प्रदूषण बिगाड़ेगा हेल्थ इंश्योरेंस का बजट, मेट्रो शहरों में बढ़ सकता है आपका प्रीमियम!

कई बीमा कंपनियां शहरों के हिसाब से प्रीमियम तय करने के मॉडल की दोबारा जांच कर रही हैं, क्योंकि प्रदूषण, लाइफस्टाइल बीमारियां और बढ़ती इलाज लागत मेट्रो शहरों के रिस्क प्रोफाइल को बढ़ा रही हैं।

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By Gaurav Kumar:

Health Insurance: दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, लखनऊ और कानपुर जैसे बड़े शहरों में हर बार ठंड के दौरान हवा की क्वालिटी खराब और गंभीर हो जाती है।अब इसका असर हेल्थ इंश्योरेंस पर भी दिख सकता है।

कई बीमा कंपनियां शहरों के हिसाब से प्रीमियम तय करने के मॉडल की दोबारा जांच कर रही हैं, क्योंकि प्रदूषण, लाइफस्टाइल बीमारियां और बढ़ती इलाज लागत मेट्रो शहरों के रिस्क प्रोफाइल को बढ़ा रही हैं।

दिल्ली-NCR में लगातार खराब AQI और मुंबई में निर्माण धूल, ट्रैफिक और मौसम के कारण प्रदूषण बढ़ा है। कई अन्य शहर भी हर साल भारत के सबसे प्रदूषित इलाकों की लिस्ट में रहते हैं। कंपनियों का कहना है कि इन जगहों पर प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं।

केयर हेल्थ इंश्योरेंस के हेड ऑफ डिस्ट्रिब्यूशन अजय शाह ने बताया कि हवा की गुणवत्ता और सेहत के जोखिम का रिश्ता अब नकारा नहीं जा सकता। उनके अनुसार, लगातार जहरीली हवा में रहने से बच्चों, बुजुर्गों और पहले से बीमार लोगों में फेफड़ों और दिल से जुड़ी समस्याएं बढ़ रही हैं। शाह ने कहा कि इसका असर सिर्फ क्लेम पर नहीं पड़ता, बल्कि यह बीमारी के फैलाव, इलाज की जरूरत और लंबे समय की स्वास्थ्य योजना को भी बदल देता है।

उन्होंने आगे कहा कि मेट्रो शहरों और छोटे शहरों के बीच प्रीमियम का अंतर पहले से मौजूद है। अस्पताल खर्च, बड़े प्राइवेट हॉस्पिटल नेटवर्क और मेडिकल इन्फ्लेशन ने यह गैप सालों से बनाए रखा है। अब प्रदूषण इसे और बढ़ा रहा है। डॉक्टर लगातार अस्थमा, COPD और दिल से जुड़ी दिक्कतों के बढ़ते केस दर्ज कर रहे हैं, जिससे परामर्श, टेस्ट और दवाओं की मांग बढ़ती है और क्लेम भी।

शाह के मुताबिक बीमा कंपनियां अब लंबे समय की स्वास्थ्य सुरक्षा को सिर्फ बीमारी पर आधारित मॉडल से हटाकर प्रिवेंशन और मैनेजमेंट की ओर ले जा रही हैं। इसमें रेगुलर हेल्थ असेसमेंट, डिजिटल हेल्थ ट्रैकिंग और क्रॉनिक केयर सपोर्ट शामिल हो सकता है। उनका कहना है कि हवा जैसे पर्यावरणीय संकेतक अब धीरे-धीरे एक्चुरियल मॉडल में शामिल किए जा रहे हैं।

भविष्य में प्रदूषण डेटा, बीमारियों के क्लस्टर और लंबे समय की हेल्थ ट्रेंड यह तय कर सकते हैं कि कौन सा शहर किस जोखिम कैटेगरी में आएगा और उसका प्रीमियम कैसा होगा। हालांकि यह चिंता भी बढ़ रही है कि प्रदूषित शहरों के लोग ज्यादा प्रीमियम भरने पर मजबूर न हो जाएं, जबकि प्रदूषण पर उनका नियंत्रण सीमित है। ऐसे मामलों में पारदर्शिता और तार्किकता सुनिश्चित करना रेगुलेटर की जिम्मेदारी होगी।

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