India-Canada Tension: किन मौकों पर भारत ने डिप्लोमेट्स को दिखाया बाहर का रास्ता?
विदेशों में रहते डिप्लोमेट्स के पास कई सारी सुविधाएं होती हैं, जिसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी कहते हैं। इसके तहत उसकी सुरक्षा जांच न होने से लेकर कई सुविधाएं मिलती हैं। यहां तक कि देश में अगर किसी वजह से टेंशन बढ़ जाए तो इम्युनिटी के तहत डिप्लोमेट को सुरक्षित उसके देश लौटाया जाता है।

कनाडाई पीएम जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत का हाथ बता दिया। इसके बाद से दोनों देशों के बीच तनाव काफी बढ़ा हुआ है। दोनों देशों ने ही एक-दूसरे के टॉप डिप्लोमेट्स को निष्कासित कर दिया।
विदेशों में रहते डिप्लोमेट्स के पास कई सारी सुविधाएं होती हैं, जिसे डिप्लोमेटिक इम्युनिटी कहते हैं। इसके तहत उसकी सुरक्षा जांच न होने से लेकर कई सुविधाएं मिलती हैं। यहां तक कि देश में अगर किसी वजह से टेंशन बढ़ जाए तो इम्युनिटी के तहत डिप्लोमेट को सुरक्षित उसके देश लौटाया जाता है।
डिप्लोमेट्स को बाहर निकालना काफी संवेदनशील मामला माना जाता है. देखा जाए तो वे रुतबेदार मेहमान की तरह होते हैं, जिनके आतिथ्य का जिम्मा मेजबान देश के पास होता है. आमतौर पर नर्म रुख रखने वाला भारत एक्सट्रीम हालातों में ऐसा कर चुका है.
अमेरिका पर लिया था एक्शन
साल 2013 में अमरीका में भारतीय विदेश सेवा अधिकारी देवयानी खोब्रागढ़े का मामला खूब उछला था। देवयानी पर आरोप था कि वे भारत से एक घरेलू सहायिका लेकर आईं, गलत तरीके से उसके दस्तावेज जमा कराए और फिर अमेरिका में कम पैसों में ज्यादा काम कराती थीं। डिप्लोमेट की सहायिका संगीता रिचर्ड ने खुद पुलिस में शिकायत की थी।
इसके बाद अमेरिका ने डिप्लोमेटिक इम्युनिटी को नजरअंदाज करते हुए देवयानी को हथकड़ी पहना दी थी। यहां तक कि निष्कासन के बाद भारत वापसी के रास्ते में स्ट्रिप एंड सर्च का आदेश दिया गया, यानी कपड़े उतारकर डिप्लोमेट की तलाशी ली गई। इस घटना पर भारत काफी भड़का था और दिल्ली में अमेरिकी एबेंसी को खाली करने का आदेश दे दिया था।
इस वाकये के बाद भारत-अमेरिका का रिश्ता काफी खराब हुआ था, जिसे वापस पटरी पर आने में काफी समय लगा।
साल 1985 में इसका भी ग्राफ नीचे आ गया था, जब फ्रेंच डिप्लोमेट सर्गेई बॉडॉ को देश छोड़ने का आदेश दिया गया। निष्कासित करने हुए उसकी साफ वजह नहीं बताई गई थी। वैसे मीडिया में कानाफूसी थी कि फ्रेंच डिप्लोमेट भारत के आर्थिक मामलों में जासूसी करते थे।
डिप्लोमेट्स को हटाना इतना संवेदनशील मुद्दा है कि कई बार सरकारें इसे खुफिया ढंग से करना चाहती हैं। अमेरिका और फ्रांस वाला मामला इतना बड़ा था कि मिनिस्ट्री ऑफ एक्सटर्नल अफेयर्स को उसका ऐलान करना पड़ा, लेकिन ज्यादातर वक्त ये चुपचाप हो जाता है। कथित तौर पर जर्मनी और भारत के बीच कई बार ये डिप्लोमेट हटाओ अभियान चल चुका है, लेकिन इसका कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं।