क्या AI आपके पैसों का असली मालिक बन सकता है? जानिए एक्सपर्ट्स की राय

आज कल कई लोगों के मन में सवाल है कि क्या हमें AI पर पूरी तरह भरोसा करना चाहिए या इसे सिर्फ स्मार्ट असिस्टेंट की तरह इस्तेमाल करना चाहिए? आइए, जानते हैं कि इस पर एक्सपर्ट ने क्या राय दी है।

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By Priyanka Kumari:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) अब कोई साइंस-फिक्शन वाली चीज नहीं रही। आज कई लोग बिना जाने-समझे ही AI टूल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, खासकर पैसों को मैनेज करने के लिए। लेकिन बड़ा सवाल ये है कि क्या हमें AI पर पूरी तरह भरोसा करना चाहिए या इसे सिर्फ स्मार्ट असिस्टेंट की तरह इस्तेमाल करना चाहिए?

AI असल में करता क्या है?

AI बेस्ड टूल्स आपके सारे ऑनलाइन ट्रांजैक्शंस को स्कैन करते हैं और पैटर्न पहचानते हैं। ये सिर्फ इतना नहीं बताते कि आपने पिछले महीने कितना खर्च किया, बल्कि ये भी बताते हैं कि आप कब और कहां ज्यादा पैसे उड़ाते हैं।

Roinet Solution के फाउंडर समीर माथुर बताते हैं कि AI सेकंडों में हजारों ट्रांजैक्शंस प्रोसेस करके ये बता सकता है कि कहां खर्च कट सकता है। साथ ही ये आपकी लाइफस्टाइल को समझकर पर्सनल फाइनेंशियल इनसाइट भी देता है।

सीधी भाषा में कहें तो AI उन पैटर्न्स को पकड़ता है, जिन्हें हम अक्सर नजरअंदाज कर देते हैं जैसे देर रात का फूड ऑर्डर करना या वीकेंड शॉपिंग पर ज्यादा खर्च करना।

क्या AI के नंबर भरोसेमंद हैं?

ज्यादातर AI टूल्स की एक्यूरेसी काफी अच्छी होती है। सही डाटा मिलने पर ये 90% तक सही नतीजे दे सकते हैं। Learning Spiral के फाउंडर मनीष मोहता कहते हैं कि ये टूल्स इतने डिटेल्ड होते हैं कि वो ₹49 वाली सब्सक्रिप्शन तक पकड़ लेते हैं जिसे आप भूल चुके होते हैं।

लेकिन AI पर आंख मूंदकर भरोसा करना सही नहीं। कैश पेमेंट्स, स्प्लिट बिल्स या गलत लेबल्ड ट्रांजैक्शन कभी-कभी इसे कन्फ्यूज़ कर देते हैं। इसलिए थोड़ा-बहुत मैनुअल चेक करना जरूरी है।

डाटा प्राइवेसी का बड़ा सवाल

पैसों से जुड़ा डाटा बेहद सेंसिटिव होता है। इसलिए सही टूल चुनना बहुत जरूरी है। माथुर सलाह देते हैं कि सिर्फ उन्हीं सर्विसेज को इस्तेमाल करें जिनके पास क्लियर प्राइवेसी पॉलिसी और बैंक-ग्रेड एनक्रिप्शन हो।

मोहता के मुताबिक अगर किसी कंपनी की पॉलिसी जिगसॉ पज़ल जैसी लग रही है, तो बेहतर है उसे छोड़ दें। हमेशा ऐसे टूल्स चुनें जहां ट्रांसपेरेंसी हो और आप जब चाहें अपना डाटा डिलीट कर सकें।

दोनों एक्सपर्ट्स इस बात पर सहमत हैं कि AI को को-पायलट की तरह इस्तेमाल करना चाहिए, न कि पायलट की तरह। माथुर इसे सपोर्टिव टूल कहते हैं, जबकि मोहता इसे GPS से तुलना करते हैं जो रास्ता दिखाता है लेकिन डेस्टिनेशन तय नहीं करता।

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