मिशन चंद्रयान-3 क्यों अहम? फिर से चंदा मामा के पास जाएंगे हम
चंद्रयान-3 की उड़ान की तरफ हिंदुस्तान के कदम बढ़ने शुरू हो गए हैं। जिसके बाद हमारी पहुंच चंद्रमा तक हो जाएगी। इसी हफ्ते ये मिशन आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से लॉन्च होने वाला है। इसके लिए सारी टेस्टिंग हो चुकी है। पेलोड्स लगा दिए गए हैं। चंद्रयान-3 को LVM3 रॉकेट के जरिए चांद पर भेजा जाएगा।

बचपन में आपने-हमने, ज्यादातर लोगों ने चंदा मामा से जुड़ी लोरियां जरूर सुनी होंगी। जैसे चंदा मामा दूर के पुए पकाए बूर के पर कुछ समय बाद हो सकता है कि ऐसी लोरियों में थोड़ा बदलाव करना पड़ जाए, अब आप पूछेंगे कि भला ऐसा क्या होने वाला है। तो होगा ये कि अब चंदा मामा दूर के नहीं रह जाएंगे। दरअसल Chandrayaan-3 की उड़ान की तरफ हिंदुस्तान के कदम बढ़ने शुरू हो गए हैं। जिसके बाद हमारी पहुंच चंद्रमा तक हो जाएगी। इसी हफ्ते ये मिशन आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा में Satish Dhawan Space Center से लॉन्च होने वाला है। इसके लिए सारी टेस्टिंग हो चुकी है। पेलोड्स लगा दिए गए हैं। चंद्रयान-3 को LVM3 रॉकेट के जरिए चांद पर भेजा जाएगा।
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पिछले दिनों इसी को लेकर ISRO ने एक वीडियो भी जारी किया था। जिसमें चंद्रयान-3 की इनकैप्सुलेटेड असेंबली को LVM3 के साथ जोड़ते हुए दिखाया गया यानी इसका मतलब चंद्रयान-3 को रॉकेट से जोड़ना होता है। अब ये मिशन अपनी फाइनल स्टेज पर पहुंच चुका है। भारत का पहला मिशन चंद्रयान साल 2008 में लॉन्च हुआ था। तारीख थी 22 अक्टूबर चंद्रयान-1 के ज़रिए इसरो ने चांद पर पानी की खोज की। इसके बाद भारत का मिशन चंद्रयान-2 असफल रहा इसे 22 जुलाई 2019 को लॉन्च किया गया था। लेकिन अब इस बार चंद्रयान-3 के लैंडर की लैंडिंग तकनीक में बदलाव किया गया है। इसकी लैंडिंग तकनीक को नए तरीक़े से बनाया गया है। चंद्रयान-3 के लैंडर के चांद पर उतरने के साथ ही भारत इतिहास रच देगा। वो ऐसा करने वाला दुनिया का चौथा देश बन जाएगा। इससे पहले अमेरिका, रूस और चीन चंद्रमा पर अपने स्पेसक्राफ्ट उतार चुके हैं।
मिशन चंद्रयान की लंबे समय से चर्चा होती रही है। लेकिन आपके जेहन में सवाल उठता होगा कि अगर हमने ये फतह कर लिया तो आखिर हमें मिलेगा क्या। वैज्ञानिकों के लिए चंद्रमा इतना खास इसलिए है क्योंकि ये दूसरे ग्रहों पर इंसानों की पहुंच के दरवाजे खोल सकता है। इस मिशन से वैज्ञानिकों को पृथ्वी की उत्पत्ति के बारे में और जानकारी मिलेगी। साथ ही अर्थ-मून सिस्टम और पृथ्वी के अतीत में ऐस्टरॉइड्स के प्रभाव के बारे में जानने को मिल सकता है। चंद्रमा की खोज नई व्यावसायिक संभावनाएं भी पैदा कर सकती है। इसके अलावा अंतरिक्ष में चंद्रमा बेस बन सकता है। चंद्रमा पर बेस बनने से अंतरिक्ष यात्रियों के लिए, पास के दूसरे ग्रहों जैसे मंगल के लिए भी रास्ता तैयार होगा। दुनिया में मिशन मून की शुरुआत 60 के दशक में हुई थी। तब किसी ने भी नहीं सोचा था, कि इंसान न सिर्फ चंद्रमा पर कदम रखेगा, बल्कि वहां संभावनाओं के नए द्वार भी खोल देगा। हालांकि अभी भी इंसान को चंद्रमा के बारे में काफी कुछ जानना है।
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सबसे पहले चंद्रमा पर जाने वाले ऐस्ट्रोनॉट Neil Armstrong थे। जिन्होंने चांद की सतह पर अपने कदम रखे थे। उस दौरान वो अपोलो 11 मिशन के तहत वहां गए थे। ये तारीख थी 20 जुलाई 1969, यानी साल 1969 में भी वो जुलाई का महीना था, अभी भी जब मिशन चंद्रयान-3 की तैयारी चल रही है तो भी जुलाई का महीना है। NASA के पहले मिशन को बीते 54 साल हो चुके हैं। अब ISRO अपने मिशन चंद्रयान-3 की ओर बढ़ चुका है। बस इंतजार इतिहास रचने का है।