला ठिकाना 1956 में नई सड़क पर हुआ। 1962 में मोती बाजार में एक दुकान खरीदी। इसके बाद करोल बाग में 1972-73 में वह दुकान खरीदी, जो अब देश-दुनिया में बीकानेरवाला की सबसे पुरानी दुकान के रूप में पहचानी जाती है। आज इसके रेस्टोरेंट्स में हर महीने एक करोड़ से ज्यादा फुटफॉल है।साल 1988 में ब्रांड को विश्व स्तर पर ले जाने के लिए कंपनी ने एयर-टाइट पैकेजिंग में मिठाई और नमकीन बेचने के लिए बिकानो लॉन्च किया। अब ये एक तरह का फास्ट फूड सर्विस रेस्टोरेंट बन चुका है। आज देश और दुनिया में बीकानेरवाला और बीकानो के नाम से 150 से ज्यादा आउटलेट हैं। अमेरिका, दुबई, न्यूजीलैंड, सिंगापुर, नेपाल आदि देशों में भी बीकानेरवाला पहुंच गया है। कंपनी का टर्नओवर करीब 1,300 करोड़ रुपये है और उसमें 1000 से ज्यादा कर्मचारी काम करते हैं।

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