BT Bazaar Pathshala: क्या होता है फॉलो-ऑन पब्लिक ऑफर (Follow-on Public Offer-FPO)?

एफपीओ (FPO) का भी मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त पूंजी जुटाना होता है। लेकिन इसमें अंतर ये है कि ये शेयर के लिस्ट होने के बाद पूंजी जुटाने का एक तरीका है लेकिन इसमें एप्लीकेशन और अलॉटमेंट के लिए एक अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है।

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Public Offer (FPO)
Public Offer (FPO)

By Ankur Tyagi:

अभी तक आपने IPO का नाम सुना होगा। आपने पढ़ा होगा किIPO के जरिए कंपनियां शेयर बाजार में अपनी हिस्सेदारी को कम करके रिटेल और बड़े निवेशकों से पैसे जुटाती हैं ताकि अपनी जरूरतों को पूरा कर सके। लेकिन ये एफपीओ क्या होता है।

एफपी FPO

फपीओ (FPO) का भी मुख्य उद्देश्य अतिरिक्त पूंजी जुटाना होता है। लेकिन इसमें अंतर ये है कि ये शेयर के लिस्ट होने के बाद पूंजी जुटाने का एक तरीका है लेकिन इसमें एप्लीकेशन और अलॉटमेंट के लिए एक अलग प्रक्रिया अपनाई जाती है। FPO में शेयर को डाइल्यूट (Dilute) किया जा सकता है और नए शेयर भी जारी किए जा सकते हैं जिन्हें निवेशकों को एलॉट किया जा सकता है। IPO की तरह FPO में भी मर्चेंट बैंकर की जरूरत पड़ती है जो रेड हेयरिंग प्रोस्पेक्टस बनाकर सेबी को मंजूरी के लिए दिया जाता है। इसके लिए भी सेबी की मंजूरी लगती है।  मंजूरी के बाद बिडिंग शुरू की जा सकती है। बिडिंग के लिए 3-5 दिन का समय होता है।  

ऑफ प्राइस


बुक बिल्डिंग के बाद जब कट ऑफ प्राइस तय हो जाती है तो फिर शेयर एलॉट कर दिए जाते हैं। इस प्रक्रिया में भी कंपनी एक 
प्राइस बैंड तय करती है और निवेशकों के लिए ऑफर दिया जाता है कि आप इसमें पैसा लगा सकते हैं। बोली लगाने की प्रक्रिया खत्म होने पर कट ऑफ प्राइस तय किया जाता है। कट ऑफ प्राइस शेयरों की माँग के आधार पर तय होता है। फिर शेयर एलॉट होते हैं और उन्हें शेयर बाजार पर लिस्ट कर दिया जाता है।  FPO का एक उदाहरण है वोडाफोन। डाफोन आइडिया का एफपीओ 18 अप्रैल को खुला था और 22 अप्रैल 2024 आवेदन की आखिरी तारीख थी. कंपनी ने 10 - 11 रुपये प्रति शेयर प्राइस बैंड फिक्स किया था. 1298 शेयरों के एक लॉट के लिए कम से कम निवेशक आवेदन कर सकते थे.

OFS और FPO का अंतर


अब आपके मन में सवाल होगा कि इन दोनों में क्या अंतर है। 
OFS का इस्तेमाल प्रमोटर की शेयर होल्डिंग कम करने के लिए किया जाता है जबकि FPO का इस्तेमाल नए प्रोजेक्ट के लिए पूंजी जुटाने के लिए किया जाता है। FPO में चूंकि शेयरों की संख्या बढ़ती है इसलिए शेयर होल्डिंग पैटर्न बदल जाता है। जबकि OFS में ऑथराइज्ड शेयर की संख्या नहीं बदलती है। मार्केट कैपिटलाइजेशन के हिसाब से ऊपर की सिर्फ 200 कंपनियों को OFS से पैसे जुटाने की सुविधा मिलती है जबकि FPO के रास्ते से सभी कंपनियां पैसे जुटा सकती हैं।

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